हिमालय के दूसरे हिस्‍सों से अधिक तेजी से पिघल रहे हैं सिक्किम के ग्‍लेशियर

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नई दिल्ली, 26 मार्च (हि.स.)। जलवायु परिवर्तन का असर सिक्किम के ग्लेशियर में तेजी से दिखने लगा है। यहां छोटे आकार के ग्लेशियर पीछे खिसक रहे हैं और बड़े ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं।

हिमालय के भू-विज्ञान के अध्ययन से जुड़ी वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्‍ल्यूआईएचजी) देहरादून के वैज्ञानिकों के मुताबिक 1991-2015 की अवधि के दौरान किए गए अध्ययन में सिक्किम के 23 ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन किया गया। पता चला कि इन 25 वर्षों में सिक्किम के ग्लेशियर बहुत पीछे खिसक चुके हैं और उनकी बर्फ पिघलती जा रही है।

साल 2000 के बाद तेजी से खिसके सिक्किम के ग्लेशियर

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लेशियर के व्यवहार में प्रमुख बदलाव 2000 के आसपास दिखाई देने लगा। पश्चिमी और मध्य हिमालय के विपरीत, जहां हाल के दशकों में ग्लेशियरों के पिघलने की गति धीमी हुई है, वहीं सिक्किम के ग्लेशियरों में वर्ष 2000 के बाद इसमें नाममात्र का धीमापन देखा गया है। ग्लेशियर में हो रहे बदलावों का प्रमुख कारण गर्मियों के तापमान में बढ़ोतरी है। सिक्किम हिमालयी ग्लेशियरों के अध्ययन के लिए डब्‍ल्यूआईएचजी के वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र के 23 ग्लेशियरों का चयन किया। चयनित ग्लेशियरों को कवर करते हुए मल्टी-टेम्पोरल और मल्टी-सेंसर उपग्रह डेटा प्राप्‍त किए गए। टीम ने इन परिणामों का विश्लेषण किया और पहले से मौजूद अध्ययनों के साथ उनकी तुलना की है।

चेंगमेखांग्पु में 7 सालों के लिए किया गया था अध्ययन
अब तक सिक्किम के ग्‍लेशियरों का संतोषजनक अध्‍ययन नहीं किया गया था और फील्‍ड-बेस्‍ड मास बेलेंस आकलन केवल एक ग्‍लेशियर (चेंग्‍मेखांग्‍पु) तक सीमित था। यह अल्‍पावधि (1980-1987) तक ही चला था। जबकि 23 ग्लेशियरों पर किए गए अध्ययन में पहली बार इनकी लम्‍बाई, क्षेत्र, मलबे के आवरण, हिम-रेखा की ऊंचाई (एसएलए), ग्‍लेशियर झीलों, वेग और बर्फ पिघलने को शामिल किया गया।

 


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