मुंबई, 23 अक्टूबर (हि.स.)। हिन्दुत्व का मुखर चेहरा रही शिवसेना ने महाराष्ट्र की सत्ता हासिल करने के लिए कांग्रेस और एनसीपी से गठबंधन किया है। नतीजतन हिन्दुत्व से जुडे़ तमाम मुद्दों पर बीते एक साल से शिवसेना ने चुप्पी साध रखी थी। वहीं विजयदशमी पर शिवसेना ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मारक के सभागार में दशहरा उत्सव आयोजित करने का फैसला किया है। शिवसेना के इस फैसले से यह माना जा रहा है कि पार्टी अब हिन्दुत्व की राह पर वापिस लौट रही है।
मुंबई के दादर स्थित परिसर में शिवसेना बीते 53 वर्षों से दशहरे के मौके पर जनसभा का आयोजन करती रही है, लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते खुले मैदान में भीड़ इकठ्ठा करना संभव नहीं है। नतीजतन स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मारक सभागार में कार्यक्रम का आयोजन करने का फैसला लिया गया है। राजनीतिक गलियारे में इस फैसले को हिन्दुत्व की ओर शिवसेना की वापसी के तौर पर देखा जा रहा है।
कांग्रेस और एनसीपी के साथ महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार बनाने के बाद कई अवसरों पर शिवसेना को अपनी विचारधारा और नीतियों से समझौता करना पड़ा। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा की गई सावरकर की आलोचना, कांग्रेस के मुखपत्र में असंसदीय भाषा में सावरकर की भर्त्सना और पालघर में हुई दो साधुओं समेत तीन की हत्या; ऐसे कई मुद्दों पर शिवसेना के नेता चुप्पी साधे रहे। कहने को पार्टी की ओर से बतौर प्रवक्ता संजय राऊत समय-समय पर अपना मत रखते रहे हैं, लेकिन पार्टी की ओर से हिन्दुत्व का मुद्दा पुरजोर तरीके से नहीं उठाया गया। सावरकर को लेकर कांग्रेस की ओर से हो रही अनर्गल बयानबाजी के बाद स्वातंत्र्यवीर सावरकर के पोते रणजीत सावरकर जब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मिलने मंत्रालय पहुंचे थे तो उद्धव उनसे मिले बिना कार्यालय से चले गए थे। नतीजतन रणजीत को बैरंग लौटना पड़ा था। इस पूरे घटनाक्रम के बाद अब उद्धव ठाकरे दशहरे के मौके पर बतौर मुख्यमंत्री पहली बार सावरकर स्मारक के सभागार में जाने वाले हैं। नतीजतन दशहरे के अवसर होने वाले ठाकरे के भाषण पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं।
महाराष्ट्र की राजनीति पर पैनी निगाह रखने वाले तरुण भारत के पूर्व सम्पादक सुधीर पाठक ने हिन्दुस्थान समाचार से कहा कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर ट्रस्ट के सभागार में होने वाले शिवसेना के कार्यक्रम को हिन्दुत्व की ओर उसकी वापसी कहना ठीक नहीं होगा। उन्होंने कहा कि हर पार्टी की एक विचारधारा होती है। शिवसेना के शीर्ष नेतृत्व ने सत्ता हासिल करने के लिए कुछ समझौते जरूर किए हैं, लेकिन सामान्य शिवसैनिक कभी भी हिन्दुत्व की विचारधारा से दूर नहीं गया इसलिए पार्टी के कुछ शीर्ष नेताओं के राजनीतिक फैसलों से शिवसेना और हिन्दुत्व को अलग करना ठीक नहीं होगा। वरिष्ठ संपादक पाठक ने कहा कि शिवसैनिक हिन्दुत्व पर कायम हैं। कई बार राजनीतिक मजबूरियों के चलते मौन रहना पड़ता है। हालांकि शिवसेना का नेतृत्व क्या सोचता है यह आनेवाला समय ही बताएगा।