पटना, 05 दिसम्बर (हि.स.)। बिहार विधानसभा चुनाव में जीत के बाद पहली बार मंत्री बनीं जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की शीला मंडल ने स्वतंत्रता सेनानी बाबूवीर कुंवर सिंह पर एक दिन पहले विवादित बयान दिया था। इसे लेकर शनिवार को सासाराम कोर्ट में उनके खिलाफ शिकायत (परिवाद) दर्ज कराया गया है। सोमवार को इस पर सुनवाई होगी।
नीतीश सरकार में परिवहन मंत्री शीला मंडल के खिलाफ सासाराम कोर्ट में भैसही गांव के रहने वाले अखिलेश कुमार ने ऑनलाइन परिवाद पत्र दर्ज कराया है। परिवहन मंत्री शीला मंडल ने सीतामढ़ी में गुरुवार को एक कार्यक्रम में कहा था कि एक हाथ कट जाने पर राजपूतों के वीर कुंवर सिंह की इतनी वाहवाही हुई कि आज सभी लोग उनको जानते हैं। किताबों में उनके बारे में पढ़ाया जाता है। बच्चा-बच्चा जानता है, लेकिन सीतामढ़ी के शहीद हमारे रामफल मंडल को कोई नहीं जानता। उनको देश-समाज में जितना सम्मान मिलना चाहिए था, नहीं मिला। यही दूसरे वर्गों के होते तो इनका सब बाल-बच्चा लोग बड़ा-बड़ा पदाधिकारी होता। बड़ा राजनीतिज्ञ होता। शास्त्र में भी है-अति पिछड़ों के गुणों को दबाया जाता है और दूसरे वर्ग के कम गुणों को उजागर करके समाज में व्यंजन की तरह परोसा जाता है। उन्होंने कहा था कि अपनी जान की बलि देने वाले रामफल के परिवार को देखकर दुख होता है। घऱ नहीं है। सोचिए, इतनी बड़ी कुर्बानी और ये स्थिति। इन्हीं जैसों के बलिदान का फल है कि मेरी जैसी साधारण महिला आज इस स्थिति (मंत्री) में है।
मंत्री ने खेद जताया, कहा- किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का इरादा नहीं था
मंत्री शीला मंडल के इस बयान के बाद राजनीतिक दलों ने कड़ी आपत्ति जताई थी। इसके बाद उन्होंने सफाई देते हुए खेद प्रकट किया है। कहा, मेरा उदेश्य किसी को ठेंस पहुंचना नहीं था। मैंने शहीद रामफल मंडल के आवास पर वीर कुंवर सिंह के बारे में बयान दिया था। उस बयान पर आपत्ति आई है, जबकि मेरा इरादा कहीं से भी किन्ही के भावनओं को ठेंस पहुंचाने का नहीं था। मेरे दिल में वीर कुंवर सिंह के प्रति असीम श्रद्धा है। मेरे उस बयान से जिनकी भी भावना को ठेंस पहुंची है, उनके लिए मैं खेद प्रकट करती हूं।
सीतामढ़ी में 23 अगस्त 1943 को रामफल को मंडल को दी गई थी फांसी
रामफल मंडल को 23 अगस्त 1943 को फांसी दी गई थी। उन पर 24 अगस्त 1942 को बाजपट्टी चौक पर अंग्रेज सरकार के तत्कालीन सीतामढ़ी अनुमंडल अधिकारी हरदीप नारायण सिंह, पुलिस इंस्पेक्टर रामपूर्ति झा, हवलदार श्यामलाल सिंह और चपरासी दरबेशी सिंह को गड़ासा से काट डालने का आरोप था।