हमीरपुर : गुप्तकाल के पुरा वैभव को संजोये है शल्लेश्वर शिवमंदिर

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सोमवार से महोत्सव का होगा आगाज-हजारों श्रद्धालुओं की उमड़ेगी भीड़



हमीरपुर, 21 जुलाई (हि.स.)। जिले में शल्लेश्वर शिवमंदिर का उदय गुप्तकाल में हुआ था। इसके गर्भ में हजारों साल का इतिहास छिपा है। यहां इस मंदिर में सावन के पहले सोमवार को करीब दस हजार श्रद्धालुओं की भीड़ जलाभिषेक के लिए उमड़ेगी। मंदिर समिति के लोगों ने इसके लिये रविवार से तैयारियां शुरू कर दी है।
जिले के सरीला नगर में प्राचीन शल्लेश्वर मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। जहां वर्ष 1972 से अनवरत सावन मास में धार्मिक कार्यक्रम होते है। इस साल भी सावन मास में शल्लेश्वर शिवमंदिर में महोत्सव मनाया जा रहा है। इसके लिये मंदिर समिति ने तैयारी शुरू कर दी है।
समिति के महेन्द्र सिंह राजपूत उर्फ मंत्री ने बताया कि सावन मास के पहले सोमवार से ही प्राचीन शल्लेश्वर मंदिर में जलाभिषेक का कार्यक्रम होगा।
चंद्रवंशी क्षत्रियों ने बनवाया था शल्लेश्वर मंदिर
हमीरपुर के इतिहासकार डॉ भवानीदीन ने बताया कि शल्लेड्ढश्वर धाम मंदिर, प्राचीनतम शिवलिंग में से एक है। शिवमंदिर में बने मठ को देख प्रतीत होता है कि इसका निर्माण गुप्तकाल एवं चंदेलकाल के मध्य कराया गया था मगर भगवान के शिव लिंग को देखने से लगता है कि इसका निर्माण चंदेलकाल के पूर्व हुआ होगा। मठ में गुम्बद दीवार होने के कारण यह मंदिर चंदेलकालीन प्रतीत होता है। सरीला कस्बे के समाजसेवी महेन्द्र सिंह राजपूत ने बताया कि सरीला स्टेट की वंशावली महाराज छत्रसाल से शुरू हुयी थी जो आज यह सरीला स्टेट हमीरपुर की एक तहसील है।
बुन्देलखण्ड में गुप्तकाल को स्वर्ण काल माना गया क्योंकि गुप्तकाल में ही सरीला क्षेत्र में मंदिरों, गुफाओं व वास्तुकला का उदय हुआ था जबकि इसके पहले यहां मंदिरों का कोई उल्लेख नहीं है। गुप्तकाल में मंदिरों का निर्माण शुरू हुआ था और इसका विस्तार चंदेलकाल तक चरम सीमा पर रहा।
समाजसेवी ने बताया कि बुन्देलखण्ड में चंदेलों का साम्राज्य नौवीं शताब्दी में स्थापित हुआ था। चंदेलकाल में प्रथम शासक चंद्रवर्धन हुये जो चन्द्रवंशी क्षत्रिय थे। क्षेत्र में सर्वाधिक मंदिरों का निर्माण चंदेलकाल में हुआ था। राजा परमाल 1202 में कुतुबुद्दीन एबक से हारने के बाद कालिंजर चले गये थे। उनके जाने के बाद यह क्षेत्र मुस्लिम शासकों के आधीन रहा था।
सावन के महोत्सव में कांवडिय़े करेंगे जलाभिषेक
शल्लेश्वर शिवमंदिर समिति के सचिव महेन्द्र सिंह राजपूत उर्फ मंत्री ने रविवार को बताया कि सावन मास के पहले सोमवार से सावन महोत्सव का आगाज होगा। महोत्सव के पहले दिन कांवड़ यात्रा प्रारम्भ होगी। सरीला क्षेत्र के भेड़ी गांव में स्थित महेश्वरी माता मंदिर से कांवडिय़े जल लेकर जलालपुर, रहटिया, ममना व अन्य मंदिरों से होते हुये सरीला कस्बे के शल्लेश्वर शिवमंदिर आयेंगे। यहां वह गुप्तकालीन शिव लिंग पर जलाभिषेक करेंगे। उन्होंने बताया कि 29 जुलाई को चिराई माता मंदिर से भी श्रद्धालु दर्शन कर यहां मंदिर आयेंगे। पांच अगस्त को अखण्डानंद आशरम रिरुआ से हरसुंडी होते हुये मनकहरी से शल्लेश्वर शिवमंदिर में लोग कांवडिय़े जलाभिषेक करेंगे।
इसके अलावा 12 अगस्त को दानी बाबा आश्रम चंडौत से धगवां लल्लू का डेरा, दादों से सरीला शिवमंदिर में कांवडिय़ों की टोली जलाभिषेक करेगी। चार अगस्त को शल्लेश्वर शिवमंदिर में शिवमहापुराण की कथा का शुभारंभ कलश यात्रा कस्बे में निकालकर की जायेगी। शिवमहापुराण कथा के लिये आचार्य पं.धर्मेश शरण शास्त्री काशी विद्यापीठ यहां आयेंगे। 14 अगस्त को पूर्णाहुति देकर कन्या भोज का आयोजन शल्लेश्वर मंदिर परिसर झंडा बाजार सरीला में सम्पन्न होंगे।

 


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