न्यूयॉर्क, 17 अगस्त (हि.स.)। भारत ने कूटनीति में एक बार फिर पाकिस्तान को पटखनी दी है। पाकिस्तान और उसके सदाबहार ‘’आका’’ चीन अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद शुक्रवार को पंद्रह सदस्यीय सुरक्षा परिषद की बैठक में अलग-थलग पड़ गए। चीनी राजदूत झांघ जून ने संविधान के अनुछेद 370 और 35ए को ख़त्म कर जम्मू कश्मीर में मुस्लिम बहुल कश्मीर में मानवीय अधिकारों को लेकर इसे अन्तर्राष्ट्रीय रंग देने की भरपूर कोशिश की।
चीन ने सुरक्षा परिषद की अध्यक्ष जोऐना वरोनेकक के मुंह से भारत के खिलाफ दो शब्द उगलवाने की भरपूर कोशिश की लेकिन बैठक खत्म ख़त्म होने तक भारत के विरुद्ध दो शब्द कहना तो दूर, बैठक की कार्रवाई को रिकॉर्ड किया जाना भी उचित नहीं समझा गया। नियमानुसार इस बैठक में भारत और पाकिस्तान, दोनों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित नहीं किया गया था।
असल में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मुहम्मद कुरैशी ने सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष को पत्र लिखकर निवेदन किया था कि विषय की गंभीरता को समझते हुए परिषद की बैठक बुलाई जाए। यह बैठक बुलाना तो दूर, अनौपचारिक बैठक के मिनट भी नहीं उद्घोषित किए गए। वस्तुस्थिति को भांपते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अंतिम क्षणों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से बातचीत की और कुछ सौ लोगों से सुरक्षा परिषद के बाहर प्रदर्शन भी कराया लेकिन वह इस मामले को अन्तरराष्ट्रीय रंग देने में भी विफल रहे।
संयुक्त राष्ट्र में भारतीय राजदूत सैयद अकबरूद्दीन ने पत्रकारों से बातचीत में स्पष्ट किया कि संविधान के अनुछेद 370 के अनुसार जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इससे जुड़े मामले अंदरूनी हैं। यह एक सच्चाई है और पाकिस्तान को इसे स्वीकार लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर से सम्बद्ध सभी मामले द्विपक्षीय हैं। इस पर पाकिस्तान की राजदूत मलिहा लोधी ने भी कश्मीर में मानवीय अधिकारों के हनन का बहुत रोना रोया लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ पहले से हताश-निराश अन्तरराष्ट्रीय मीडिया पर कोई असर नहीं पड़ा।