रांची, 28 अक्टूबर (हि.स.) ।झारखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर विपक्षी ही नहीं सत्तारूढ़ गठबंधन के घटक दलों के बीच भी सीटों का बंटवारा आसान नहीं है।
विपक्षी गठबंधन के दो प्रमुख घटक झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस में न केवल सीटों की संख्या, बल्कि कुछ खास सीटों को लेकर भी बात बन नहीं रही है। कांग्रेस ने जहां करीब 30 सीटों पर दावा ठोका है, वहीं पार्टी के कुछ बड़े नेताओं की सीट झामुमो के साथ गठबंधन में फंस रही है। कांग्रेस व झामुमो के बीच करीब आधा दर्जन सीटों पर मामला फंस रहा है। सूत्रों के अनुसार ये सीटें हैं पाकुड़, घाटशिला, सिसई, मधुपुर, पांकी ,विश्रामपुर और गांडेय। पाकुड़ कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम की सीटिंग सीट है। इस सीट पर झामुमो की ओर से पूर्व विधायक अकील अख्तर दावा ठोक रहे हैं। घाटशिला विधानसभा सीट पर कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचु की नजर है। यह कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है, लेकिन वहां से झामुमो के रामदास सोरेन बलमुचु को हरा चुके हैं। अभी यह सीट भाजपा के कब्जे में है। यहां से लक्ष्मण टुडू विधायक हैं। कांग्रेस ने सिसई सीट को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ रखा है। इस सीट से राज्य की पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव चुनाव लड़ती रहीं हैं। कांग्रेस इस सीट को लेकर अड़ी हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव में झामुमो के झींगा मुंडा वहां दूसरे स्थान पर रहे थे। इसके चलते सिसई सीट गठबंधन की राह में रोड़ा बन रही है।
मधुपुर सीट पर झामुमो की दावेदारी है। जबकि इस सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता फुरकान अंसारी लड़ना चाह रहे हैं। कांग्रेस को अंसारी के लिये रास्ता निकालना है। क्योंकि उन्होंने गठबंधन के लिये लोकसभा चुनाव में गोड्डा सीट पर अपना दावा छोड़ दिया था। जबकि वह गोड्डा से सांसद रह चुके हैं। इसी तरह गांडेय, विश्रामपुर और पांकी सीट पर भी दोनों दल अपनी दावेदारी जता रहे हैं।
कांग्रेस और झामुमो में झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) को लेकर भी मतभिन्नता है। झामुमो गठबंधन से झाविमो को दूर रखना चाहता है। जबकि कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व झाविमो को साथ लेकर चलना चाहता है। झाविमो भी गठबंधन से दूरी बनाये हुये है। झामुमो वाम दलों और राष्ट्रीय जनता दल राजद को गठबंधन में शामिल करने के पक्ष में है। वामदल गठबंधन के नेताओं से 16 सीट मांग रहे हैं। जबकि राजद कम से कम 12 सीटों पर लड़ना चाहता है। राजद की ओर से 14 विधानसभा क्षेत्रों की सूची झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष व प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन को सौंपी है।
उधर एनडीए में भाजपा की सहयोगी आजसू ने इस बार 19 सीटों की मांग की है। आजसू ने 10 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। जबकि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा का कहना है कि आजसू को इस बार भी उतनी ही पास सीटें मिलेगी जितनी पिछले विधानसभा चुनाव में मिली थी। इसका मतलब उसे 10 के करीब सीट मिल सकती है। जाहिर है इससे आजसू संतुष्ट नहीं होगा। आजसू ने इस बार दस से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने का लक्ष्य रखा है। पार्टी की तैयारी उसी हिसाब से है। हटिया और चंदनक्यारी सीट को लेकर आजसू भाजपा पर दवाब बना सकती है। हटिया से नवीन जायसवाल का रास्ता रोकने के लिये आजसू पूरा दम लगायेगी। आजसू प्रमुख सुदेश महतो जायसवाल के साथ अपना पुराना हिसाब बराबर करने के लिये जरूर जोर लगायेंगे। पिछले विधानसभा चुनाव में जायसवाल ने झाविमो के टिकट पर हटिया से जीत दर्ज की थी। वह आजसू से झाविमो में गये थे और जीतने के बाद भाजपा में शामिल हो गये।
दरअसल 2014 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन के तहत हटिया सीट भाजपा के खाते में चली गयी थी। तब जायसवाल ने पाला बदल लिया था। उस चुनाव में सीमा शर्मा हटिया से भाजपा की उम्मीदवार थीं। वह इस बार भी पार्टी से टिकट के लिये जोर लगा सकती हैं। चंदनक्यारी सीट को लेकर भी आजसू अड़ सकती है। यह आजसू की जमीन रही है। यहां से पूर्व मंत्री उमाकांत रजक आजसू से टिकट के प्रबल दावेदार हैं। भाजपा के लिये भी यह सीट काफी अहम है। इस सीट पर राज्य के मंत्री अमर बाउरी काबिज हैं। पिछले चुनाव में बाउरी झाविमो के टिकट पर लड़ कर जीते थे। वह बाद में भाजपा में शामिल हुये और मंत्री बन गये। सत्ताधारी गठबंधन में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने भी इस बार भाजपा से छह सीटों की मांग की है। पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए के तहत भजपा 72, आजसू आठ और लोजपा एक सीट पर लड़ी थी। भाजपा ने 37 और आजसू ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। लोजपा का खाता नहीं खुला था।
इस बार एनडीए की एक अन्य घटक रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआइ) भी झारखंड में तीन-चार सीट मांग रही है। आरपीआइ के अध्यक्ष व केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले बीते दिनों रांची में थे। रांची प्रवास के दौरान उन्होंने संवाददाताओं से कहा है कि एनडीए के तहत यदि सीट नहीं मिली तो पार्टी 10-12 सीटों पर लड़ेगी। बाकी सीटों पर पार्टी भाजपा और उसके सहयोगी दलों का समथन करेगी। ऐसे में भाजपा के लिये गठबंधन में शामिल सभी दलों को संतुष्ट करना आसान नहीं होगा।