नई दिल्ली, 10 फरवरी (हि.स.)। रेणी तपोवन क्षेत्र में आई भीषण आपदा में राहत एवं बचाव कार्य युद्ध स्तर में चल रहा है। राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) की टीम ने बुधवार से ड्रोन और हेलीकॉप्टर के जरिये अत्याधुनिक तकनीक ब्लॉक टनल जिओ सर्जिकल स्कैनिंग का इस्तेमाल करके मलबे में दफन जिंदगियों की तलाश शुरू की है। देश की अनेक एजेंसियां भी राहत कार्य में लगी हुई हैं। इस सबके बावजूद रेस्क्यू ऑपरेशन अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पा रहा है क्योंकि दूसरी टनल में फंसे लगभग 30 से 35 मजदूरों तक पहुंचने का मार्ग अभी भी अवरुद्ध है।
प्रभावित क्षेत्र में पत्रकारों से वार्ता करते एसडीआरएफ के सेनानायक नवनीत सिंह भुल्लर ने बताया कि 7 फरवरी को सुबह लगभग 10.30 बजे ग्लेशियर टूटने और ऋषिगंगा प्रोजेक्ट के क्षतिग्रस्त होने से आये जल सैलाब के तत्काल बाद से ही एसडीआरएफ ने पूरी ताकत से रेस्क्यू कार्य शुरू कर दिया था। एसडीआरएफ ने श्रीनगर क्षेत्र में मोटरवोट एवं राफ्ट से सर्चिंग आरम्भ की। कई टुकड़ियों ने नदी के तटों पर भी तलाश जारी रखी। 9 फरवरी की रात्रि तक एसडीआरएफ ने अलग-अलग स्थानों से लगभग 32 शवों को खोज कर सिविल पुलिस के सुपर्द किया। सर्चिंग में गति लाने के लिए राज्य आपदा प्रतिवादन बल (एसएफआरएफ) से ड्रोन सर्चिंग एवं डॉग स्क्वायड की भी मदद ली। एसडीआरएफ की टीमों ने आपदा प्रभावित रेणी गांव में जाकर ग्रामीणों को रसद सामग्री पहुंचाई। साथ ही ग्रामीणों से वार्ता कर समस्याओं को जाना और तत्काल निराकरण के आदेश दिए।
उन्होंने बताया कि जहां एक ओर रेस्क्यू ऑपरेशन में एसडीआरएफ की उप महानिरीक्षक रिद्धिमा अग्रवाल नजर रख रही हैं वहीं समय-समय पर आवश्यक दिशा-निर्देश भी जारी किए जा रहे है। इस सबके बावजूद रेस्क्यू ऑपरेशन अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पा रहा है क्योंकि दूसरी टनल में फंसे लगभग 30 से 35 मजदूरों तक पहुंचने का मार्ग अभी भी अवरुद्ध है। सभी एजेंसियां रास्ते को साफ करके मजदूरों तक पहुंचने का प्रयास कर रही हैं। इस सर्चिंग को अंजाम तक तक पहुंचाने के लिए आज ही डीआईजी अग्रवाल ने विशेष प्रकार की तकनीक के इस्तेमाल की अनुमति दी है।
इस तकनीक में ड्रोन और हेलीकॉप्टर के जरिए ब्लॉक टनल का जियो सर्जिकल स्कैनिंग कराई जा रही है। इसमें रिमोट सेंसिंग के जरिए टनल की ज्योग्राफिकल मैपिंग कराई जाएगी जिससे टनल के अंदर मलबे की स्थिति के अलावा और भी कई तरह की जानकारियां स्पष्ट होंगी। थर्मल स्कैनिंग या फिर लेजर स्कैनिंग के जरिए तपोवन में ब्लॉक टनल के अंदर फंसे कर्मचारियों के बारे में एसडीआरएफ को जानकारी मिल पाएगी। चमोली तपोवन में ब्लॉक टनल के अंदर पहुंचने के लिए कई तकनीकों का सहारा लिया जा रहा है। डाटा कलेक्शन के लिए कई एजेंसियों को अलग-अलग तकनीकों के माध्यम से सुरंग के अंदर की जानकारियां इकट्ठा करने की जिम्मेदारी दी गई है। वर्तमान में साइंटिस्ट मैंपिंग से प्राप्त डिजिटल संदेशों को पढ़ने ओर समझने की कोशिश की जा रही है।
कैसे होती है टनल की जियोग्राफिकल मैपिंग
उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग के एक वरिष्ठ इंजीनियर ने बताया कि जब भी किस जगह पर टनल बनाई जाती है तो रिमोट सेंसिंग के जरिए वहां की ज्योग्राफिकल मैपिंग की जाती है जिससे जमीन के अंदर की भौगोलिक संरचना से संबंधित डाटा उपलब्ध होता है। उन्होंने बताया कि जमीन के अंदर की वस्तुस्थिति को अधिक सटीकता से समझने के लिए ड्रोन से जिओ मैपिंग के जरिए अधिक जानकारियां मिलती है। इसके अलावा जमीन के अंदर मौजूद किसी जीवित की जानकारी के लिए थर्मल स्कैनिंग की जाती है लेकिन थर्मल स्कैनिंग का दायरा बेहद कम होता है। इसके लिए लेजर के जरिए स्कैनिंग की जाती है जिससे जमीन के नीचे की थर्मल इमेज हमें मिल पाती है।