नई दिल्ली, 26 अगस्त (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने मोरेटोरियम अवधि के दौरान टाली गई ईएमआई पर ब्याज देने के मामले पर कोई रुख तय नहीं करने पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई है। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने सरकार और रिज़र्व बैंक को जल्द फैसला लेने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार सिर्फ व्यापारिक नज़रिए से नहीं सोच सकती। कोर्ट इस मामले पर 1 सितंबर को सुनवाई करेगा।
यह याचिका गजेन्द्र शर्मा ने दायर करके कहा है कि लॉकडाउन के दौरान लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है और बैंक उनसे लोन का ब्याज वसूल रहे हैं। यह लोगों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में ईएमआई से छूट के दौरान लोन पर ब्याज नहीं वसूलने का आदेश दिया जाए। इस पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि सरकार अब इसे ग्राहकों और बैंक के बीच का मसला बताकर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती है। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि ग्राहकों को इसका फायदा मिले। पिछले 12 जून को कोर्ट ने वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे संयुक्त बैठक कर ये बताएं कि स्थगित की गई ईएमआई में ब्याज का हिस्सा लेंगे कि नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि सुनवाई इस मसले पर नहीं हो रही है कि स्थगित की गई ईएमआई में ब्याज का हिस्सा लिया ही न जाए। विषय यह है कि स्थगित ईएमआई पर भी बैंक ब्याज न लगा दें। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने कहा था कि सभी बैंक ये चाहते हैं कि छह महीने तक की मोरेटोरियम अवधि के दौरान ब्याज की माफी नहीं हो।
रिजर्व बैंक ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि 6 महीने की मोरेटोरियम अवधि के दौरान ब्याज माफी की मांग को गलत बताया है। रिजर्व बैंक ने कहा-श है कि लोगों को 6 महीने का ईएमआई अभी न देकर बाद में देने की छूट दी गई है, लेकिन इस अवधि का ब्याज भी नहीं लिया गया तो बैंकों को 2 लाख करोड़ रु का नुकसान होगा। पिछले 26 मई को सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक को नोटिस जारी किया था। याचिका में कहा गया है कि बैंकों ने किश्त चुकाने में 3 महीने की छूट दी है, लेकिन इसके लिए ब्याज वसूल रहे हैं। इससे ग्राहकों पर बोझ पड़ेगा। 27 मार्च को रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों को तीन महीने तक ईएमआई न वसूलने का निर्देश दिया था। रिजर्व बैंक ने 1 मार्च से 31 मई तक की ईएमआई की देनदारी से छूट दी थी। उसके बाद रिजर्व बैंक ने ईएमआई वसूलने से तीन महीने की और छूट दे दी।