नई दिल्ली, 09 जुलाई (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट रोहिंग्या मामले पर अगस्त में अंतिम सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को लिखित में दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि लिखित में दलीलें पेश होने के बाद अंतिम सुनवाई अगस्त माह में होगी। चार अक्टूबर,2018 को सुप्रीम कोर्ट ने असम में रह रहे सात रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार भेजे जाने के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी थी।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार की इस दलील को स्वीकार कर लिया था कि सात रोहिंग्या मुसलमान फॉरेनर्स एंटरटेनमेंट के तहत दोषी पाए गए हैं और उन्हें अवैध अप्रवासी घोषित किया जा चुका है। 11 मई,2018 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वो शिविरों में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों की शिकायतों के निपटारे के लिए नोडल अधिकारीयों की नियुक्त करें। उन नोडल अधिकारियों के पास रोहिंग्या मुसलमान स्वास्थ्य या शिक्षा संबंधी समस्याओं की शिकायत कर सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कालिंदी कुंज और आसपास के क्षेत्राधिकार वाले एसडीएम को आदेश दिया था कि वे रोहिंग्या मुसलमानों की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराएं।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि आधार कार्ड नहीं होने से रोहिंग्या मुसलमानों को काफी परेशानी हो रही है। उन्हें दवाइयां नहीं मिल रही हैं। स्कूल में दाखिला नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा था कि रोहिंग्या मुसलमानों को अगर सरकार रिफ्युजी कार्ड नहीं दे रही है तो कम से कम एलियन कार्ड जरूर देना चाहिए। सुनवाई के दौरान वकील राजीव धवन ने कहा था कि रोहिंग्या मुसलमानों को उनकी जरूरत के हिसाब से मदद करनी चाहिए न कि स्थानीय लोगों से तुलना के आधार पर।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि याचिकाकर्ता एक एजेंडे के तहत यह दावा कर रहे हैं कि बच्चे मर रहे हैं और उन्हें दवाइयां उपलब्ध नहीं हो रही हैं। उन्हें यहां के नागरिकों के बराबर सुविधाएं मिल रही हैं। प्रशांत भूषण ने कहा था कि रोहिंग्या मुसलमानों के साथ भेदभाव बरता जा रहा है। उनकी इस दलील का केंद्र की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने विरोध करते हुए कहा था कि ये गलत है। किसी भी किस्म का भेदभाव नहीं बरता जा रहा है। पिछले 19 मार्च को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि शरणार्थी कैंप में स्थिति बड़ी भयावह है। बच्चों की मौत हो रही है। कैंप में शौचालय तक नहीं हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वो शरणार्थी कैंपों में विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें। पिछले 16 मार्च को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अतिरिक्त हलफनामा दायर किया था।
हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि कोर्ट केंद्र सरकार को बाध्य नहीं कर सकती है कि रोहिंग्या मुसलमानों को भारत आने दिया जाए। अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि जिनके पास वैध ट्रैवल सर्टिफिकेट होगा बस उन्हीं को आने की अनुमति होगी। रोहिंग्या मुसलमान अगर बिना वैध ट्रैवल सर्टिफिकेट के भारत में आते हैं तो वह राष्ट्रहित में नहीं होगा। केंद्र ने कहा है कि भारत में शरणार्थियों को पहचान पत्र देने की कोई नीति नहीं है। हलफनामे में केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ताओं के इस आरोप को खारिज किया कि शरणार्थियों पर मिर्च स्प्रे फेंककर भगाया जा रहा है। पिछले 31 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर यथास्थिति बहाल रखने का आदेश दिया था।
कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वो सरकार की रोहिंग्या मुसलमानों से निपटने के लिए केंद्र की नीति के बारे में सूचित करें। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस बात को नोट किया था कि किसी भी शरणार्थी को निलंबित नहीं किया गया है। केंद्र सरकार ने कहा था कि उसने किसी भी शरणार्थी को अब तक निलंबित नहीं किया। इसलिए अभी उनके लिए कोई आपातस्थिति नहीं उत्पन्न हुई है। केंद्र की ओर से एएसजी तुषार मेहता ने कहा था कि सरकार अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी का निर्वहन करेगी, ये एक अंतरराष्ट्रीय मसला है।