नई दिल्ली, 24 अप्रैल (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सभी राज्यों में दर्ज एफआईआर में किसी भी तरह की कार्रवाई पर तीन हफ्ते की रोक लगा दी है। कोर्ट ने अर्णब गोस्वामी को निर्देश दिया है कि वो इस दौरान ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर करें। कोर्ट ने केंद्र सरकार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ औऱ राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने नागपुर में दर्ज एफआईआर को मुंबई ट्रांसफर करने का आदेश दिया। कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी के दफ्तर की सुरक्षा का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता अपनी याचिका में संशोधन करें। सभी एफआईआर को एकसाथ जोड़े जाने की प्रार्थना करें, उसके बाद आगे की सुनवाई होगी। एक ही मामले की जांच कई जगह नहीं हो सकती है।
सुनवाई की शुरुआत में वीडियो कांफ्रेंसिंग वाले स्क्रीन पर अर्णब गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और सिद्धार्थ भटनागर पेश हुए। स्क्रीन पर जब विवेक तन्खा छत्तीसगढ़ की ओर से, कपिल सिब्बल महाराष्ट्र की ओर से, मनीष सिंघवी राजस्थान की ओर से दिखे तो जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि एक नए मामले के लिए इतने सारे वकील क्यों आए हैं। सुनवाई के दौरान मुकुल रोहतगी ने पालघर की घटना के बारे में बताते हुए कहा कि 12 पुलिसवालों की मौजूदगी में 200 लोगों की भीड़ ने दो साधुओं की हत्या कर दी। किसी ने पूरी वारदात का वीडियो बना लिया। पर दुख इस बात का है पुलिस मूकदर्शन बनी रही, मानो इस अपराध में उनकी मिलीभगत हो।
अर्णब ने इस पर 45 मिनट का शो किया। कुछ चुभते हुए सवाल किए। पूछा कि कांग्रेस अध्यक्ष अल्पसंख्यकों की हत्या पर बोलती हैं। साधुओं की हत्या पर चुप हैं। जवाब में कई राज्यों में एफआईआर करवा दी गई।
रोहतगी ने कांग्रेस नेताओं के ट्वीट का हवाला दिया। उन्होंने अर्णब और उनकी पत्नी पर हुए हमले का हवाला दिया। रोहगतगी ने कहा कि सभी जगह दर्ज एफआईआर की भाषा एक जैसी है। साफ है कि योजनाबद्ध तरीके से उन्हें परेशान किया जा रहा है। रोहतगी ने कहा कि अर्णब गोस्वामी और उनकी पत्नी पर हमला किया गया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासित प्रदेशों में एफआईआर दर्ज करवाए गए हैं, ये प्रेस की आजादी पर हमला है। सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी की हमेशा रक्षा की है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ से नोटिस भी आ चुका है कि अर्णब वहां पेश हों। मेरे मुवक्किल को इन एफआईआर के मामले में राहत दी जाए। कोर्ट यह भी साफ करे कि मानहानि का मुकदमा सिर्फ सीधे प्रभावित व्यक्ति कर सकता है।
महाराष्ट्र सरकार की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने अर्णब का बयान हिन्दी में पढ़कर सुनाया। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक हिंसा फैलाने की बातें अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में नहीं आ सकती हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में दर्ज एफआईआर निरस्त नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि प्रथम दृष्टया ये अपराध हैं जिनकी जांच होनी चाहिए।
सिब्बल ने पूछा कि क्या अर्णब गोस्वामी विशेष व्यक्ति हैं कि उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकता है। अगर कांग्रेस के लोगों ने एफआईआर दर्ज कराया है तो उसमें क्या समस्या है। क्या बीजेपी के लोग एफआईआर दर्ज नहीं कराते हैं। पुलिस को काम करने दिया जाए। देखेंगे कि मामला बनता है या नहीं। कन्हैया कुमार के केस में भी जांच हुई थी, तो इसमें क्यों नहीं? ज्यादा से ज्यादा सभी एफआईआर को एकसाथ जोड़ा जा सकता है ताकि एक जगह जांच हो, लेकिन एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता है।
सिब्बल ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है कि धारा 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट से दखल की मांग की जाए। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कई राज्यों में एफआईआर दर्ज हुई है। निश्चित रूप से धारा 32 का मामला बनता है, जहां सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है। सिब्बल ने कहा कि एफआईआर रद्द करने या जमानत देने जैसा आदेश नहीं दिया जाना चाहिए।
राजस्थान सरकार की ओर से वकील मनीष सिंघवी ने कहा कि धारा 153ए और 153बी गंभीर गैरजमानती धाराएं हैं। पुलिस को जांच से नहीं रोका जा सकता है। सिंघवी ने कहा कि अर्णब गोस्वामी ने जो कहा वो धारा 153ए के दायरे में स्पष्ट रूप से आते हैं। ये प्रथम दृष्टया जांच का मामला है। किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कहीं भी एफआईआर दर्ज की जा सकती है।
छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा ने कहा कि यह ब्राडकास्ट लाइसेंस के दुरुपयोग का मामला है। याचिकाकर्ता सांप्रदायिक वैमस्य फैला रहा है। लॉकडाउन के समय में माहौल खराब कर रहा है। इन्हें कोई रियायत नहीं दी जानी चाहिए। तन्खा ने कहा कि लाखों लोग इनके बयानों से प्रभावित हुए हैं।
रोहतगी ने कहा कि सिर्फ कांग्रेस के कार्यकर्ता इससे प्रभावित हुए हैं। साधुओं की हत्या पर जब देश गुस्से में था तो एक पार्टी की चुप्पी पर सवाल क्यों न उठे। क्यों न इस चुप्पी को मिलीभगत माना जाए। कोर्ट ने कहा कि हम सभी एफआईआर में किसी भी तरह की कार्रवाई में फिलहाल तीन हफ्ते की रोक लगा देते हैं। तब तक याचिकाकर्ता अपनी याचिका में संशोधन करें। सभी एफआईआर को एकसाथ जोड़ें जाने की प्रार्थना करे, उसके बाद आगे की सुनवाई होगी। एक ही मामले की जांच कई जगह नहीं हो सकती है।
कपिल सिब्बल ने कहा कि कोर्ट को ये स्पष्ट करना चाहिए कि उसके आदेश का याचिका की मेरिट पर कोई असर नहीं होगा। तब कोर्ट ने कहा कि अर्णब गोस्वामी को देश के कई हिस्सों में अदालती कार्यवाही में नहीं बुलाया जा सकता है। मुकुल रोहतगी ने कहा कि अर्णब गोस्वामी के खिलाफ नागपुर में जो एफआईआर दर्ज की गई है वो मुंबई ट्रांसफर करने का आदेश दिया जाए और उसकी जांच अर्णब की ओर से हमले को लेकर दर्ज एफआईआर के मामले के साथ ही हो। हमारे चैनल के दफ्तर को भी सुरक्षा दी जाए।
अर्णब गोस्वामी ने अपनी याचिका में अपने खिलाफ अलग-अलग राज्यों में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी है। अर्णब गोस्वामी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ टिप्पणी करने पर महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में 16 एफआईआर दर्ज की गई हैं। याचिका में कहा गया है कि उनके लिए कई सारी कोर्टों में जाकर पेश होना संभव नहीं है। याचिका में कहा गया है कि ये प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन की कोशिश है।