ईएमआई न देने पर बैंक खाता एनपीए घोषित नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली, 03 सितम्बर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने लोन के ईएमआई का भुगतान न होने के आधार पर किसी भी बैंक खाते को एनपीए घोषित नहीं करने का अंतरिम आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर अगली सुनवाई 10 सितम्बर को करेगा।
आज सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जब मोरेटोरियम योजना लाई गई तो मकसद यह था कि व्यापारी उपलब्ध पूंजी का ज़रूरी इस्तेमाल कर सकें। उन पर बैंक की किश्त का बोझ न हो। मकसद यह नहीं था कि ब्याज माफ कर दिया जाएगा। कोरोना के हालात का हर सेक्टर पर अलग-अलग असर पड़ा है। फार्मा, आईटी जैसे सेक्टर ने अच्छा प्रदर्शन भी किया है। तब कोर्ट ने पूछा कि हमारे सामने सवाल यह रखा गया है कि आपदा राहत कानून के तहत क्या सरकार कुछ करेगी। हर सेक्टर को स्थिति के मुताबिक राहत दी जाएगी। तब मेहता ने कहा कि 6 अगस्त के रिजर्व बैंक के सर्कुलर में बैंकों को लोन वसूली प्रक्रिया तय करने की छूट दी गई है। एक कमेटी भी बनाई गई है जो 6 सितम्बर को रिपोर्ट देगी।
सुनवाई के दौरान बैंकों के समूह के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि हर सेक्टर के लिए भुगतान का अलग प्लान बनाया जाएगा। उन्हें नया लोन भी दिया जाएगा। हमें लोन लेने वाले सामान्य लोगों के लिए भी सोचना है। उनकी समस्या उद्योग से अलग है। तब कोर्ट ने कहा कि एक तरफ मोरेटोरियम, दूसरी तरफ ब्याज पर ब्याज। दोनों साथ में नहीं चल सकते। तब मेहता ने कहा कि सर्कुलर कहता है कि लोन रिस्ट्रक्चरिंग उसी की होगी, जिसका एकाउंट फरवरी तक डिफॉल्ट में नहीं था। तब कोर्ट ने पूछा कि यानि जिसने पहले डिफॉल्ट किया था, फिर लॉकडाउन में और ज़्यादा दिक्कत में आ गया। उसको कोई राहत नहीं दी जाएगी। तब साल्वे ने कहा कि जिन्होंने पहले भी डिफॉल्ट किया था, वैसे लोग बैंक से अलग से राहत मांग सकते हैं। उन्हें कोरोना वाली योजना का लाभ नहीं मिलेगा। तब कोर्ट ने कहा कि सब कुछ बैंक पर नहीं छोड़ा जा सकता। हरीश साल्वे ने कहा कि रिजर्व बैंक एक कमिटी बनाए, जिसमें बैंकों के प्रतिनिधि हों।
सुनवाई के दौरान पिछले 2 सितम्बर को केंद्र सरकार ने कहा था कि यह ज़रूरी है कि लोगों को लोन के भुगतान में राहत दी जाए। अर्थव्यवस्था को दोबारा मजबूती देने के लिए हर सेक्टर को मजबूत करना पड़ेगा। लेकिन बैंकिंग सेक्टर की उपेक्षा कर के अर्थव्यवस्था को नहीं सुधारा जा सकता। याचिकाकर्ता के वकील राजीव दत्ता ने कहा था कि जिन्होंने बैंक के कहने पर सुविधा का लाभ लिया। उनसे अब ब्याज पर ब्याज नहीं वसूला जा सकता। दूसरे देशों में नागरिकों की मदद की जा रही है। यहां बैंक कोरोना से फायदा कमाना चाहते हैं। रिजर्व बैंक भी इसे शह दे रहा है।
रियल एस्टेट कंपनियों के लिए वकील सीए सुंदरम ने कहा था कि अगर ब्याज लिया भी जाना है तो उसकी दर कम होनी चाहिए। उतनी होनी चाहिए जिस दर पर बैंक अपने यहां जमा खाता रखने वालों को ब्याज देते हैं। सुनवाई के दौरान एसोसिएशन ऑफ पावर प्रोड्यूसर्स के वकील केवी विश्वनाथन ने कहा था कि हालात सामान्य नहीं हैं। इसे सिर्फ बैंकिंग से जुड़ी समस्या के तौर पर नहीं देखा जा सकता। बैंक बस ज़रूरी ब्याज लें। सरकार लोगों की मदद करे। इसका आदेश देने का सुप्रीम कोर्ट को अधिकार है। तब कोर्ट ने विश्वनाथन से पूछा था कि हम किस तरह की राहत दे सकते हैं? विश्वनाथन ने कहा था कि बैंकों से कहा जाए कि मुनाफा छोड़ दें। पावर सेक्टर की मांग में बहुत कमी आई है। बैंक हर सेक्टर के साथ बैठ कर ऐसा हल निकालें जिससे दोनों का नुकसान न हो। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।
शॉपिंग सेंटर्स एसोसिएशन की ओर से वकील रंजीत कुमार ने कहा था कि रिजर्व बैंक गवर्नर खुद कह चुके हैं कि हर सेक्टर की स्थिति खराब है। जब बार, थिएटर नहीं चल रहे तो कमाई कैसे होगी। हर सेक्टर के लिए अलग राहत तय होनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि मोरेटोरियम का लाभ लेने वाले लोन 31 अगस्त के बाद एनपीए माने जाएंगे। आदेश में इसका ध्यान भी रखा जाए।
केंद्र सरकार ने पिछले 1 सितम्बर को कहा था कि मोटोरियम अवधि दो साल बढ़ाई जा सकती है। पिछले 26 अगस्त को कोर्ट ने इस मामले पर कोई रुख तय नहीं करने पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने सरकार और रिज़र्व बैंक को जल्द फैसला लेने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा कि सरकार सिर्फ व्यापारिक नज़रिए से नहीं सोच सकती।
रिजर्व बैंक ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि 6 महीने की मोरेटोरियम अवधि के दौरान ब्याज माफी की मांग को गलत बताया है। रिजर्व बैंक ने कहा-श है कि लोगों को 6 महीने का ईएमआई अभी न देकर बाद में देने की छूट दी गई है, लेकिन इस अवधि का ब्याज भी नहीं लिया गया तो बैंकों को 2 लाख करोड़ रु का नुकसान होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 26 मई को केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक को नोटिस जारी किया था। याचिका में कहा गया है कि बैंकों ने किश्त चुकाने में 3 महीने की छूट दी है, लेकिन इसके लिए ब्याज वसूल रहे हैं। इससे ग्राहकों पर बोझ पड़ेगा। 27 मार्च को रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों को तीन महीने तक ईएमआई न वसूलने का निर्देश दिया था। रिजर्व बैंक ने 1 मार्च से 31 मई तक की ईएमआई की देनदारी से छूट दी थी। उसके बाद रिजर्व बैंक ने ईएमआई वसूलने से तीन महीने की और छूट दे दी।
याचिका गजेन्द्र शर्मा ने दायर किया है। याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान जब लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है बैंक उनसे लोन का ब्याज वसूल रहे हैं। यह लोगों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में ईएमआई से छूट के दौरान लोन पर ब्याज नहीं वसूलने का आदेश दिया जाए।