एक साथ मनाई जा रही है शनि जयंती व सोमवती अमावस्या, 149 साल बाद बना संयोग
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या पर सोमवार को स्नान पर्व सोमवती अमावस्या और शनि जयंती का पर्व एक साथ मनाया जा रहा है। इस अवसर पर प्रदेशभर में श्रद्धालु मंदिरों में दर्शन-पूजन और नर्मदा-शिप्रा समेत पवित्र नदियों में स्नान कर दान-पुण्य का लाभ ले रहे हैं। शनि जयंती और सोमवती अमावस्या एक साथ पडऩे का यह दुर्लभ संयोग 149 साल बाद बना है।
भोपाल, 03 जून (हि.स.)। ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या पर सोमवार को स्नान पर्व सोमवती अमावस्या और शनि जयंती का पर्व एक साथ मनाया जा रहा है। इस अवसर पर प्रदेशभर में श्रद्धालु मंदिरों में दर्शन-पूजन और नर्मदा-शिप्रा समेत पवित्र नदियों में स्नान कर दान-पुण्य का लाभ ले रहे हैं। शनि जयंती और सोमवती अमावस्या एक साथ पडऩे का यह दुर्लभ संयोग 149 साल बाद बना है।
ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, ज्योष्ठ कृष्ण पत्र की अमावस्या सोमवार को पडऩे से इसका महत्व बढ़ गया है। सोमवती अमावस्या स्नान का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। वहीं, शनिदेव ने सोमवार को केतु के साथ सोमवार को अलसुबह गोचर में प्रवेश किया, इसीलिए शनि जयंती भी सोमवार को ही मनाई जा रही है। भोपाल स्थित ज्योतिष संस्थान मठ के ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद गौतम ने बताया कि शनि जयंती और सोमवती अमावस्या का यह दुर्लभ संयोग 149 साल बाद बना है। मध्यप्रदेश में मां नर्मदा के विभिन्न तट पर सुबह से ही श्रद्धालुओं का पहुंचना शुरू हो गया था। लोग मां नर्मदा में डुबकी लगाकर अमावस्या स्नान पर्व का लाभ अर्जित कर रहे हैं। होशंगाबाद, ओंकारेश्वर, उज्जैन में शिप्रा में हजारों लोगों ने स्नान कर दान-पुण्य का लाभ लिया। वहीं, शनि मंदिरों में अखंड रामायण पाठ के साथ-साथ पूजन-अर्चन का दौर जारी है। यह सिलसिला देर रात चलेगा। कई जगह भंडारों और प्रसादी वितरण के कार्यक्रम भी आयोजित किये जा रहे हैं।भारतीय पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या सोमवार को मनाई जा रही है। पंडित प्रदीप कुमार गीते के अनुसार इस दिन सूर्य एवं छाया पुत्र शनि का जन्म हुआ था। सूर्य एवं चंद्रमा जब वृषभ राशि में होते हैं, उस समय शनि जयंती आती है। इस समय शनि हमेशा वक्री होते हैं। इस वर्ष शनि धनु राशि में वक्री होकर गोचर है। शनि के साथ केतु का गोचर भी हो रहा है। शनि के केतु के साथ गोचर में शनि जयंती का पर्व और सोमवती स्नान पर्व 149 साल पहले 30 मई 1870 को मनाया गया था।