लखनऊ/एटा, 10 दिसम्बर(हि.स.)। उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने राज्य में उपलब्ध सभी निष्क्रांत व शत्रु सम्पत्तियों का ब्यौरा ऑनलाइन करने का निर्णय लिया है। सरकार ने जिलाधिकारियों को ऐसी सभी सम्पत्तियों का पूरा ब्यौरा व उनकी स्थिति की जानकारी ऑनलाइन करने के निर्देश दिये हैं। सरकार की इस पहल से भू-माफियाओं के हाथों पहुंची ऐसी सम्पत्तियों को निकाला जा सकेगा।
क्या है निष्क्रांत व शत्रु सम्पत्ति
1947 में साम्प्रदायिक आधार पर हुए देश के विभाजन के बाद देश के अनेक मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गये। पाकिस्तान में उन्होंने भारत में छोड़ी अपनी सम्पत्तियों के मुआवजे में वहां भूमि आदि प्राप्त कीं।
इसी प्रकार पाकिस्तान से आये सिंधी आदि हिन्दू विस्थापितों को भारत सरकार ने उनके द्वारा पाकिस्तान में छोड़ी सम्पत्तियों के मुआवजे दिये। किन्तु पाकिस्तान में जहां ऐसी सम्पत्तियां वहां के स्थानीय मुसलमानों व भारत से गये मुसलमानों के अधिकार में पहुंच गयीं, भारत सरकार ने ऐसी सभी सम्पत्तियों का पाकिस्तान से आये विस्थापितों को आबंटित करने की जगह उन्हें सुरक्षित रखने की नीति अपनाई। यह विस्थापन उत्तरप्रदेश (तब के संयुक्त प्रांत) में सर्वाधिक हुआ। कारण, पाकिस्तान के निर्माण के प्रश्न पर हुए मतदान में मुस्लिम लीग के पक्ष में मतदान करनेवाले सर्वाधिक मतदाता उत्तरप्रदेश में ही थे।
भारत सरकार ने भारत छोड़कर पाकिस्तान गये ऐसे समस्त व्यक्तियों की सम्पत्ति को निष्क्रांत संपत्ति मान उसका ‘कस्टोडियन आफ इवैक्यू प्रोपर्टीज एक्ट’ के अंतर्गत अधिग्रहण कर लिया। 1965 के पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के उपरान्त 1968 में इन सम्पत्तियों को ‘शत्रु सम्पत्तियां घोषित कर इनका अधिग्रहण कर लिया।
तुष्टीकरण की राजनीति ने कराया शत्रु सम्पत्तियों पर भू-माफियाओं का कब्जा
इसके बाद की तुष्टिकरण की राजनीति ने इन ‘शत्रु सम्पत्तियों’ पर ध्यान देना भी जरूरी नहीं समझा। परिणाम, इनमें से अनेक सम्पत्तियां जहां इन सम्पत्तियों के अधिग्रहण के लिए बनाये गये लचर कानूनों को धता बता पाकिस्तान गये व्यक्ति के सही-गलत वारिसों के पास पहुंच गयीं तो अनेक सम्पत्तियों पर लोगों के अवैध कब्जे हो गये।
अनेक सम्पत्तियां तो ऐसी भी थीं जो एक से अनेक बार उनके नकली स्वामियों द्वारा बेची या गिरवी रखी गयीं। राजा महमूदाबाद वनाम् भारत सरकार के चर्चित मामले में इवैक्यू व एनीमी सम्पत्तियों के तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों द्वारा बनाये लचर कानूनों के चलते जब 2017 में सर्वोच्च न्यायालय से भी उत्तराधिकार मिल गया तो भौचक तत्कालीन मोदी सरकार ने 4 मार्च 2017 को संसद में अधिनियम पारित कर एक पाकिस्तान जा चुके व्यक्ति के कथित उत्तराधिकारी के हाथों जा रही लखनऊ जैसे शहर की अरबों-खरबों की सम्पत्ति को रोका है।
तुष्टीकरण ने नहीं बनने दिया प्रबल कानून
जानकार आश्चर्य होता है कि भारत सरकार ने 1968 तक इवैक्यू सम्पत्तियों के विषय में कोई ठोस कानून ही नहीं बनाया था। यदि राजा महमूदाबाद की सम्पत्तियों का चर्चित विवाद सामने न आया होता तो आज भी इस सम्बन्ध में कोई कानून नहीं होता।
यह था राजा महमूदाबाद का मामला
भारत विभाजन में मुख्य भूमिका निभानेवाले लखनऊ के तत्कालीन ताल्लुकेदार राजा महमूदाबाद अमीर मुहम्मद खान भारत विभाजन के बाद 1957 में पाकिस्तान चले गये। इनका 1973 में लंदन में निधन हुआ।
अमीर मुहम्मद के कथित रूप से भारत में अपनी मां के साथ रहे पुत्र आमिर मुहम्मद इस काल में कैम्ब्रिज में अध्ययन कर रहे थे। इन्होंने भारत लौटने के बाद अपने पिता की सम्पत्तियों पर अपनी दावेदारी की। इस दावेदारी के बाद लचर इवैक्यू व शत्रु सम्पत्ति अधिनियम के चलते जब सिविल कोर्ट ने इन्हें इन सम्पत्तियों का उत्तराधिकारी स्वीकारा तो भारत सरकार को चेत हुआ।
किन्तु इस चेत के बाद भी 1981 की तत्कालीन इन्दिरागांधी के नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार ने किसी सबल कानून का निर्माण करने के स्थान पर इनसे इनकी जब्त सम्पत्ति का 25 प्रतिशत भाग लौटा देने की शर्त पर समझौते के प्रयास ही किये।
यह समझौता परवान नहीं चढ़ा तो इस कारण कि आमिर मुहम्मद को भारत के लचर कानूनों के मध्य अपनी समस्त सम्पत्ति पा जाने की आशाएं थीं। अतः वे न्यायालय चले गये। और अफसोस, शत्रु सम्पत्ति को जब्त करने के लिए बनाये गये इन लचर कानूनों के चलते न्यायालय ने भी इन्हें इन सम्पत्तियों का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
जिलों में बिखरी सम्पत्तियां आज भी हैं भ-ूमाफियाओं के पास
भारत सरकार राजा महमूदाबाद के बहुचर्चित हुए मामले में तो अधिनियम पारित कराकर इन सम्पत्तियों को बचाने में सफल हो गयी। किन्तु उत्तरप्रदेश के विभिन्न जिलों में बिखरी पड़ीं राजा महमूदाबाद जैसे अन्य निष्क्रांत व्यक्तियों की सम्पत्तियां कहां और किस हाल में हैं- इसे कोई पूछनेवाला नहीं।
प्रदेश भर में बिखरी इन ‘शत्रु सम्पत्तियों’ की वर्तमान में क्या स्थिति है, यह किनके कब्जे में हैं? इसे जानने के लिए जब ‘हिन्दुस्थान समाचार’ ने नमूना सैम्पल के लिए प्रदेश के कम मुस्लिम जनसंख्यावाले जिला ‘एटा’ में स्थित ‘शत्रु सम्पत्तियों’ के विषय में पड़ताल की तो चैंकानेवाली जानकारी सामने आयी।
जिला प्रशासन द्वारा इस सम्बन्ध में दी गयी आधिकारिक सूचना के अनुसार इस न्यून मुस्लिम जनसंख्यावाले जनपद में (वर्ष 2008 में इससे कासगंज के अलग जनपद के रूप में सृजित हो जाने के बाद) कुल 74 निष्क्रमित (इवैक्यू) सम्पत्तियां हैं। जिला प्रशासन इनमें से मात्र 31 सम्पत्तियों को ही चिह्नित कर सका है। अलीगंज स्थित 2 सम्पत्तियों पर 2017 के अधिनियम के प्रभावी हो जाने के बाद भी सिविल न्यायालय में मुकदमे चल रहे हैं। जबकि 41 सम्पत्तियां ऐसी हैं, जिन्हें चिह्नित ही नहीं किया जा सका है। कल्पना करें कि जब न्यून मुस्लिम जनसंख्यावाले इस एटा जनपद का यह हाल है तो उन जनपदों का क्या हाल होगा जहां मुस्लिम समाज की खासी संख्या के चलते ऐसी निष्क्रिांत सम्पत्तियों की संख्या भी अधिक होगी।
एक जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में लगभग 1519 शत्रु सम्पत्तियां हैं। इनमें से अधिकांश अतिक्रमणकारियों व भूमाफियाओं के कब्जों में पहुंच चुकी हैं। अनेक सम्पत्तियों को उनके फर्जी वारिसों के नाम पर एक से अधिक बार खुर्द-बुर्द भी किया जा चुका है। किन्तु प्रदेश सरकार का अमला इन भूमाफियाओं व अतिक्रमणकारियों के सामने इतना असहाय है कि वह इन सम्पत्तियों को स्वाधीनता के 70 वर्ष बाद भी चिह्नित तक नहीं कर सका है।
ऐसे में उ.प्र. सरकार का ऐसी सभी सम्पत्तियों को ऑनलाइन करने का आदेश इन सम्पत्तियों के विषय में सम्यक् जानकारी देनेवाला आदेश हो सकता है, अगर इसका जिलाधिकारियों द्वारा ठीक से अनुपालन किया जाए। साथ ही यह आदेश जनसामान्य को भी यह अवगत कराएगा कि जिस भूभाग पर भूमाफियाओं ने नाजायज कब्जा कर भव्य परिसर बना रहे हैं, उनकी सही व वास्तविक स्थिति क्या है।
आवश्यकता है कि प्रदेश सरकार ‘शत्रु सम्पत्ति’ के रूप में घोषित इन समस्त सम्पत्तियों को चिह्नित कराने के साथ-साथ अपने प्रभावी कब्जे में लेने की कार्यवाही भी करे। साथ ही इसके सम्बन्ध में बने कानूनों को समाप्त कर इन सम्पत्तियों को समाज के सम्पत्तिहीन लोगों में वितरण कराए। आखिर कितने वर्ष तक ऐसी सम्पत्तियों को सुरक्षित रखने का बोझ उठाया जाएगा? तथा इन सम्पत्तियों में और कितने राजा महमूदाबाद कब-कब भारत सरकार का सरदर्द बनेंगे- कहना मुश्किल है।