चर्चित आईपीएस अधिकारी अभयानंद ने साझा की पुलिस सेवा की पुरानी यादें

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एक एसपी ने सात अपराधियों के शवों को ही भिजवा दिया था जेल बताया कैसे हुई थी सात अज्ञात अपराधियों के शवों की शिनाख्त  



पटना, 02 जनवरी (ही.स.) । बिहार के एक एसपी ने सात अपराधियों के शवों को ही जेल भिजवा दिया था। सात अपराधियों के लाशों को जेल भेजने के बाद एसपी के रूप में जो सीख मिली वह उस एसपी को जीवनभर पुलिस की सेवा में काम आया। इस घटना से आज के एसपी भी बड़ी सीख ले सकते हैं। अगर आपराधिक मामलों में किसी सूत्र का सबसे अच्छा कार्यक्षेत्र है, तो वह और कोई जगह नही बल्कि जेल है। यह पुलिस अधीक्षक पर निर्भर करता है कि वह जेल के अंदर बंद अपराधियों के बीच से निकली हुई आपराधिक सूचनाओं का संकलन और उसपर किस तरह कार्रवाई करता है।

बिहार के पूर्व डीजीपी और देश में अपने समय के तेजतर्रार आईपीएस माने जाने वाले अभयानंद ने यह खुलासा किया है। उन्होंने कहा कि वे जब वह औरंगाबाद के एसपी थे तो सात मृत अपराधियों को उन्होंने जेल भेज दिया था। वह बताते है कि किसी भी ज़िले में अगर हम जानना चाहें कि अपराधियों का घनत्व सबसे अधिक कहां होता है, तो यह एक कौतूहल का प्रश्न होगा। मैं इस प्रश्न को अपने आप से पूरे प्रशिक्षण के दौरान पूछता रहा और जब थाना की ट्रेनिंग हो रही थी, तब अनायास ही मुझे समझ में आया कि इसका सही उत्तर है, ज़िले का जेल। अभयानंद आगे कहते हैं कि अपने पूरे पुलिस के कार्यकाल में इस बात को गांठ बांधकर रखा और इसका प्रयोग भी किया। कई अपराधी ऐसे होते हैं, जिन्हें पारिवारिक कारणों से जेल में रहना पड़ता है और वे सही मायने में कोई व्यावसायिक अपराधी नहीं होते हैं। मैंने भी वैसे ही अपराधियों को जेल के अंदर अपना सूत्र बनाकर उनके माध्यम से अपराध के विषय में जानकारी हासिल करने की कोशिश की थी।

अभयानंद तब औरंगाबाद के एसपी थे। इस दौरान उन्हें सुबह-सुबह एक सूचना मिली कि 7 मृत शरीर ओबरा के पास मिले हैं, वह भी सड़क किनारे एक बगीचे में। मैं तुरंत वहां पहुंचा। मौके पर भीड़ बहुत थी क्योंकि मृतकों की संख्या 7 थी। खोजबीन करने पर पता चला कि ये सभी अपराधी हैं और रात में निकट के रेल गुमटी पर उन्होंने लूटपाट की थी। लूटपाट के बाद वे बगल के एक बगीचे में आकर लूट का सामान बांट रहे थे, तभी बन्दरबांट में मतभेद हुआ और सबों ने एक-दूसरे को गोली से उड़ा दिया। समस्या थी कि मृत अपराधियों की पहचान नहीं हो पा रही थी। मैंने दिन भर मृतकों को वहीं छोड़ा कि शायद कोई व्यक्ति उन्हें पहचान लेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शाम को अपराधियों के शरीर को मैंने पुलिस के ट्रक पर चढ़वाया और पुलिस मैनुअल में लिखी प्रक्रिया के अनुसार उसके निष्पादन का कार्य शुरू किया। रास्ते में मुझे एक तरक़ीब सूझी और मैंने उस पुलिस ट्रक को औरंगाबाद जेल भिजवा दिया। जेल का दरवाज़ा बंद होने वाला था, चूंकि शाम हो गई थी। मैंने जेल अधीक्षक से बात करके पुलिस ट्रक को जेल के अंदर भिजवाया। आधे घंटे तक वह ट्रक वहीं रहा। कौतूहलवश जितने अपराधी जेल में बंद थे, सभी बारी-बारी से उन शवों को देखने आए और जब यह प्रक्रिया पूरी हो गयी, तो मैंने ट्रक को बाहर निकलवाकर शवों का नियमानुसार निष्पादन की प्रक्रिया पूरी की।

दो घंटे के बाद मैं जेल में पुनः आया और जेल के अपने सूत्रों को सारी बात बताई। उस सूत्र ने मुझे बताया कि जेल के अंदर इन मृतकों के सम्बन्ध में कैदियों के बीच क्या बात हुई और उन्होंने सातों का नाम मुझे लिखवा दिये। ये सभी औरंगाबाद ज़िले के नहीं थे, बल्कि निकट के रोहतास के अपराधी थे। संभवतः यही कारण था कि स्थानीय लोग उन्हें पहचान नहीं पा रहे थे। मैंने मृतकों के गाँव में छापामारी कराई और न केवल औरंगाबाद ज़िले के कई अपराधों का खुलासा माल बरामदगी के साथ हुई, बल्कि कई मामले रोहतास ज़िले के भी मेरी छापामारी के दौरान सुलझ गए।

 


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