जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल कर मुर्गों में बर्ड फ्लू रोकने में कामयाबी
नई दिल्ली, 07 जून (हि.स.)। एक तरफ जहां इस समय निपाह जैसे जानलेवा वायरस की केरल में दस्तक की ख़बर से पूरे देश में दहशत फैली हुई है वहीं आगामी मॉनसून के दौरान पैदा होने वाले कई तरह के वायरस को लेकर भी काफी चिंता दिखाई दे रही है। हालांकि इसी बीच ब्रिटेन से काफी राहत देने वाली एक ख़बर है।
कुछ समय पहले भारत में बर्ड फ्लू कै फैलने से जहां कुछ मौतों की खबर सामने आई थी वहीं काफी लोग गंभीर रूप से इस बीमारी की जद में आ गए थे, जिन्हें स्वस्थ होने में लंबा समय लग गया था। बर्ड फ्लू जैसे वायरस का अभी तक कोई सटीक इलाज सामने नहीं आ पाया है लेकिन अब ब्रिटेन के वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल कर मुर्गों में बर्डफ्लू फैलने से रोकने में कामयाबी हासिल की है। आने वाले दिनों में इंसानों में मुर्गों से फैलने वाली इस बीमारी को रोकने में यह कदम कारगर साबित हो सकता है।
दरअसल, बर्डफ्लू का वायरस जंगली चिड़ियों और मुर्गियों में बहुत तेजी से फैलता है और यहां से यह कई बार इंसानों तक पहुंच जाता है। दुनिया में इस तरह फैलने वाली संक्रामक बीमारियों के विशेषज्ञ बर्डफ्लू के इंसानों तक पहुंचने के खतरे से बहुत चिंतित हैं, क्योंकि यह बहुत आसानी से हवा में घुलकर इंसानों तक पहुंच जाता है और फिर एक से दूसरे इंसान में बेहद जल्दी-जल्दी फैलने लगता है।
इंपीरियल कॉलेज लंदन में इन्फ्लुएंजा वायरोलॉजी की अध्यक्ष प्रोफेसर वेंडी बार्कले हालांकि इस शोध में शामिल नहीं थी परन्तु उनका दावा है कि एच 7 एन 9 एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस चीन में मुर्गियों में इस समय व्यापक रूप से फैला हुआ है और वहां काम करने वाले लोग भी इन मुर्गियों के संपर्क में आने से संक्रमण का शिकार तो हो गए हैं। हालांकि इस वायरस के अभी तक इंसान से इंसान में फैलने का कोई मामला सामने नहीं आया है। । इसीलिए ज्यादातर मुर्गों से फैलने वाले इस वायरस को लेकर शोधकर्तांओं ने मुर्गे के डीएनए के एक हिस्से में बदलाव कर बर्डफ्लू के वायरस को कोशिकाओं में रहने और फैलने से रोकने में सफलता हासिल की है।
प्रोफेसर बार्कले का कहना है कि ये अध्ययन वायरस के घातक प्रकोप को रोकने के लिए एक वैक्सीन बनाने में मदद कर सकता है। क्योंकि इसी वायरस के चलते 14वीं शताब्दी में 75 लाख से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। उस समय फैली महामारी को रोकने के लिए ना तो इस तरह की कोई तकनीक और ना ही संसाधन थे। कौन सा इन्फ्लूएंजा वायरस अगली मानव महामारी का कारण बनेगा, हम पहले से ही ऐसे वायरस को लेकर टीके बनाने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, क्योंकि इसमें बहुत सारा धन और मानव शक्ति का इस्तेमाल होता है, जो किसी के लिए भी संभव नहीं है। इसलिए हम ये जानने में लगे हैं कि अभी तक फैले वायरसों में कौन सा ज्यादा ख़तरनाक है और उससे कैसे बचाव किया जाए, हमारा सारा ध्यान इसी पर ही केंद्रित है।
उधर, रिसर्च का नेतृत्व करने वाले वैज्ञानिकों में शामिल मार्क मैकग्र्यू ने बताया कि इसके बाद अब अगला कदम जेनेटिक बदलाव के साथ मुर्गे पैदा करना होगा। उन्होंने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण कामयाबी है, जो बताती है कि हम जीन एडिटिंग तकनीक के जरिए ऐसे मुर्गे पैदा कर सकेंगे जो बर्डफ्लू वायरस प्रतिरोधी होंगे। हालांकि, हमने अब तक कोई मुर्गा पैदा नहीं किया है और अगला कदम उठाने से पहले हमें ये देखना होगा कि डीएनए में बदलाव का मुर्गे की कोशिका पर क्या कोई और असर भी होता है या नहीं।
शोधकर्ताओं की टीम को उम्मीद है कि इसके बाद जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल कर वे मुर्गों के डीएनए से एक हिस्से को निकाल पाने में सफल होंगे। यह हिस्सा एनपी32 नाम के प्रोटीन को पैदा करने के लिए जिम्मेदार है और बर्डफ्लू का वायरस संक्रमण के लिए इसी प्रोटीन पर निर्भर रहता है। इस तकनीक को सीआरआईएसपीआर कहते हैं।
इन कोशिकाओं के लैब परीक्षणों में देखा गया है कि इस जीन की कमी फ्लू के वायरस का प्रवेश रोक देती है और इसके साथ ही इनका बढ़ना और फैलना भी रुक जाता है। पिछली बार 2009 और 2010 में बर्डफ्लू की महामारी फैली थी, जिसके लिए एच1एन1 वायरस जिम्मेदार था और उसे तुलनात्मक रूप से कम खतरनाक माना जाता है। तब भी दुनिया भर में करीब 5 लाख लोग इसकी चपेट में आए थे।