नई दिल्ली, 09 अप्रैल (हि.स.) । बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर कैदियों को अंतरिम जमानत या पैरोल पर रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश में सुधार करने की मांग की है। बिहार सरकार ने कहा है कि कैदियों को जमानत पर रिहा करना जोखिम भरा काम है।
बिहार सरकार के वकील केशव मोहन ने सुप्रीम कोर्ट से हलफनामे के जरिये कहा है कि लॉकडाउन को सख्ती से लागू करने की वजह से जेल से रिहा कैदियों को उनके घरों तक ले जाने के लिए कोई सार्वजनिक वाहन उपलब्ध नहीं है। राज्य के कई हिस्सों में दूसरे जगहों से आनेवाले लोगों को गांव में भी प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है और उनका सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है। ग्रामीणों को डर लगता है कि आने वाले व्यक्ति से कोरोना वायरस फैल सकता है।
बिहार सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि बिहार में 59 जेल हैं जिनमें 44,920 कैदियों को रखने की क्षमता है। जेलों में कैदियों की वर्तमान संख्या 39,016 है और वहां कोई भीड़भाड़ नहीं है। हलफनामे में कहा गया है कि बिहार सरकार भीड़ कम करने के लिए कुछ कैदियों को भीड़भाड़ वाली जेलों से नजदीकी जेलों में भेज रही है। बिहार सरकार ने कहा है कि अंतरिम जमानत या पैरोल पर कैदियों को रिहा करने के लिए जमानती बांड पर हस्ताक्षर करने के लिए ट्रायल कोर्ट के समक्ष उन्हें पेश करने की जरूरत होगी। ये औपचारिकता पूरा करना मुश्किल होगा क्योंकि कोर्ट बेहद सीमित तरीके से काम कर रही हैं और वकील भी कार्यवाही में भाग लेने से हिचक रहे हैं।
दरअसल पिछले 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना के बढ़ते खतरे की आशंका के मद्देनजर जेल में कैदियों की भीड़ को कम करने पर विचार करने के लिए सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि वे उच्चस्तरीय कमेटी का गठन करें। कोर्ट ने कहा था कि कमेटी ये विचार करे कि क्या सात साल से कम की सज़ा वाले अपराधों में बंद सज़ायाफ्ता या विचाराधीन कैदियों को 6 हफ्ते के पेरोल पर रिहा किया जा सकता है।