फ्रांस में भारतीय दूतावास ने बुधवार को ट्वीट कर बताया था कि तीन और राफेल लड़ाकू विमान फ्रांस के मेरिग्नैक-बोर्डो एयरबेस से भारत के लिए उड़ान भर चुके हैं। इस दौरान विमानों ने बिना रुके आठ हजार किलोमीटर की यात्रा पूरी की। तीनों राफेल विमानों को रास्ते में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) एयरफोर्स के एयरबस 330 मल्टी-रोल ट्रांसपोर्ट टैंकरों से ओमान की खाड़ी में मध्य हवा में ही ईंधन दिया गया।
भारत में कोरोना वायरस के मामलों में बढ़ोतरी के बाद राफेल विमानों के लाने की प्रक्रिया थोड़ी लंबी हो गई है। क्योंकि भारत से फ्रांस के लिए रवाना होने से पहले भारतीय पायलटों को क्वारंटाइन के साथ-साथ और भी कई सावधानियों से गुजरना पड़ता है। भारतीय वायुसेना ने कोविड-19 के दौर में भी राफेल विमानों की निर्धारित समय के अंदर भारत को सौंपने और पायलटों के समुचित प्रशिक्षण के लिए फ्रांस को धन्यवाद दिया है। साथ ही विमानों की बिना रुके उड़ान के दौरान हवा में ही विमानों में ईंधन भरने के लिए भी यूएई का आभार जताया है।
फ्रांस के पांच दिवसीय दौरे पर गए वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने 21 अप्रैल को फ्रांस के मेरिग्नैक-बोर्डो एयरबेस से पांचवें बैच में तीन राफेल फाइटर जेट्स को हरी झंडी दिखाकर भारत के लिए रवाना किया था। पांच बैच में अब तक 17 राफेल फाइटर जेट भारत आ चुके हैं, जिन्हें पहली स्क्वाड्रन ‘गोल्डन एरो’ अम्बाला एयरबेस पर तैनात किया गया है। छठी खेप में आये इन तीन राफेल युद्धक विमानों के साथ अब तक 20 जेट्स भारत पहुंच चुके हैं। अंबाला स्थित गोल्डन एरो स्क्वाड्रन पर पूर्वी लद्दाख की एलएसी और पाकिस्तान से सटी एलओसी के दोनों ही मोर्चों की जिम्मेदारी है। अंबाला में राफेल की पहली स्क्वाड्रन तैनात करने पर करीब 250 करोड़ रुपये का खर्च आया था। इसी तरह पिछले साल 10 सितम्बर को अंबाला में राफेल को वायुसेना में शामिल होने वाले कार्यक्रम पर करीब 42 लाख रुपये खर्च हुए थे।
एलएसी पर चीन से तनातनी के बीच भारत ने राफेल लड़ाकू विमानों को लद्दाख के फ्रंट-लाइन एयरबेस पर तैनात किया है। 18 विमानों से पहली स्क्वाड्रन पूरी होने के बाद अब पश्चिम बंगाल के हाशिमारा एयरबेस पर दूसरी स्क्वाड्रन को शुरू किया जाना है। पूर्वी लद्दाख में चीन से चल रही तनातनी के बीच राफेल फाइटर जेट्स की इस दूसरी स्क्वाड्रन की जिम्मेदारी सिक्किम से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक से सटी एलएसी की होगी। पूर्वी क्षेत्र में चीन-भूटान ट्राइ-जंक्शन के बेहद करीब हाशिमारा ऑपरेटिंग बेस अप्रैल में ही बनकर तैयार है। हाशिमारा बेस उसी विवादित डोकलाम इलाके के बेहद करीब है, जहां वर्ष 2017 में भारत और चीन की सेनाओं के बीच 75 दिन लंबा टकराव हुआ था। अभी तक हाशिमारा बेस पर राफेल के लिए तैयार किए गए इंफ्रास्ट्रक्चर और नए रनवे के बारे में ज्यादा जानकारी साझा नहीं की गई है।