अयोध्या जन्मभूमि का मुकदमा विहिप ने नहीं बल्कि रामलला ने जीता: चंपत राय

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विद्यार्थी परिषद के ऑनलाइन कार्यक्रम में जन्मभूमि से जुड़े गूढ़ विषयों पर बोले विहिप नेता



लखनऊ, 25 अप्रैल (हि.स.)। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट क्षेत्र के महासचिव व विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय ने शनिवार को स्पष्ट किया कि अयोध्या जन्मभूमि का मुकदमा विहिप अथवा संघ ने नहीं बल्कि रामलला ने जीता है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के ऑनलाइन संवाद कार्यक्रम में आज उन्होंने रामजन्मभूमि से जुड़े ऐसे गूढ़ विषयों पर प्रकाश डाला जो अभी तक सार्वजनिक रूप से किसी के संज्ञान में नहीं थे।
रामजन्मभूमि से जुड़े कुछ अनछुए पहलुओं को उजागर करते हुए चंपत राय ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के 9 वर्ष के पश्चात रामजन्मभूमि से संबंधित केस की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय के पांच  न्यायाधीशों की बेंच में शुरु हुई। सुनवाई 40 दिनों तक निरंतर रूप से 170 घण्टे चली। निर्धारित दिनों के अंतिम 11 दिनों में बिना किसी अवकाश के अतिरिक्त समय न्यायालय की कार्यवाही चली एवं इस दौरान किसी अन्य किसी मामले की सुनवाई भी नहीं की गयी । न्यायालयीन इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। पांच जजों की पीठ ने 9 नवंबर, 2019 को ऐतिहासिक निर्णय सुनाया ।
विवाद की जड़
इसलिए सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि मुकदमा क्या है ?  दरअसल अयोध्या में राम कोट नाम का एक मुहल्ला है। उस मुहल्ले में 14000 स्क्वायर फीट का प्लॉट था। इस प्लांट पर कभी एक स्ट्रक्चर था जिस पर गुम्बद थे और मुस्लिम समाज उसे बाबरी मस्जिद कहता था लेकिन अयोध्या का हिंदू समाज कहता था कि यह हमारे भगवान की जन्मभूमि है। हिन्दुओं का कहना था कि यहां एक मंदिर बना था जिसे बाबर ने वर्ष 1528 में तुड़वा कर उसी के मलबे से तीन गुम्बदों वाला मस्जिद बनवाया। वहीं मुसलमान कहता था कि यह बंजर जमीन थी, जिस पर बाबर ने अपने सिपाहियों की इबादत के लिए मस्जिद बनवाई, जबकि हिन्दू कहता है कि यह जन्मभूमि का मंदिर था उसे हम वापस लेंगे।
इस विवाद को देखते हुए भारत सरकार व राष्ट्रपति ने 1993 में सर्वोच्च न्यायालय को चिट्ठी लिखते हुए कहा कि आग्रह किया था कि वह अध्ययन करके बताए कि जिस भूखण्ड पर विवाद है वहां कभी मंदिर था अथवा नहीं। राष्ट्रपति की चिट्ठी का संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने पांच जजों की कमेटी बनाई और वह मुकदमा 1993 में 12 महीने और 1994 में 10 महीने कुल मिलाकर 22 महीने चला था, किंतु इसके पश्चात भी भारत सरकार इस पशोपेश में उलझ गई कि मंदिर था या नहीं था। हिंदुओ के सम्मान का विषय था क्योंकि एक विदेशी आक्रमणकारी ने हिंदू के प्रमुख धार्मिक स्थल को तोड़कर मस्जिद बना दिया था। अब सवाल यह था कि 1528 के पहले क्या था क्या नहीं यह कैसे साबित हो इसका प्रमाण कैसे मिले। किताबों की बातों को कोई मानने को तैयार नही था। अंततः न्यायालय के माध्यम से कनाडाई विशेषज्ञों की मदद से जमीन के नीचे की फोटोग्राफी कराई गई और रिपोर्ट दी गयी कि जमीन के नीचे 16 फीट जाने पर एक ढांचा दिखाई देता है जो यह साबित करता है कि जमीन बंजर नहीं है। इसके पश्चात उच्च न्यायालय के आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा फोटोग्राफी के आधार पर खुदाई की गई। इसके पश्चात जो रिपोर्ट दी गयी उसमें यह स्पष्ट कहा गया कि यहां मंदिर था जिसके आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया।
निर्णय राम लला के पक्ष में
श्री राय ने कहा कि यहां एक विषय यह भी है कि इस मुकदमे में बार बार भगवान के पक्षकार होने का जिक्र है। उन्होंने बताया कि इसका आधार है कि भगवान जीवित स्वरूप हैं और नाबालिग हैं। इसलिए उनकी तरफ से कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज देवकीनंदन अग्रवाल को मुकदमा दायर कर मुकदमा लड़ने की इजाजत प्रदान की। उन्होंने कहा कि इस मुकदमें को विश्व हिंदू परिषद या संघ ने नहीं जीता बल्कि प्रभु श्रीराम ने जीता है जिसे हम रामलला विराजमान कहते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस मुकदमे में  विश्व हिंदू परिषद को कुछ नहीं मिला जो मिला वह रामलला को मिला। यहां एक बात और महत्वपूर्ण है कि जन्मभूमि कभी बदलती नहीं है।
उल्लेखनीय है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अवध प्रान्त)  लॉक डाउन के दौरान सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रयोग के माध्यम से से विभिन्न विषयों पर फेसबुक लाइव के माध्यम से विचार कर्णिका व प्रश्नोत्तर का आयोजन कर रहा है। इसी कड़ी में विद्यार्थी परिषद के अवध प्रान्त ने आज श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट क्षेत्र के महासचिव  चंपत राय का संबोधन फेसबुक लाइव के माध्यम से प्राप्त कराया। युवा पीढ़ी को राम जन्मभूमि आंदोलन के महत्व को समझाने के लिए यह आयोजन किया गया था।


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