नई दिल्ली, 15 नवम्बर (हि.स.)। दिल्ली हाईकोर्ट सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर और गूगल की बाबा रामदेव के खिलाफ आरोपों से संबंधित कंटेंट हटाने के दिल्ली हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया है । हाईकोर्ट ट्विटर और गूगल दोनों की याचिकाओं को फेसबुक की याचिका के साथ ही सुनवाई करेगा। कोर्ट ने तीनों की याचिका पर 21 दिसम्बर को सुनवाई करने का आदेश दिया।
पिछले 31 अक्टूबर को फेसबुक ने सिंगल बेंच के फैसले को हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच फेसबुक की याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत हो गई थी। डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा था कि वो कोर्ट की अवमानना संबंधी कोई याचिका स्वीकार नहीं करेगी।
पिछले 23 अक्टूबर को हाईकोर्ट ने फेसबुक, गूगल, यूट्यूब और ट्विटर को निर्देश दिया था कि वो बाबा रामदेव के खिलाफ आरोपों से संबंधित कंटेंट हटाएं। जस्टिस प्रतिभा सिंह की सिंगल बेंच ने बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद की याचिका पर सुनवाई करते हुए 29 सितम्बर, 2018 को बाबा रामदेव के बारे में लिखी गई पुस्तक ‘गॉडमैन टू टाइकून-द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ बाबा रामदेव’ को छापने, डिस्ट्रीब्यूट या बेचने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि इस पुस्तक के अंश वीडियो के जरिये फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर पर डाले गए हैं।
सुनवाई के दौरान फेसबुक ने कहा था कि वैश्विक स्तर पर कंटेंट को हटाना कानूनों के टकराव और विरोध को दबाने जैसा है। गूगल ने कहा था कि जिस पक्ष ने कंटेंट अपलोड किया है, उसे कोर्ट में पक्षकार नहीं बनाया गया है, लिहाजा इस याचिका को खारिज किया जाना चाहिए। गूगल ने कहा कि इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट केवल भारत में लागू है, इसलिए इस एक्ट के आधार पर वैश्विक स्तर पर कंटेंट हटाने का आदेश नहीं दिया जा सकता है।
2018 में बाबा रामदेव ने जगरनॉट बुक्स द्वारा प्रकाशित होने वाली इस पुस्तक को छापने से रोकने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि पुस्तक जिसके बारे में लिखी गई है, उनकी गरिमा का ध्यान रखा जाना चाहिए और जब तक कोर्ट में ये प्रमाणित नहीं हो जाए तब तक उन्हें खलनायक के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा था कि ये पुस्तक संविधान की धारा 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। हाईकोर्ट ने प्रकाशक की इस दलील को खारिज कर दिया था कि उसका मकसद बाबा रामदेव को बदनाम करना कतई नहीं था।