छह प्रधानमंत्रियों के कैबिनेट में मंत्री रहे थे रामविलास पासवान

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लंबे राजनीतिक जीवन में 11 चुनाव लड़े, नौ में जीत हुईलोकसभा चुनाव में सर्वाधिक मतों से जीतने का विश्व रिकॉर्डवीपी सिंह की सरकार में पहली बार बने थे केंद्र में मंत्री



पटना, 08 अक्टूबर (हि.स.)। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के संस्थापक और वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान अब इस दुनिया में नहीं रहे। गुरुवार रात दिल्ली के फोर्टिस एस्कोर्ट हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली। रामविलास पासवान पिछले पांच दशक से भी ज्यादा समय से राजनीतिक में सक्रिय थे और देश के बड़े दलित नेता के रूप में उनकी पहचान थी। पासवान के पास छ‍ह प्रधानमंत्रियों के साथ उनकी सरकार में मंत्री रहने का रिकॉर्ड है।

वीपी सिंह, एचडी देवेगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्रीय कैबिनेट में अपनी जगह बनाने वाले शायद एकमात्र राजनेता थे। राजनीति की नब्ज पकड़ने वाले रामविलास पासवान पहली बार 1969 में एक आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में बिहार विधानसभा पहुंचे थे। 1974 में राज नारायण और जय प्रकाश नारायण के प्रबल अनुयायी के रूप में लोकदल के महासचिव बने थे। वे व्यक्तिगत रूप से राज नारायण और कर्पूरी ठाकुर जैसे नेताओं के करीबी रहे थे।

1946 में बिहार के खगड़िया में जन्मे रामविलास पासवान ने एक छोटे से इलाके से निकलकर दिल्ली की सत्ता तक का सफर अपने संघर्ष के बूते तय किया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। लगभग पांच दशक तक वो बिहार और देश की राजनीति में छाये रहे। रामविलास पासवान राजनीति में आने से पहले बिहार प्रशासनिक सेवा में अधिकारी थे। पासवान ने इमरजेंसी का पूरा दौर जेल में गुजारा। इमरजेंसी खत्म होने के बाद पासवान छूटे और जनता दल में शामिल हो गये।

अपने लंबे राजनीतिक जीवन में पासवान ने 11 चुनाव लड़े, जिनमें नौ में उनकी जीत हुई। लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक मतों से जीतने का दो बार विश्व रिकॉर्ड भी बनाया। पासवान ने 1977 के लोकसभा चुनाव में हाजीपुर सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े और चार लाख से ज्यादा वोटों से जीत का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। इसके बाद 1989 के संसदीय चुनाव में जनता दल के उम्मीदवार के रूप में बिहार के हाजीपुर से पांच लाख 44 हजार 48 मतों से विजय होकर रिकॉर्ड बनाया और प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में उन्हें पहली बार कैबिनेट मंत्री बनाया गया। पासवान ने रेल से लेकर दूरसंचार और कोयला मंत्रालय तक की जिम्मेदारी संभाली।

1969 में पासवान ने लड़ा था पहला चुनाव

रामविलास पासवान का जन्म पांच जुलाई 1946 को बिहार के खगड़िया जिले एक गरीब और दलित परिवार में हुआ था। उन्होंने बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी झांसी से एमए और पटना यूनिवर्सिटी से एलएलबी की। 1969 में पहली बार पासवान बिहार के राज्‍यसभा चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के कैंडिडेट के तौर पर चुनाव जीते। 1977 में छठी लोकसभा में पासवान जनता पार्टी के टिकट पर सांसद बने। 1982 में हुए लोकसभा चुनाव में पासवान दूसरी बार जीते। 1983 में उन्‍होंने दलित सेना का गठन किया तथा 1989 में नौवीं लोकसभा में तीसरी बार चुने गए। 1996 में दसवीं लोकसभा में वे निर्वाचित हुए।

वर्ष 2000 में पासवान ने जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से अलग होकर लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) का गठन किया। इसके बाद वह यूपीए सरकार से जुड़ गए और रसायन एवं खाद्य मंत्री और इस्पात मंत्री बने। पासवान ने 2004 में लोकसभा चुनाव जीता, लेकिन 2009 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 12वीं, 13वीं और 14वीं लोकसभा में भी चुनाव जीते। अगस्त 2010 में बिहार राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए और कार्मिक तथा पेंशन मामले और ग्रामीण विकास समिति के सदस्य बनाए गए थे। 2014 में हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से भारी मतों से जीते और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कैबिनेट में मंत्री बने। इसके बाद 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने नहीं लड़ा। फिलहाल वे राज्यसभा से सांसद बने और केंद्र में मंत्री थे।

एनडीए छोड़कर गये, फिर आये वापस

रामविलास पासवान ने 2002 के गोधरा दंगों के बाद तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा देकर एनडीए गठबंधन से भी नाता तोड़ लिया था। इसके बाद पासवान कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) में शामिल हुए और मनमोहन सिंह कैबिनेट में दो बार मंत्री रहे। हालांकि, 2014 आते-आते पासवान एक बार फिर यूपीए का साथ छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए। 2014 और फिर 2019 में बनी नरेंद्र मोदी की दोनों सरकारों में उन्हें केंद्रीय कैबिनेट में अहम मंत्रालय दिए गए।

माना जाता था राजनीति का मौसम वैज्ञानिक

रामविलास पासवान को राजनीति का बड़ा मौसम वैज्ञानिक माना जाता था। सरकार किसी की भी रही, राम विलास पासवान हमेशा सत्‍ता में रहे। खास बात यह रही कि उन्‍होंने हमेशा चुनाव के पहले गठबंधन किया, चुनाव के बाद कभी नहीं। आपात काल के दौरान इंदिरा गांधी से लड़ने से लेकर अगले पांच दशकों तक पासवान कई बार कांग्रेस के साथ तो कभी खिलाफ चुनाव लड़ते और जीतते रहे।

चिराग ने लिया बिहार विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला

पिछले कुछ समय से बिहार चुनावों को लेकर अहम फैसले रामविलास पासवान की अस्वस्थता के चलते खुद चिराग ही ले रहे थे। हाल ही में चिराग ने ही लोक जनशक्ति पार्टी संसदीय बोर्ड की बैठक में यह फैसला लिया की पार्टी बिहार में एनडीए के साथ जाने की बजाय अकेली चुनाव लड़ेगी।

 


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