पटना, 10 अक्टूबर (हि.स.)। लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) के संस्थापक व केंद्रीय मंत्री रहे रामविलास पासवान शनिवार शाम पटना के दीघा के जनार्दन घाट पर पंचतत्व में विलीन हो गये। राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। लोजपा अध्यक्ष और जमुई सांसद बेटे चिराग पासवान ने उन्हें मुखाग्नि दी। दीघा घाट पर पिता रामविलास पासवान को मुखाग्नि देते हुए बेटे चिराग पासवान बेहद भावुक हो गये और बेहोश होकर गिर पड़े। अंतिम संस्कार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे, नित्यानंद राय, गिरिराज सिंह, बिहार के मंत्री मंगल पांडेय, नंदकिशोर यादव, पप्पू यादव, तेजस्वी प्रसाद यादव सहित हजारों ने नम आंखों से रामविलास पासवान को आखिरी श्रद्धांजलि दी। अंतिम संस्कार में केंद्रीय कैबिनेट की तरफ से केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद मौजूद रहे। उन्होंने कहा कि ये समय पासवान के जाने का नहीं था।
इससे पहले पासवान के पटना के एसके पुरी स्थित घर से अंतिम यात्रा निकाली गई। बेटे चिराग पासवान ने जैसे ही पिता को कंधा दिया, लोगों की आंखें नम हो गईं। इस दौरान रामविलास अमर रहे के नारे लगातार लग रहे थे। इसके बाद पार्थिव शरीर को सेना के वाहन से दीघा घाट लाया गया। अंतिम संस्कार के मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, अश्विनी चौबे, नित्यानंद राय, गिरिराज सिंह, बिहार के मंत्री मंगल पांडेय, नंदकिशोर यादव, पप्पू यादव, तेजस्वी प्रसाद यादव सहित हजारों लोग मौजूद थे।
उल्लेखनीय है कि 8 अक्टूबर की रात करीब पौने नौ बजे दिल्ली के फोर्टिस एस्कार्ट अस्पताल में रामविलास पासवान का निधन हो गया था। अगले दिन 9 अक्टूबर की रात करीब आठ बजे पासवान का पार्थिव शरीर पटना पहुंचा था। साथ में केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में मंत्री रविशंकर प्रसाद भी साथ आये थे। एयरपोर्ट के स्टेट हैंगर पर मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, विधानसभा अध्यक्ष, विधान परिषद के सभापति सहित कई केंद्रीय मंत्रियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। उसके बादर बिहार विधानसभा परिसर और लोजपा कार्यालय में उनके पार्थिव शऱीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। देर रात पार्थिव शरीर उनके एसके पुरी आवास ले जाया गया।
अंतिम दर्शन के लिए पहुंची पहली पत्नी, श्रद्धांजलि देने वक्त बेहोश हुईं राजकुमारी
पटना के श्रीकृष्णापुरी स्थित आवास पर रामविलास पासवान को अंतिम दर्शन करने और श्रद्धांजलि देने उनकी पहली पत्नी राजकुमारी देवी भी गांव से पहुंची। इस दौरान वे इतनी भावुक हो गई कि उनकी तबीयत खराब हो गई और बेहोश हो गईं। आनन-फानन में परिजन उन्हें वहां से हटाये और घर लेकर गये।
दो अक्टूबर को एम्स में हुई थी हार्ट सर्जरी
रामविलास पासवान का 74 साल की उम्र में गुरुवार को दिल्ली में निधन हो गया। वे पिछले कुछ महीनों से बीमार थे और 11 सितंबर को अस्पताल में भर्ती हुए थे। एम्स में 2 अक्टूबर की रात उनकी हार्ट सर्जरी हुई थी। इससे पहले भी एक बायपास सर्जरी हो चुकी थी।
हाजीपुर जोनल ऑफिस, अंबेडकर जयंती पर राष्ट्रीय अवकाश पासवान की देन
रामविलास पासवान के नाम कई उपलब्धियां हैं। हाजीपुर में रेलवे का जोनल ऑफिस रामविलास पासवान की ही देन है। अंबेडकर जयंती के दिन राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा पासवान की पहल पर ही हुई थी। राजनीति में बाबा साहब, जेपी, राजनारायण को अपना आदर्श मानने वाले पासवान ने राजनीति में कभी पीछे पलट कर नहीं देखा।
एनडीए छोड़कर गये, फिर आये वापस
रामविलास पासवान ने 2002 के गोधरा दंगों के बाद तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा देकर एनडीए गठबंधन से भी नाता तोड़ लिया था। इसके बाद पासवान कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) में शामिल हुए और मनमोहन सिंह कैबिनेट में दो बार मंत्री रहे। हालांकि, 2014 आते-आते पासवान एक बार फिर यूपीए का साथ छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए। 2014 और फिर 2019 में बनी नरेंद्र मोदी की दोनों सरकारों में उन्हें केंद्रीय कैबिनेट में अहम मंत्रालय दिए गए।
11 बार चुनाव लड़े, 9 बार जीते, दो बार विश्व रिकॉर्ड बनाये
रामविलास पासवान अपने लंबे राजनीतिक जीवन में उन्होंने 11 चुनाव लड़े, जिनमें नौ में उनकी जीत हुई। लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक मतों से जीतने का दो बार विश्व रिकॉर्ड भी बनाया। पासवान ने 1977 के लोकसभा चुनाव में हाजीपुर सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े और चार लाख से ज्यादा वोटों से जीत का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। इसके बाद 1989 के संसदीय चुनाव में जनता दल के उम्मीदवार के रूप में बिहार के हाजीपुर से पांच लाख 44 हजार 48 मतों से विजय होकर रिकॉर्ड बनाया और प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में उन्हें पहली बार कैबिनेट मंत्री बनाया गया। पासवान ने रेल से लेकर दूरसंचार और कोयला मंत्रालय तक की जिम्मेदारी संभाली।
पासवान के पास छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का अनुभव
रामविलास पासवान पिछले पांच दशक से भी ज्यादा समय से राजनीतिक में सक्रिय थे और देश के बड़े दलित नेता के रूप में उनकी पहचान थी। पासवान के पास छह प्रधानमंत्रियों के साथ उनकी सरकार में मंत्री रहने रिकॉर्ड है। वीपी सिंह, एचडी देवेगोड़ा, इंद्रकुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्रीय कैबिनेट में अपनी जगह बनाने वाले शायद एकमात्र राजनेता थे।
1969 में पासवान ने लड़ा था पहला चुनाव
रामविलास पासवान का जन्म पांच जुलाई 1946 को बिहार के खगड़िया जिले एक गरीब और दलित परिवार में हुआ था। उन्होंने बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी झांसी से एमए और पटना यूनिवर्सिटी से एलएलबी की। 1969 में पहली बार पासवान बिहार के राज्यसभा चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते। 1977 में छठी लोकसभा में पासवान जनता पार्टी के टिकट पर सांसद बने। 1982 में हुए लोकसभा चुनाव में पासवान दूसरी बार जीते। 1983 में उन्होंने दलित सेना का गठन किया तथा 1989 में नौवीं लोकसभा में तीसरी बार चुने गए। 1996 में दसवीं लोकसभा में वे निर्वाचित हुए। वर्ष 2000 में पासवान ने जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से अलग होकर लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) का गठन किया। इसके बाद वह यूपीए सरकार से जुड़ गए और रसायन एवं खाद्य मंत्री और इस्पात मंत्री बने। पासवान ने 2004 में लोकसभा चुनाव जीता, लेकिन 2009 के चुनाव में पासवान हाजीपुर की अपनी सीट हार गए थे। तब उन्होंने एनडीए से नाता तोड़ राजद से गठजोड़ किया था। 12वीं, 13वीं और 14वीं लोकसभा में भी चुनाव जीते। अगस्त 2010 में बिहार राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए और कार्मिक तथा पेंशन मामले और ग्रामीण विकास समिति के सदस्य बनाए गए थे। 2014 में हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से भारी मतों से जीते और पीएम मोदी के कैबिनेट में मंत्री बने। इसके बाद 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने नहीं लड़ा। फिलहाल वे राज्यसभा से सांसद और केंद्र में मंत्री थे।
माना जाता था राजनीति का मौसम वैज्ञानिक
रामविलास पासवान को राजनीति का बड़ा मौसम वैज्ञानिक माना जाता था। सरकार किसी की भी रही, राम विलास पासवान हमेशा सत्ता में रहे। खास बात यह रही कि उन्होंने हमेशा चुनाव के पहले गठबंधन किया, चुनाव के बाद कभी नहीं। आपात काल के दौरान इंदिरा गांधी से लड़ने से लेकर अगले पांच दशकों तक पासवान कई बार कांग्रेस के साथ, तो कभी खिलाफ चुनाव लड़ते और जीतते रहे।