कोलकाता, 02 नवम्बर (हि.स.)। अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र के भव्य मंदिर निर्माण का सपना वैसे तो कम से कम पांच सौ सालों से भक्तों ने देखा था जो अब जाकर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद पूरा होने जा रहा है। बाबर के सेनापति ने जब से राम मंदिर को ढहाकर वहां बाबरी मस्जिद बनाया था उसके बाद से ही वहां दोबारा राम मंदिर बनाने का आंदोलन शुरू हो गया था जिसमें हजारों लोगों ने समय-समय पर अपनी शहादत भी दी। लेकिन 1990 और 1992 का देशव्यापी आंदोलन वर्तमान इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। उसमें भी 30 अक्टूबर से लेकर दो नवंबर 1990 की तारीख खास है क्योंकि तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने देशभर से अयोध्या में उमड़े कारसेवकों को रोकने हेतु राम भक्तों पर गोलियां बरसाई थीं। लाखों की संख्या में एकत्रित हुए राम भक्तों ने पुलिस कर्मियों का पैर छूकर आगे बढ़ने की रणनीति पर मस्जिद की ओर बढ़ते चले गए थे। सुरक्षाकर्मियों की लाख चौकसी और सख्ती के बावजूद राम भक्त बाबरी मस्जिद तक पहुंच गए थे और विवादित ढांचे पर भगवा लहरा दिया था। उसमें कोलकाता के दो लाल राम कुमार कोठारी और शरद कोठारी का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। ये दोनों भाई अपने पिता का पैर छू कर मंदिर निर्माण के लिए घर से निकले थे। बाबरी मस्जिद ढहाते हुए जो तस्वीर मीडिया में वायरल हुई थी उसमें मुख्य गुंबद पर दोनों भाई भगवा ध्वज लेकर नजर आ रहे हैं। लेकिन जैसे ही वे नीचे उतरे, चंद घंटों के अंदर पुलिस की गोलियों के शिकार हो गए थे और एक साथ राम के काम में शहीद हो गए थे। आस्था और शौर्य की यह गाथा अब इतिहास बन चुकी है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भव्य राम मंदिर का निर्माण भी शुरू हो गया है। लेकिन ऐसे शहीदों और राम मंदिर से जुड़े लोगों के संस्मरण उन लोगों के जेहन में आज भी ताजे हैं जो किसी न किसी तरीके से मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे हैं। राम-शरद कोठारी की बहन पूर्णिमा कोठारी भी उनमें से एक हैं।
सोमवार को विशेष बातचीत में पूर्णिमा ने पुराने दिनों को याद करते हुए भावुक होकर कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि जीते जी मंदिर निर्माण का सपना पूरा होगा। पूर्णिमा ने बताया कि जब उनके दोनों भाई मंदिर आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए घर से निकल रहे थे तब घर में सभी का मन भारी था। राम शरद कोठारी के मां बाप ने सोचा था कि देश के बाकी कारसेवकों की तरह इनका भी बेटा जा रहा है और वापस आएगा लेकिन खबर आई थी तो दोनों की शहादत की। अपने भाइयों की शहादत को याद करते हुए पूर्णिमा की आंखें नम थीं। उन्होंने बताया कि जब दोनों भाइयों के शहीद होने की खबर आई तो पूरे परिवार पर जैसे पहाड़ टूट गया था। लेकिन सभी को इस बात का गर्व था कि बेटा राम के काम में शहीद हुआ था। उस समय पश्चिम बंगाल में माकपा का शासन था।
पूर्णिमा ने बताया कि तत्कालीन सरकार की ओर से उनके परिवार को कहा गया था कि दोनों शहीदों का शव बंगाल में नहीं लाया जाना चाहिए और परिवार ने भी अयोध्या में अंतिम संस्कार करना उचित समझा था। उनसे जब पूछा गया कि क्या उन्हें इस बात का यकीन था कि उनके जीते जी राम मंदिर बन जाएगा? तब उन्होंने बताया कि जिस तरह की राजनीति राम मंदिर को लेकर हो रही थी उससे कभी उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उनके जीते जी मंदिर बनेगा। राम और शरद कोठारी के मां-बाप को इस बात का यकीन कभी नहीं था लेकिन जब 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तब परिवार की उम्मीद बंधी थी। सन 2016 में राम शरद कोठारी की मां की मौत हो गई थी। उसके पहले उन्होंने यह उम्मीद जताई थी कि अब जबकि नरेंद्र मोदी जैसा शख्स देश का प्रधानमंत्री है तो निश्चित तौर पर राम मंदिर निर्माण होगा।
पिछले दिनों भूमि पूजन कार्यक्रम में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिलान्यास किया था तब पूर्णिमा कोठारी को भी आमंत्रण मिला था। उस दिन को याद करते हुए उन्होंने कहा कि जितना भरोसा हमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर है उतना ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हैं। अपने संबोधन में योगी जी ने मंदिर निर्माण को लेकर जो अडिगता थी वह राम भक्तों के लिए किसी भी उम्मीद से बढ़कर है।
इसी तरह से मंदिर आंदोलन से जुड़े शांतिलाल जैन ने “हिन्दुस्थान समाचार” से बातचीत में कहा कि उन्हें इस बात का यकीन नहीं था कि उनके जीते जी राम मंदिर निर्माण का सपना पूरा होगा, लेकिन यह हो रहा है। यह किसी सुनहरे सपने के सच होने जैसा है। उन्होंने बताया कि आंदोलन के लिए 1990 में पूरे देश में गजब का उत्साह था। अशोक सिंघल, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं की अगवानी में देशभर से एकत्रित हुए लाखों लोग राम मंदिर के लिए व्याकुल थे। पुराने दिनों को याद करते हुए जैन ने बताया कि तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार की पुलिस ने जिस तरह से कारसेवकों के साथ सख्ती बरती और पुलिस फायरिंग में मारे गए शहीदों के शवों के साथ रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार भी नहीं करने दिया गया, वह दुखद था। उसके बाद के दिनों में राम मंदिर को लेकर जिस तरह से राजनीति हुई उससे मंदिर निर्माण को लेकर आशंका हमेशा बनी हुई थी, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मंदिर बन रहा है। उन्होंने कहा कि राम मंदिर जैसे राष्ट्रव्यापी मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए।
इसी तरह से राम मंदिर आंदोलन से जुड़े डॉ शम्भू धारा ने भी “हिन्दुस्थान समाचार” से बातचीत में पुराने दिनों को याद किया। उन्होंने बताया कि पूरे बंगाल से 2400 से अधिक युवक अयोध्या गए थे। धारा ने बताया कि हनुमानगढ़ी से लेकर बाबरी मस्जिद तक, पुलिस की सख्ती के बावजूद कारसेवक विवादित ढांचे को ढहाने में सक्षम रहे थे और पुलिस की गोली खाने को भी तैयार थे। धारा फिलहाल 66 साल के हो चुके हैं और राम मंदिर आंदोलन के समय उनकी उम्र 36 साल के आसपास थी। उन्होंने बताया कि उत्साह के साथ निर्माण के लिए निकले थे और शहादत भी होती तो उन्हें अफसोस नहीं होता।
डॉक्टर शंभू धारा ने बताया कि संघ परिवार लगातार मंदिर निर्माण के लिए तत्पर तो था लेकिन जिस तरह की राजनीति थी और सरकारों की उदासीनता थी उससे उम्मीद टूटने लगी थी। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हुआ और अब मंदिर निर्माण भी हो रहा है।
निर्माण पूरा होने तक है आशंका
शंभू धारा ने अभी भी आशंका जताई कि जब तक राम मंदिर पूरी तरह से तैयार नहीं हो जाता तब तक मन में संदेह बरकरार रहेगा। धारा ने कहा कि करीब तीन दशक तक जिस तरह से राम मंदिर को लेकर राजनीति होती रही है उससे अभी भी यकीन नहीं होता कि मंदिर निर्माण का रास्ता प्रशस्त हो गया है। राम मंदिर का विरोधी गुट अंदर खाने क्या कर रहा है, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। अगर सरकार बदल गई तो मंदिर निर्माण बीच में भी रुक सकता है। इसलिए राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट को चाहिए कि जल्द से जल्द मंदिर का निर्माण शुरू करें और युद्ध स्तर पर इसका निर्माण कार्य पूरा कराया जाए। उन्होंने कहा कि राम मंदिर से पूरे देश की भावनाएं जुड़ी हुई हैं। डॉक्टर शंभू धारा ने कहा कि राम ना केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और उन्हीं के जन्म स्थान पर उनके प्रतीक चिन्ह के निर्माण के लिए भारत ने सैकड़ों सालों तक संघर्ष किया है। इसे और अधिक नहीं खींचा जाना चाहिए। जल्द से जल्द मंदिर निर्माण पूरा होना चाहिए।