राज्यसभा में महामारी रोग संशोधन विधेयक, 2020 पारित

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स्वास्थ्य पेशेवरों के खिलाफ अपराध रोकने के लिए विधेयक



नई दिल्ली, 19 सितम्बर (हि.स.)। कोरोना के समय स्वास्थ्य पेशेवरों के खिलाफ हुए अपराध के मद्देनजर शनिवार को राज्यसभा में महामारी रोग संशोधन विधेयक 2020 को पारित कर दिया गया। शनिवार को इस विधेयक पर कई सांसदों ने अपनी राय रखी। वहीं तृणमूल कांग्रेस (टीएमएसी) सांसद डेरेक ओब्रायन ने इस बिल का विरोध किया।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि कोरोना वैश्विक महामारी के दौरान डॉक्टरों और पैरामेडिक्स समेत स्वास्थ्य कर्मचारियों को कई तरह से अपमानित किया गया। केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य पेशेवरों के खिलाफ हो रहे अपराध को रोकने के लिए विधेयक तैयार कर इसे राज्यसभा में पेश किया।
शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी ने विधेयक का समर्थन करते हुए सदन में कहा, इस विधेयक को पारित करने के साथ-साथ स्वास्थ्य कर्मचारियों को सुरक्षा के उपकरण भी मुहैया कराए जाने चाहिए। स्वास्थ्य कर्मियों को पीपीई किट दी जानी चाहिए, काम के घंटों को विनियमित किया जाना चाहिए और समय पर वेतन पहुंचाया जाना चाहिए। एनसीपी सांसद वंदना चव्हाण ने इस विधेयक में आशा वर्कर को भी शामिल करने के बात कही। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी से केवल डॉक्टर ही नहीं, बल्कि संबंधित कर्मचारी भी प्रभावित होते हैं। आशा कार्यकर्ताओं के बारे में बिल में कुछ नहीं है, उन्हें किसी प्रकार का संरक्षण नहीं दिया गया है।
राज्य की शक्तियों को खत्म करने की कोशिश:
टीएमसी के सांसद डेरेक ओब्रायन ने महामारी रोग संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान कहा कि बंगाल में हिंसा की रोकथाम के लिए मेडिकेयर सर्विस प्रिवेंशन ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 2009 है। इस विधेयक से राज्यों की संवैधानिक रूप से सौंपी गई कार्यप्रणाली का अतिक्रमण करने का प्रयास है।
क्या है विधेयक के प्रावधान
अध्यादेश निर्दिष्ट करता है कि कोई भी व्यक्ति निम्नलिखित नहीं कर सकता: (i) स्वास्थ्य सेवाकर्मी के खिलाफ हिंसक कार्रवाई करना या ऐसा करने के लिए किसी को उकसाना। विधेयक के इस प्रावधान का उल्लंघन करने पर तीन महीने से लेकर पांच वर्ष तक की कैद या 50,000 रुपये से लेकर दो लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। अदालत की अनुमति से पीड़ित अपराधी को क्षमा कर सकता है। अगर स्वास्थ्य सेवा कर्मी के खिलाफ हिंसक कार्रवाई गंभीर क्षति पहुंचाती है, तो अपराध करने वाले व्यक्ति को छह महीने से लेकर सात वर्ष तक की कैद हो सकती है और एक लाख रुपये से लेकर पांच लाख रुपये तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। यह अपराध संज्ञेय और गैर जमानती है।

 


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