भोपाल, 21 दिसम्बर(हि.स.)। भारतीय रेलवे के स्टेशनों को भव्य रूप देने की तरफ कदम बढ़ाने की मंशा से केंद्र की मोदी सरकार पीपीपी मॉडल लेकर आई है। जहां इसके कई लाभ हैं वहीं इसके नुकसान भी कम नहीं हैं। यदि रेलवे का पार्टनर सही नहीं हुआ तो जो लाभ मिलना चाहिए वह दूर की कौड़ी ही साबित होगा। हालांकि इस बीच उत्साहित केंद्रीय रेलमंत्री पीयूष गोयल ने अपनी इस महत्वाकांक्षी रेलवे स्टेशन पुनर्विकास एवं सौंदर्यीकरण योजना के तहत ग्वालियर को भी जोड़ दिया है। सरकार स्टेशन पर यात्रियों के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार और बेहतर सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए रेलवे सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से इनका पुनर्विकास करेगी। रेलमंत्री ने शनिवार को ट्वीट कर इसकी जानकारी दी।
रेलवे का दावा ग्वालियर बनेगा विश्वस्तरीय स्टेशन
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के माध्यम से ग्वालियर रेलवे स्टेशनों का विश्वस्तरीय पुनर्विकास कराने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इंडियन रेलवे स्टेशन डेवलपमेंट कॉरपोरेशन का लक्ष्य स्टेशनों पर एयरपोर्ट जैसी सुविधाएं मुहैया कराने पर है। रेलवे ने दावा यहां तक किया है कि आगामी दिनों में ग्वालियर स्टेशन विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस होगा, जबकि भोपाल के हबीबगंज स्टेशन के हालात देखने के बाद लगता है कि यह मॉडल जितना लोकलुभावन एवं दूर से सुन्दर स्वप्न जैसा नजर आता है, वैसा हकीकत में होता नहीं है। केंद्र की भाजपा सरकार रेलवे संबंधित अपने पीपीपी मॉडल (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) के लिए बेशक खुद की पीठ थपथपाती दिखती हो किेंतु इससे जुड़ी वास्तविकता कुछ अलग ही सामने आई है ।
प्रदेश के हबीबगंज रेलवे स्टेशन की पीपीपी मॉडल से हालत अब तक खराब
सरकार ने देढ़ साल पहले हबीबगंज रेलवे स्टेशन को मध्य प्रदेश की कंपनी बंसल ग्रुप को बेचा था। तब इसके पहले पीपीपी मॉडल में विकसित होने वाले रेलवे स्टेशन के तौर पर प्रचार किया गया। लेकिन अब इस मॉडल के विकास की हकीकत सामने आने लगी है। स्टेशन का बंसल पाथवे हबीबगंज प्राइवेट लिमिटेड ने पार्किंग शुल्क कई गुना बढ़ा दिया। दोपहिया वाहनों का मासिक पास शुल्क 4,000 व चार पहिया गाड़ियों के लिए 12,000 रुपये कर दिया है । दोपहिया वाहनों का दिनभर का पार्किंग चार्ज 175 व चार पहिया वाहनों के लिए 460 रुपये है । अभी भी जब आम लोग अपनी शिकायत लेकर रेलवे के पास जाते हैं तो रेलवे पीपीपी मॉडल का हवाला देकर उन्हें बिना समाधान के वापस लौटा देता है।
बंसल-हबीबगंज पाथ-वे प्राइवेट लि. के चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर का कहना है कि नेशनल अर्बन ट्रांसपोर्ट पॉलिसी-2006 के तहत यह चार्ज बढ़ाए हैं। उनके अनुसार इसमें पार्किंग के लिए उपयोग की जा रही जमीन का सालभर का किराया और उसकी कीमत का अनुपात देखकर चार्ज तय किया जाता है। जबकि वाहनों की सुरक्षा को लेकर कंपनी की कोई जिम्मेदारी तय नहीं है ।
उल्लेखनीय है कि हबीबगंज देश का पहला आईएसओ प्रमाणित रेलवे स्टेशन है। इसे सबसे स्वच्छ रेलवे स्टेशन का अवार्ड भी मिल चुका है। भारतीय रेल स्टेशन विकास निगम लिमिटेड (आईआरएसडीसी) और बंसल ग्रुप के बीच समझौते पर हस्ताक्षर के बाद से यह देश का पहला प्राइवेट रेलवे स्टेशन बना और यहां यह तय किया गया है कि स्टेशन पर पॉर्किंग, खानपान आदि का एकाधिकार तो कंपनी के पास रहेगा। इसके अलावा कंपनी स्टेशन पर एस्केलेटर, शॉपिंग के लिए दुकानें, फूड कोर्ट और अन्य सुविधाओं का विस्तार भी करेगी। लेकिन कंपनी ने एकदम उलट काम किया।
कंपनी ने पूरा ध्यान लाभ कमाने में लगा दिया। स्टेशन पर तोड़-फोड़ इस कदर की हुई है कि कंपनी का रेलवे के साथ करार हुए 20 माह से अधिक समय बीत जाने के बाद भी अभी तक स्टेशन अपनी सामान्य स्थिति में नहीं आ पाया है । लोग रोज ही यहां परेशान होते सहज देखे जा सकते हैं। दूसरी ओर केंद्र की मोदी सरकार को अपने इस मॉडल पर पूरा भरोसा है। वह आगे इसी मॉडल के जरिए देश के 23 अन्य स्टेशनों को निजी हाथों में सौंपने के लिए संकल्पित है।
अच्छी सुविधा, सुरक्षा, हाई स्पीड आदि के लिये है यह पीपीपी
रेल मंत्री गोयल ने रेलवे में हो रहे बदलाव को मॉर्डनाइजेशन या आधुनिकीकरण का नाम दिया है। उन्होंने कहा कि रेलवे में सुविधा बढ़ाने, गांवों और देश के विभिन्न हिस्सों को रेल सम्पर्क से जोड़ने के लिये बड़े निवेश की जरूरत है। अच्छी सुविधा, सुरक्षा, हाई स्पीड आदि के लिये निजी सार्वजनिक साझेदारी (पीपीपी) को प्रोत्साहित करने का सरकार ने निर्णय किया है। उनका कहना है कि रेलवे में बाहर से निवेश आमंत्रित करने के लिये ‘‘कारपोरेटाइजेशन’’ की बात कही गई है। इसका भी फैसला पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के दौरान हुआ था, अब इसे आगे बढ़ाया जा रहा है। रेल की बेहतरी और सुविधाएं बढ़ाने के लिये अगले 10 से 12 साल में 50 लाख करोड़ रुपये के निवेश का इरादा किया गया है।
कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी भी नाराज हैं इस पीपीपी मॉडल से
इसे लेकर कांग्रेस, तृणमूल, द्रमुक समेत विपक्षी दलों का साफ कहना है कि रेलवे में सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी), निगमीकरण और विनिवेश पर जोर देने की आड़ में इसे निजीकरण के रास्ते पर ले जाया जा रहा है। सरकार को बड़े वादे करने की बजाय रेलवे की वित्तीय स्थिति सुधारने तथा सुविधा, सुरक्षा एवं सामाजिक जवाबदेही का निर्वहन सुनिश्चित करना चाहिए। लोकसभा में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी सरकार पर रेलवे की ‘‘बहुमूल्य संपत्तियों को निजी क्षेत्र के चंद हाथों को कौड़ियों के दाम पर बेचने’’ का आरोप लगा चुकी हैं।