चंडीगढ़ , 02 नवम्बर (हि.स.)। पंजाब में किसानों का ‘रेल रोको’ आंदोलन पंजाब के लिए संकट बना हुआ है। कोरोना महामारी के बीच राज्य का त्योहारी सीजन आंदोलन की भेंट चढ़ रहा है, बेरोजगारी बढ़ गई है। माल रेल गाड़ियां बंद कर देने से धान के अम्बार लग गए हैं और इसी माह से शुरू होने वाली गेहूं की बिजाई पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। राज्य में खाद के अभाव से भी गेहूं की बिजाई पिछड़ने और उत्पादन कम होने की बातें कृषि माहिरों ने करनी शुरू कर दी हैं। पंजाब में चल रहे किसान आंदोलन से कम से कम राज्य का अभी तक हज़ारों करोड़ रुपयों का नुकसान हो चुका है।
रविवार शाम तक राज्य भर से खाद के अभाव के समाचार सरकार की तरफ से जारी हो रहे हैं। सरकार ने इस बात को सार्वजानिक रूप से माना है कि यूरिया खाद का संकट बन रहा है। राज्य में 5. 35 लाख टन डीएपी और 15 लाख टन यूरिया की जरूरत है लेकिन मालगाड़ियों की आवाजाही रोक देने से दोनों का संकट चल रहा है। कृषि विभाग के निदेशक राजेश वशिष्ट के अनुसार गेहूं की बिजाई पिछड़ने से गेहूं के उत्पादन के कमी आएगी। क्योंकि किसान अन्य राज्यों से माल गाड़ियों को आने नहीं दे रहे हैं। जबकि धान की खरीद का सीजन भी चल रहा है। धान डालने के लिए बोरियों का भी भारी अभाव है। राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष की तरह खरीदे गए बारदाने की अढ़ाई हज़ार बोरी दिल्ली और मुरादाबाद में अटकी पड़ी हैं क्योंकि पंजाब में किसानों ने रेल पटरियों को रोका हुआ है और 38 दिनों से धरनें जारी हैं।
पंजाब के मोगा जैसी बड़ी मंडियों में, गोदामों में अब धान लगाने के लिए स्थान नहीं है। पंजाब में कोयले का संकट भी बिजली आपूर्ति को प्रभावित करने लगा है। बिजली कटौती का सिलसिला 30 अक्टूबर से ही शुरू हो चुका है। राज्य के पांच थर्मल प्लांटों में से अब गोइंदवाल साहिब का थर्मल प्लांट चल रहा है। कोयले के संकट के चलते एक -एक करके अन्य थर्मल प्लांटों में बिजली उत्पादन कहीं बंद तो कहीं कम होकर रह गया है। केंद्रीय कृषि अधिनियमों को लेकर शुरू हुआ किसान आंदोलन में अब अनेक मांगे शामिल हो चुकी हैं , जिसमें निजी थर्मल प्लांटों के साथ पूर्व की सरकार द्वारा किया गया बिजली समझौता को रद्द करने की बात भी शामिल है। इसलिए किसानों ने निजी थर्मल प्लांट को जाने वाले रेल लाइनों पर धरने लगाए हुए हैं। अभी आंदोलन के समाप्त होने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं।
किसान राज्य में टोल प्लाजा और निजी और कॉर्पोरेट कंपनियों के पेट्रोल पम्पों के आगे धरने लगा कर बैठे हैं जो पेट्रोल पम्प राज्य के लोगों ने लिए हुए हैं, उनका काम बंद हो गया है। चंद रोज़ पहले चंडीगढ़ में किसान संगठनों की बैठक में भी पेट्रोल पम्प डीलरों ने अचानक शामिल होकर अपनी बात रखी थी और किसान संगठनों को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए कहा था। कॉर्पोरेट घरानों के संस्थानों का काम बंद होने के बाद वहां से कर्मचारी भी हटाए जाने लगे हैं। ऐसी ही स्थिति उद्योगिक संस्थानों में हो रही है। उद्योगों में कॉन्ट्रैक्ट पर रखे कर्मचारी हटाए जा रहे हैं जबकि अन्य कर्मचारियों के वेतन पर कट लग चुका है।
एक अनुमान अनुसार करीब 10000 कर्मचारी सीधे प्रभावित हैं जबकि परोक्ष रूप से प्रभावितों की संख्या कहीं ज्यादा है। रेलें बंद होने से रेलवे स्टेशनों पर आधारित कार्य भी बंद है। इससे हज़ारों लोग बेकार और बेरोजगार हो गए हैं। कोरोना की मार के बाद रेल गाड़ियां चलनी शुरू हुई थीं लेकिन अब फिर से बंद हो गई हैं। लुधियाना समेत अन्य रेलवे स्टेशनों पर करोड़ों रुपयों का माल रेलवे गोदामों में रेलों के चलने की प्रतीक्षा में 30 सितम्बर से पड़ा है। आयात -निर्यात का कार्य ठप्प है।
लुधियाना कस्टम हाउस एजेंट एसोसिएशन का कहना है लुधियाना से प्रति माह 20000 कंटेनर आते -जाते हैं, जिनकी कीमत हज़ारों करोड़ों की होती है, वो सभी जाम है। रेलवे मंडल फ़िरोज़पुर और अम्बाला के अधीन आते पंजाब के विभिन्न रेलवे स्टेशनों को माल ढोने के बदले प्रतिदिन 17 करोड़ से अधिक की आय होती थी , वो भी पिछले 38 दिनों से बंद है। साईकल , होज़री , राइस प्रोसेसिंग , चमड़ा , कपास , ट्रेक्टर पार्ट्स , हैंड टूल्स इंडस्ट्री समेत सभी के कार्य ठप्प हैं।
राज्य के पीएचडी चैम्बर के चेयरमैन करण गिल्होत्रा का कहना था कि हालांकि आंदोलन से नुकसान का अनुमान अभी लगा पाना संभव नहीं लेकिन आंदोलन समाप्त नहीं हुआ तो पंजाब की आर्थिक स्थिति बेपटरी हो जाएगी जिसको खड़े होने के लिए लम्बी भरपाई की जरूरत होगी। उनका मानना था कि आंदोलन से अन्य लोगों के साथ -साथ किसान खुद भी नुकसान झेल रहे हैं, परन्तु ऐसे आंदोलन से कोई समाधान नहीं निकलने वाला। ख़ास बात ये भी है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह भी किसानों से अपील कर चुके हैं कि रोष केंद्र सरकार के खिलाफ है तो बंद से नुकसान पंजाब का न होने दें।
किसान आंदोलन का साथ दे रहे फेडरेशन ऑफ़ आढ़ती एसोसिएशन ऑफ़ पंजाब के प्रांतीय अध्यक्ष विजय कालड़ा का कहना था कि रेलों को लेकर किसानों को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए। क्योंकि रेलें रोकने से राज्य का ही नुकसान हो रहा है। जबकि पंजाब की पूरी आर्थिक स्थिति प्रभावित हो रही है।