शीला दीक्षित : महिला सशक्तिकरण के एक युग का अंत

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शीला दीक्षित भारतीय राजनीति का एक ऐसा चेहरा थीं, जो अपने आपमें एक पूरा का पूरा इतिहास थीं।



नई दिल्ली, 20 जुलाई (हि.स.)। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री, कांग्रेस की दिग्गज नेता और महिला सशक्तिकरण की अद्भुत मिसाल शीला दीक्षित अब हमारे बीच नहीं रहीं।  81 साल की शीला दीक्षित पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रही थीं। दिल का दौरा पड़ने से शनिवार दोपहर 3.55 बजे दिल्ली के एस्कॉर्टस हॉस्पिटल में उनका देहांत हो गया।
शीला दीक्षित भारतीय राजनीति का एक ऐसा चेहरा थीं, जो अपने आपमें एक पूरा का पूरा इतिहास थीं। अपने निजी और सियासी जीवन में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे लेकिन उनके हौसले और ऊर्जा में कभी भी कोई कमी दिखाई नहीं दी। इन 81 सालों में कैसा था उनका निजी और सियासी जीवन, आइए एक नज़र डालते हैं।
शीला दीक्षित का निजी जीवन
शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च, 1938 को पंजाब के कपूरथला में एक खत्री परिवार में हुआ था। दिल्ली के जीसस एंड मेरी कॉन्वेंट स्कूल में उन्होंने स्कूली शिक्षा ग्रहण की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से इतिहास में मास्टर डिग्री हासिल की थी।  उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी (आईएएस) विनोद दीक्षित से उनका प्रेम विवाह हुआ था। दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने के दौरान शीला की मुलाकात विनोद दीक्षित से हुई थी। विनोद कांग्रेस के दिग्गज नेता और बंगाल के पूर्व राज्यपाल स्वर्गीय उमाशंकर दीक्षित के बेटे थे। उमाशंकर दीक्षित ने स्वतंत्रता सेनानी के रूप मे ‘असहयोग आन्दोलन’ में भाग लिया और केंद्रीय गृहमंत्री और राज्यपाल जैसे महत्त्वपूर्ण पदों पर रहकर देश को अपनी सेवाएं दीं।
अलग जाति होने के कारण शुरू में दोनों ही परिवारों में इनके प्रेम सबंध का खासा विरोध हुआ। शीला ब्राह्मण नहीं थी, इसलिए, विनोद के परिवार वालों की नाराज़गी सबसे ज्यादा थी, लेकिन बाद उन्होंने इसके लिए हामी भर दी। उधर, 1959 में जब विनोद आईएएस की परीक्षा पास करने वालों की टॉप-10 की सूची में नौवें नंबर पर आए तो शीला के परिवार की भी सारी नाराज़गी दूर हो गई और 11 जुलाई, 1962 को खुशी-खुशी दोनों विवाह के बंधन में बंध गए।  दोनों के दो बच्चे संदीप दीक्षित और लतिका हुए।
संदीप दीक्षित पूर्वी दिल्ली से कांग्रेस के सांसद रह चुके हैं और आज भी वे दिल्ली कांग्रेस के नेता हैं। सब कुछ अच्छा गुजर रहा था कि एक दिन परिवार के साथ ट्रेन से जाते हुए 1987 में विनोद दीक्षित का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। शीला दीक्षित 2011 से दिल की बीमारी से जूझ रहीं थी।  2012 में उनकी एंजियोप्लास्टी हुई थी, तब से लगातार फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। 2018 में फ्रांस के लिले यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में उनकी हॉर्ट सर्जरी भी हुई थी।
शीला दीक्षित के सियासी जीवन पर एक नज़र
राजनीति में आने से पहले शीला दीक्षित कई संगठनों से जुड़ी रहीं।  1970 के दशक की शुरुआत में, वे यंग महिला एसोसिएशन की चेयरपर्सन बनीं और दिल्ली में उन्होंने कामकाजी महिलाओं के लिए दो हॉस्टल भी बनवाए। दीक्षित ने भारत की स्वतंत्रता के 40वें वर्ष और जवाहरलाल नेहरू शताब्दी के कार्यान्वयन के लिए कार्यान्वयन समिति की अध्यक्षता भी की।
1984 से 1989 तक वे कन्नौज (उत्तरप्रदेश) से सांसद भी रहीं। इस दौरान वे लोकसभा की समितियों में रहने के साथ-साथ महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं के आयोग में भारत की प्रतिनिधि भी रहीं। 1986-1989 के दौरान उन्होंने केंद्रीय मंत्री के तौर पर पार्टी को अपनी सेवाएं दीं।
इससे पहले उन्होंने संसदीय मामलों के राज्य मंत्री और बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया। उत्तर प्रदेश में, उन्हें और उनके 82 सहयोगियों को अगस्त 1990 में 23 दिनों के लिए राज्य सरकार द्वारा उस समय जेल में डाल दिया गया, जब उन्होंने महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ एक तीव्र आंदोलन का नेतृत्व किया।
1998 में कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया गया । इसी साल विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को भारी सफलता मिली।  और पार्टी के प्रति गहरी निष्ठा और मेहनत को देखते हुए उन्हें दिल्ली की मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। 1998 से लेकर 2013 तक लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं दीक्षित के पास मौजूदा वक्त में कांग्रेस के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी थी। भारत के सियासी इतिहास में वे अकेली महिला रहीं, जो लगातार तीन टर्म (15 साल तक) किसी प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। दिसंबर, 2013 में  हुए दिल्ली के विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी की ऐसी आंधी चली कि वे चौथी बार मुख्यमंत्री बनने से चूक गईं और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने उनसे दिल्ली का सिंहासन हथिया लिया।
दिल्ली की सियासत पर शीला की अमिट छाप
1998 में कांग्रेस ने शीला दीक्षित को पहली बार दिल्ली का कांग्रेस अध्यक्ष बनाया। इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को भारी सफलता मिली। उन्होंने पंद्रह वर्ष तक मुख्यमंत्री के तौर पर दिल्ली पर शासन किया। अपने शासन के दौरान सार्वजनिक परिवहन को सीएनजी आधारित करना हो, फ्लाईओवर्स का निर्माण हो, दिल्ली में मेट्रो के नेटवर्क का विस्तार हो या फिर बारापूला जैसे बड़े रोड नेटवर्क, सब उन्हीं की देन माने जाते हैं।
2014 में बनी थीं केरल की राज्यपाल
दिल्ली में कांग्रेस की सरकार जाने के बाद 2014 में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया था। हालांकि, उन्होंने 25 अगस्त 2014 को इस पद से इस्तीफा दे दिया था। यूं तो शीला दीक्षित शुरू से ही गांधी परिवार की बेहद करीबी रही हैं, लेकिन यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी से उनका बेहद निजी और गहरा रिश्ता था।
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में वो उत्तर पूर्वी दिल्ली से चुनाव भी लड़ीं थी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पाई। शीला दीक्षित को तालमेल की राजनीति और दिल्ली के विकास का चेहरा माना जाता रहा है। कांग्रेस पार्टी दिल्ली में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर उतारने की तैयारी में भी थी।

 


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