तीन तलाक विधयेक बना कानून, राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दी मंजूरी

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नए कानून के अनुसार मौखिक, लिखित या किसी अन्य माध्यम से पति अगर एक बार में अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है तो वह अपराध की श्रेणी में आएगा।



नई दिल्‍ली, 01 अगस्‍त (हि.स.)। राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक को मंजूरी दे दी है। मुस्लिम महिलाओं से तीन तलाक को अपराध करार देने वाले ऐतिहासिक विधेयक को बुधवार देर रात मंजूरी दी।
राष्‍ट्रपति के विधेयक पर हस्‍ताक्षर करने के साथ ही मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक अब कानून बन गया है। इस कानून 19 सितंबर,2018 से लागू माना जाएगा। इससे पहले  मंगलवार को राज्यसभा ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक पर मुहर लगा दी थी। राज्यसभा से तीन तलाक विधयेक पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था।
उल्लेखनीय है कि दो दिन पहले लोकसभा के बाद राज्यसभा से तीन तलाक बिल पास हो गया था। इस बिल के पक्ष में 99 और विपक्ष में 84 वोट पड़े थे। इससे पहले राज्यसभा में तीन तलाक विधयेक को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने का प्रस्ताव गिर गया था। विधयेक का विरोध करने वाली कई पार्टियां वोटिंग के दौरान राज्यसभा से वॉकआउट कर गई थी। इस विधयेक में तीन तलाक को गैर कानूनी बनाते हुए 3 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
तीन तलाक देने पर ये है सजा का प्रावधान-
-नए कानून के अनुसार मौखिक, लिखित या किसी अन्य माध्यम से पति अगर एक बार में अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है तो वह अपराध की श्रेणी में आएगा।
-अ‍ब तीन तलाक देने पर पत्नी स्वयं या उसके करीबी रिश्तेदार ही इसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकेंगे।
-महिला अधिकार संरक्षण कानून,2019 के तहत पुलिस बिना वारंट के तीन तलाक देने वाले आरोपित को गिरफ्तार कर सकती है।
-एक समय में तीन तलाक देने पर पति को तीन साल तक कैद और जुर्माना दोनों हो सकता है। सिर्फ मजिस्ट्रेट कोर्ट से ही उसे जमानत मिलेगी।
-साथ ही मजिस्ट्रेट पीड़ित महिला का पक्ष सुने बगैर तीन तलाक देने वाले पति को जमानत नहीं दे पाएंगे।
-तीन तलाक देने पर पत्नी और बच्चे के भरण पोषण का खर्च मजिस्ट्रेट तय करेंगे, जो पति को देना होगा।
-तीन तलाक पर बने कानून में छोटे बच्चों की निगरानी और रखावाली की जिम्‍मेदारी मां के पास ही रहेगी।
-नए कानून में समझौते के विकल्प को भी रखा गया है, हालांकि पत्नी के पहल पर ही समझौता हो सकता है लेकिन मजिस्ट्रेट की ओर से उचित शर्तों के साथ।

 


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