अहमदाबाद, 25 नवम्बर (हि.स.)। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसदीय लोकतंत्र में सत्ता पक्ष के साथ-साथ प्रतिपक्ष की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इसलिए इन दोनों में सामंजस्य, सहयोग एवं सार्थक विचार-विमर्श आवश्यक है। जन-कल्याण के व्यापक हित में, सामंजस्य और समन्वय का मार्ग अपनाया जाना चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था में, ‘वाद’ को ‘विवाद’ न बनने देने के लिए ‘संवाद’ का माध्यम ही सबसे अच्छा माध्यम होता है। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि देश की जनता अपने जन-प्रतिनिधियों से संसदीय मर्यादाओं के पालन की अपेक्षा करती है। इसलिए, कभी-कभी जब जन-प्रतिनिधियों द्वारा संसद या विधान सभा में अमर्यादित भाषा का प्रयोग या अमर्यादित आचरण किया जाता है तो जनता को बहुत पीड़ा होती है।
राष्ट्रपति कोविंद बुधवार को केवडिया में आयोजित 80वें दो दिवसीय अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद संबोधित कर रहे थे। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के पास आयोजित इस सम्मेलन में देश के 28 राज्यों की विधानसभाओं के अध्यक्ष, लोकसभा, राज्यसभा के अधिकारी शामिल हुए हैं। गुजरात पहुंचने पर राज्यपाल आचार्य देवव्रत, राज्य के सीएम विजयभाई रूपानी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का स्वागत किया। कार्यक्रम के बाद राष्ट्रपति कोविंद ने केवडिया में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भी गए और सरदार वल्लभभाई पटेल को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि यह बहुत प्रसन्नता का विषय है कि यह सम्मेलन सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा के सान्निध्य में हो रहा है। उनकी यह प्रतिमा, विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है। यह हम सभी देशवासियों के लिए गौरव की बात है।
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि अपने निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि होने के नाते पीठासीन अधिकारी की जवाबदेही क्षेत्र की जनता के प्रति भी होती है। उनके पास सदन के अध्यक्ष का आसन, उनकी गरिमा और दायित्व-दोनों का प्रतीक होता है, जहां बैठकर वह, पूरी निष्पक्षता और न्याय-भावना से कार्य करते हैं। इसलिए पीठासीन अधिकारियों से अपेक्षा है कि आपका व्यवहार भी इन्हीं आदर्शों से प्रेरित होना चाहिए। पीठासीन अधिकारियों का यह दायित्व है कि वे सदन में जन-प्रतिनिधियों को स्वस्थ बहस के लिए उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराएं और शिष्ट संवाद तथा चर्चा को प्रोत्साहित करें। उन्होंने जन-प्रतिनिधियों से भी अपेक्षा की कि वे लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सदैव निष्ठावान रहें। लोकतांत्रिक संस्थाओं और जन-प्रतिनिधियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की है।
उन्होंने कहा कि यह एक सुखद संयोग है कि भारत की पहली लोकसभा के स्पीकर गणेश वासुदेव मावलंकर का जन्म गुजरात में ही हुआ था। भारत की संसदीय प्रक्रिया की सफलता में श्री मावलंकर के योगदान के लिए हम, श्रद्धा व आदर से उनका स्मरण करते हैं। मावलंकर जी का मानना था कि संसद और राज्यों के विधानमंडल जन-हित की सिद्धि के सर्वोच्च मंच हैं। इसलिए सभी सदस्यों को अपने राजनीतिक मतभेद भुलाते हुए आम सहमति से जन-हित का उद्देश्य प्राप्त करना चाहिए। आज देवोत्थान एकादशी का पावन दिवस है। बोलचाल की भाषा में देश के अनेक हिस्सों में इसे ‘देव-उठनी’ एकादशी भी कहते हैं। मान्यता है कि आज के दिन से सामाजिक गतिविधियों में सक्रियता बढ़ती है तथा मांगलिक कार्यों का शुभारंभ किया जाता है। मैं आप सभी को इस शुभ अवसर की बधाई देता हूं।
राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मंगलवार देर रात पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 26 नवम्बर को समापन समारोह को वर्चुअल माध्यम से संबोधित करेंगे। यह अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन का शताब्दी वर्ष है। 26 नवम्बर को ही संविधान दिवस भी मनाया जाएगा। गुरुवार की सुबह सरदार पटेल की प्रतिमा के पास संविधान का मुख्य भाग पढ़ा जाएगा।