देशभर में खुल चुके हैं सस्ती जेनेरिक दवाओं के 5440 प्रधानमंत्री जनऔषघि केंद्र:अश्विनी चौबे

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प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना(पीएमबीजेपी) के तहत 15 जुलाई,2019 तक देश में सस्ती जेनेरिक दवाइयों की बिक्री करने वाले कुल 5,440 समर्पित खुदरा दुकान कार्यशील हैं।



नई दिल्ली, 25 जुलाई (हि.स.)। देशभर में लोगों को सस्ती दरों पर दवाइयां उपलब्ध कराने के लिए अभी तक 5,440 प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र (रिटेल आउटलेट) खुल चुके हैं। देशभर में सबसे ज्यादा केंद्र खुलने की सूची में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है।
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्यसभा में जेनेरिक दवा भंडार के संबंध में पूछे गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना(पीएमबीजेपी) के तहत 15 जुलाई,2019 तक देश में सस्ती जेनेरिक दवाइयों की बिक्री करने वाले कुल 5,440 समर्पित खुदरा दुकान कार्यशील हैं। इसमें सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में 840, तमिलनाडु 539, कर्नाटक 524, गुजरात 494, केरल 465, महाराष्ट्र 358, छत्तीसगढ़ 206, पंजाब 164, आंध्र प्रदेश 181, उत्तराखंड 176, ओडिशा 174, हरियाणा 160, बिहार 155, मध्य प्रदेश 145, राजस्थान 127, तेलंगाना 117, पश्चिम बंगाल 106, दिल्ली 96, असम 79, हिमाचल प्रदेश 57, जम्मू और कश्मीर 56, झारखंड 54, मणिपुर 35, त्रिपुरा 24, अरुणाचल प्रदेश 24, मिजोरम 19, नगालैंड 15, दादर और नागर हवेली 14, पुडुचेरी 14, गोवा 08, चंडीगढ़ 05, दमन और दीव 04, अंडमान और निकोबार दो, मेघालय एक जनऔषधि केंद्र कार्यशील है।
लक्षदीप में अभी तक एक भी प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र नहीं खुला है। केन्द्रीय मंत्री ने बताया कि औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम,1940 और इसके तहत निर्मित नियमावली 1945 के अधीन जेनरिक या ब्रांडेड दवाइयों की कोई परिभाषा नहीं है। हालांकि, जेनेरिक दवाइयां सामान्यत: वे दवाइयां होती हैं जिनमें समान खुराक आकार में समान सक्रिय घटकों की समान मात्रा निहित होती है और इन्हें देने के समान तरीके द्वारा दिए जाने के लिए तैयार किया जाता है, जो कि ब्रांडेड दवाइयों का होता है। मंत्री ने बताया कि इसके अलावा देश में निर्मित औषधियां, चाहे वे सामान्य हों या ब्रांडेड को अपनी गुणवत्ता के लिए समान मानकों का अनुपालन करने के लिए आवश्यक हैं, जो औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम,1940 और इसके तहत निर्मित नियमावली 1945 में निर्धारित किए गए हैं। इसी प्रकार इनके समान रूप से प्रभावी होने की उम्मीद की जाती है।
उन्होंने बताया कि एक दवा के अनब्रांडेड जेनेरिक संस्करण की कीमत आमतौर पर एक संबंधित ब्रांडेड दवा की कीमत से कम होती है क्योंकि जेनेरिक औषधि के मामले में फार्मास्यूटिकल कंपनी को अपने ब्रांड के प्रचार पर पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है। जेनेरिक औषधि की बिक्री को फार्मास्युटिकल कंपनी द्वारा थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं के लिए एक उच्च व्यापार मार्जिन रखकर प्रोत्साहित किया जाता है। चौबे ने बताया कि भारतीय चिकित्सा परिषद(एमसीआई) ने 21 सितंबर,2016 को अधिसूचना के जरिए भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यवसायिक आचार, शिष्टाचार और नीति) विनियम, 2002 के खंड 1.5 में संशोधन अधिसूचित किया है, जो अनुबंधित करता है कि ‘प्रत्येक चिकित्सक दवाइयां जेनेरिक नाम से प्रिस्क्राइब करेगा जो साफ और अधिमानत: बड़े अक्षरों में लिखी हों और वह सुनिश्चित करेगा कि प्रिस्क्रिप्शन और दवाओं के प्रयोग तर्कसंगत हो। एमसीआई ने 21 अप्रैल,2017 को एक परिपत्र और जारी किया है, जिसमें भारतीय चिकित्सा परिषद(आईएमसी) अधिनियम के तहत सभी पंजीकृत चिकित्सकों को उपरोक्त प्रावधानों का पालन करने के लिए निर्देशित किया गया है।

 


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