फरीदाबाद, 25 सितम्बर (हि.स.)। जिले के आधा दर्जन ऐसे दिग्गज नेता हैं, जिनका यह विधानसभा चुनाव आखिरी चुनाव होगा। ये सभी अपनी आखिरी राजनीतिक पारी को सफल बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। विभिन्न विधानसभा से अपनी पुख्ता दावेदारी कर रहे ये नेता चुनावों की घोषणा के बाद से ही चुनावी रण में कूद चुके हैं। हालांकि अभी इन नेताओं की टिकटें कंफर्म नहीं हुई हैं, फिर भी ये अपने राजनीतिक अनुभव का सहारा लेकर टिकट के लिए भरपूर प्रयास कर रहे हैं।
2014 में हरियाणा की राजनीति में जो भाजपा ने बदलाव किया, उसके बाद कांग्रेस सहित दूसरी पार्टियां और दल करीब-करीब हाशिए पर चले गए हैं। हरियाणा में पूर्व केंद्रीय मंत्री एसी चौधरी, पूर्व मंत्री महेंद्र प्रताप, पूर्व विधायक चंद्र भाटिया, आनंद कौशिक, पूर्व मेयर अशोक अरोड़ा और डा.राधा नरूला के राजनीति का यह अंतिम चुनाव होगा।
पूर्व मंत्री ए.सी. चौधरी:
एसी चौधरी ने हरियाणा में अपनी छवि एक पंजाबी नेता के रूप में बनाई थी। सन 1982 में पहला चुनाव स्वर्गीय कुंदन लाल भाटिया के विरुद्ध लड़ा। चौधरी को 34983 मत मिले और कुंदन लाल भाटिया से चुनाव जीत कर विधायक बने, लेकिन 87 में कुंदन लाल भाटिया जीत गए। यह क्रम यूं ही चलता रहा।1991 दोबारा एसी चौधरी चुनाव जीते। उसके बाद कुंदन लाल भाटिया की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। उसके बाद उनकी राजनीतिक विरासत उनके बेटे चंद्र भाटिया ने संभाली और सन 1996, 2000 में लगातार वे दो बार एमएलए का चुनाव जीते। लेकिन परिसीमन के बाद सन 2009 में यहां बडख़ल विधानसभा बनाई गई तो इनकी टिकट काटकर चौधरी महेंद्र प्रताप को दे दी गई और महेंद्र प्रताप चुनाव जीत भी गए। उधर टिकट कटने के बाद चौधरी ने कांग्रेस का दामन छोड़ इनेलो का हाथ पकड़ लिया। हालांकि एक साल पहले दोबारा कांग्रेस का दामन थाम लिया है और पुरजोर तरीके से कांग्रेस की टिकट मांग रहे हैं।
उम्र की बात करें तो चौधरी की आयु 75 पार है और 80 के आसपास बताई जा रही है। आम लोगों में चर्चा है कि यह एसी चौधरी का आखिरी चुनाव हो सकता है। अगर कांग्रेस एसी चौधरी पर दाव खेलती है तो भी नहीं खेलती तो भी।
पूर्व मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह:
महेंद्र प्रताप एक कद्दावर गुर्जर नेता हैं। गुर्जर बिरादरी में इनकी अच्छी पैठ है। परिसीमन से पहले मेवला महाराजपुर सीट से चुनाव लड़े और कई बार विधायक रहे। साथ ही 2009 में लगभग 32000 वोट लेकर बडख़ल विधानसभा से जीत हासिल की। मंत्री भी बने, लेकिन 2014 में प्रतिद्वंदी भाजपा की विधायक सीमा त्रिखा से हार गए। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि महेंद्र प्रताप का यह आखिरी चुनाव साबित होगा। उसके बाद उनके पुत्र उनके राजनीतिक विरासत संभालेंगे।
पूर्व विधायक चंद्र भाटिया:
चंद्र भाटिया पिता स्वर्गीय कुंदन लाल भाटिया की राजनीतिक विरासत मिलने के बाद दो बार विधायक रहे। लेकिन कई बार इन्होंने पार्टियां बदलीं। हजकां से चुनाव लड़े और हार गए। 2014 में जब भाजपा ने इन्हें बडख़ल से दावेदार नहीं बनाया तो इन्होंने पार्टी बदल कर इनेलो ज्वाइंन कर ली। इनेलो ज्वाइन करने के बाद इन्हें 8000 के लगभग वोटों पर संतोष करना पड़ा। तब से लेकर अब तक अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं।
फिलहाल चंद्र भाटिया बडख़ल विधानसभा से छोडक़र एनआईटी 86 में अपना जोर दिखा रहे हैं।लोगों में चर्चा थी कि भाजपा में दोबारा आने की जुगत लगा रहे हैं। लेकिन केंद्रीय राज्य मंत्री से बैर लेना इन्हें महंगा पड़ा और अब अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं। लोगों में चर्चा है कि चंद्र भाटिया का प्रभाव लगभग समाप्त हो रहा है और इस चुनाव के बाद इनके भी राजनीतिक कैरियर पर विराम लगता दिख रहा है।
पूर्व विधायक आनंद कौशिक:
आनंद कौशिक की बात करें तो फरीदाबाद विधानसभा से पहली बार चुनाव लड़े थे और जीत हासिल की। 2009 में भाजपा के प्रतिद्वंदी प्रवेश मेहता को लगभग 10000 वोटों से हराया था और 5 साल हरियाणा सरकार में कांग्रेस के विधायक रहे। लेकिन 2014 के चुनाव में भाजपा की आंधी के आगे टिक न सके और यहां से मौजूदा उद्योग मंत्री विपुल गोयल 40000 वोटों से अधिक मार्जन से जीते।
मौजूदा हालात में लखन सिंगला फरीदाबाद विधानसभा से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। यदि इन्हें पार्टी चुनाव नहीं लड़ाती है तो इनके कैरियर पर भी पूर्णविराम लग जाएगा। उसके बाद इनके भाई बलजीत कौशिक सक्रिय राजनीति में आगे आएंगे।
पूर्व मेयर अशोक अरोड़ा:
पूर्व मेयर अशोक अरोड़ा राजनीति में कोई बहुत बड़ा नाम नहीं है। हालाकि पिछले पार्षद चुनाव में चुनाव जीतकर आए और मेयर बनाए गए थे। फरीदाबाद में मेयर मनोनीत किया जाता है, जिसे पार्टी का एक इनाम भी माना गया है। इसके अलावा हाल फिलहाल एक मंदिर संस्था में चुनाव हुए थे, जिसे जिसमें अशोक अरोड़ा हार गए। अब बडख़ल विधानसभा से कांग्रेस की तरफ से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। 65 वर्षीय अरोड़ा का यह राजनीति में अंतिम चुनाव माना जा रहा है।
डा. राधा नरूला:
राधा एक शिक्षाविद् हैं और कांग्रेस में इन्हें संगठन की तरफ से तो पद मिले, लेकिन पार्टी ने कभी विधायक का टिकट नहीं दिया। मौजूदा समय में पलवल की प्रभारी हैं और हरियाणा कांग्रेस में उपाध्यक्ष के पद पर हैं। इस बार राधा नरूला भी बडख़ल विधानसभा से कांग्रेस की टिकट की दावेदारी कर रही हैं, लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस राधा नरूला पर दाव नहीं खेलती तो सक्रिय राजनीति में इनका भी यह आखिरी मौका होगा।
सीधे तौर पर बात करें तो चंद्र भाटिया को छोड़कर बाकी सभी लगभग 65 वर्ष की आयु के पार हैं और जैसा कि देखा गया है, पिछले कुछ समय से पार्टियों ने 70 प्लस के लोगों को टिकट की मनाही कर दी है। ऐसे में लोगों में साफ तौर पर चर्चा है कि उक्त नेताओं का यह आखिरी चुनाव साबित हो सकता है। इसके बाद ये नेता केवल राजनीतिक चर्चाओं में याद किए जाएंगे न कि सक्रिय राजनीति में।