लद गए राजा और महाराजा के दिन-प्रभात झा 

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मध्यप्रदेश की राजनीति में अपने को ‘महाराज’ और दूसरे अपने को ‘राजा’ मानने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह की जो दुर्गति हुई है, वह पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय है। जनता को नौकर समझकर बरसों से पिता-पुत्र गुना, शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में अपनी राजनीतिक दुकान चला रहे थे। इस बार भाजपा ने चार वर्ष पूर्व इसे अपने एजेंडे में शामिल किया था। खासकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित भाई शाह ने भी कहा था लोकतंत्र में कोई महाराजा और राजा नहीं होता है।



नई दिल्ली, 11 जून, मध्यप्रदेश की सरकार अल्पमत में है। 11 दिसंबर 2018 को मध्यप्रदेश का परिणाम आया था। कांग्रेस को 114 और भाजपा 109 विधानसभा की सीटें मिली थीं। ‘नंबर गेम’ के कारण बिना किसी जोड़-तोड़ के भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पद से इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया। कमलनाथजी की लंगड़ी सरकार ने शपथ ली। अभी मात्र 6 माह हुए थे। लोकसभा का चुनाव आया। जनता-जनार्दन के सहयोग से 6 माह के भीतर कमलनाथ की सरकार विश्वास खो चुकी। पूरे देश को आश्चर्य लगा कि 29 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस मात्र 1 सीट जो स्वयं कमलनाथ की रही है, वह बचा पायी। बाकी 28 लोकसभा सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी विजयी हुए।
स्थिति जब विधानसभावार देखी गयी तो पाया गया कि मध्यप्रदेश की 230 विधानसभा की सीटों में से भाजपा इस लोकसभा में 219 सीटों पर विजयी रही। भाजपा को यह विशाल जनादेश पूर्व में कभी नहीं मिला। 2014 में भी भाजपा को 29 लोकसभा सीटों में से 27 लोकसभा सीटें मिली थीं। मध्यप्रदेश जब एक था, तब सन 1977 में जनता पार्टी को 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटें मिली थीं। उस समय भी मात्र छिंदवाड़ा सीट ही थी, जो जनता पार्टी नहीं जीत पाई। 2019 के चुनाव में भी यही रहा। भाजपा ने सभी 28 लोकसभा सीटें जीती, पर छिंदवाड़ा मात्र 36 हजार से रह गयी।
मध्यप्रदेश के परिणामों पर नजर डालते हैं तो प्रदेश के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की सभी सीटों पर भाजपा ही जीती है। 10 में एक भी सीट कांग्रेस को नहीं मिली है। दूसरी सबसे बड़ी बात मध्यप्रदेश के गरीबों ने गरीबी की चिंता नहीं की। उन्होंने राष्ट्रभक्ति के ज्वार में डूबकर पूरी तरह से मोदीजी पर अपना विश्वास जताया। प्रदेश के किसानों और नौजवानों ने भी मोदीजी पर ही अपना विश्वास जताया। मात्र 6 माह में ही कमलनाथ की लंगड़ी सरकार अपना जनादेश खो चुकी है। भारत में अब झूठ के आधार पर कोई चाहे कि वह सरकार चला लेंगे और पुनः सरकार बना लेंगे, तो यह सिर्फ स्वयं का मुगालता हो सकता है, जनता का नहीं। कमलनाथ सरकार कोई अपने नेक कर्मों और संघर्ष से नहीं बनी थी। यह बात पूरे देश और मध्यप्रदेश की जानकारी में है। भाजपा स्वयं कुछ सीटों पर निर्णय लेने में देर कर चुकी थी और कुछ निर्णय जनता के मनोनुकूल नहीं हुए। इस कारण मात्र पांच-छह सीटों से भाजपा की सरकार नहीं बनी।
यदि मध्यप्रदेश की राजनीतिक गहराई में जाएंगे तो देखने में आएगा कि कमलनाथजी सिर्फ छिंदवाड़ा के सांसद बने रहकर ही काम करने की रूचि रखते थे। उन्होंने कभी प्रयास भी नहीं किया कि वह मध्यप्रदेश के नेता बन जाएं। वे तो स्वयं संजय गांधी के मित्र के नाते मध्यप्रदेश में उपकृत हुए और गांधी परिवार की सदैव चिंता करते रहे। स्थिति यह रही कि लोग पूरे मध्यप्रदेश में यह कहते रहे कि कमलनाथ सांसद सिर्फ अपने व्यवसाय की सुरक्षा के लिए ही बने रहना चाहते हैं। वे आज भी व्यवसायी मानसिकता से ही मध्यप्रदेश सरकार को अपना निजी फर्म मानकर चला रहे हैं। कमलनाथजी की सरकार को यह पता ही नहीं चला कि मध्यप्रदेश में सम्पूर्ण भारत की तरह मोदी की सूनामी चल रही है। उनका अवलोकन था कि वह अपने 6 माह के कार्य पर लोकसभा में 10-12 सीटें जीत जाएंगे। जबकि सच्चाई यह है कि मोदी लहर के साथ-साथ मात्र 6 महीने में कमलनाथजी बतौर मुख्यमंत्री असफल हो चुके और जनता ने ठान लिया कि उनको अबकी सबक सिखाना है। जनता से, किसानों से, बेरोजगारों से झूठ बोलकर लंगड़ी सरकार बनाने वाले कमलनाथजी की पोल खुल गयी है। जब हम सभी उनके बारे में यह कहते हैं कि वे व्यवसायी हैं तो कांग्रेसियों को बुरा लगता होगा। पर क्या यह सच्चाई नहीं है कि उनके घर परिवार और निकटतम व्यक्तियों के इंदौर, भोपाल और दिल्ली स्थित ठिकानों से 281 करोड़ नकद पाए गए और करोड़ों की संपत्ति भी बरामद हुई। क्या कमलनाथजी ने इसका खंडन किया?
मध्यप्रदेश में कमलनाथजी की यह पहली सरकार है, जिसका मंत्रालय ठेके पर चल रहा है। अधिकारियों के तबादले उद्योग का रूप ले चुका है। 500 से अधिक आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के तबादले होना महज मजाक नहीं है। तबादला अब उद्योग बन चुका है। पैसा फेंको और तबादला कराओ। ‘जो जितना पैसा देगा, वह उतनी ही कमाई की पोस्ट पाएगा’। यह नारा कमलनाथजी की लंगड़ी सरकार को पूरी तौर पर सार्थक कर रहा है। मध्यप्रदेश की राजनीति में अपने को ‘महाराज’ और दूसरे अपने को ‘राजा’ मानने वाले  ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह की जो दुर्गति हुई है, वह पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय है। जनता को नौकर समझकर बरसों से पिता-पुत्र गुना, शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में अपनी राजनीतिक दुकान चला रहे थे। इस बार भाजपा ने चार वर्ष पूर्व इसे अपने एजेंडे में शामिल किया था। खासकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित भाई शाह ने भी कहा था लोकतंत्र में कोई महाराजा और राजा नहीं होता है। उसी दिन से भाजपा यहां पूरी तरह से भिड़ गयी थी। स्थिति इतनी खराब हो गयी कि अरुण यादव, अजय सिंह, सिद्धार्थ तिवारी, कांतिलाल भूरिया पूरी तरह से अपनी-अपनी लोकसभा में धराशाई हो गए।
मध्यप्रदेश भाजपा का गढ़ है। दुर्घटनावश कमलनाथजी की लंगड़ी सरकार बन गयी। लेकिन समय बदलते देर नहीं लगती। अब देखिये कि आने वाले पल में मध्यप्रदेश में क्या होता है। जब तेलंगाना में 12 कांग्रेसी विधायक टीआरएस में जा सकते हैं, तो कहीं भी कुछ भी हो सकता है।
(लेखक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं  राज्यसभा के सदस्य हैं।)

 


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