‘पिनराई विजयन’ केरल में राजनीतिक इतिहास बनाने वाले
नई दिल्ली/तिरुवनंतपुरम, 03 मई (हि.स.)। केरल की जनता ने पहली बार किसी पार्टी को लगातार दो बार शासन की बागडोर सौंपी है। केरल के राजनीतिक इतिहास की यह बड़ी घटना है। पिनराई विजयन के नेतृत्व में सीपीएम की अगुवाई वाली वामपंथी लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) ने जीत दर्ज की है। इस जीत के साथ विजयन असाधारण शक्तिशाली राजनेताओं के रूप में उभरे हैं।
पिनराई विजयन को केरल का स्टालिन कहा जाता है। अब तक यह सवाल उठता रहा है कि क्या वे पूर्व सोवियत संघ ताकतवर राजनेता जोसेफ स्टालिन सरीखी हैसियत केरल में रखते हैं! अब उनके प्रशंसक कहते हैं कि विजयन का कद अपनी पार्टी के साथ-साथ देश में भी बढ़ा है।
आखिर पिनराई विजयन ने ऐसा क्या किया कि वे केरल में सबके प्रशंसक हैं? इसके जवाब में केरल लंबे समय तक रहीं संज्ञा धृति कहती हैं, “उन्होंने लोगों को अपने करीब आने का अवसर दिया। केरल के मुख्यमंत्री के तौर पर वे लोगों से दूर नहीं हुए। कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं के समय मजबूती के साथ डटे रहे।” आगे उन्होंने कहा कि केरल में उनकी छवि एक कर्मठ राजनेता की है।
पिनराई विजयन एल्वा समुदाय से आते हैं, जिनका पेशा ताड़ी बनाने का रहा है। कन्नूर जिले के पिनराई गांव में एक अति साधारण परिवार में उनका जन्म हुआ था। लेकिन, छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि-गति रखते थे। केरल स्टूडेंट फेडरेशन से उनका गहरा संबंध था। पार्टी में पिनराई विजयन की छवि एक संगठनकर्ता की रही है।
साल 1998 में गोविंदन की मृत्यु के बाद पार्टी के राज्य सचिव की जिम्मेदारी संभाली। वे अलगे 17 साल तक इस पद पर रहे। उनकी छवि एक ऐसे राजनेता की बनी जो अपनी आलोचना सुनना पसंद नहीं करता है और रवैया तानाशाही का है, लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं करता है कि उन्होंने केरल में पार्टी के आधार को बढ़ाया। विजयन अर्थशास्त्र के विद्यार्थी रहे हैं। वे बाजार को अच्छी तरह समझते हैं और पार्टी के लिए नई लाइन बनाई।
2016 के विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी। अपने कामकाज से उन्होंने पांव मजबूत किए और सूबे की राजनीति में ‘कप्तान’ कहलाने लगे। आज केरल में उनकी छवि निर्णय लेने वाले शासक की है। शासन में रहते हुई विजयन ने स्वास्थ्य, आधारभूत ढांचे, सामाजिक सुरक्षा सरीखे बिंदु पर काफी जोर दिया।
पिनराई विजयन 75 की आयु पार कर चुके हैं, लेकिन केरल में उनकी जगह लेने वाला कोई दूसरा राजनेता नहीं है। सूबे में वे अपनी पार्टी से ऊपर हैं। जबकि पार्टी की विचारधारा इस बात की अनुमति नहीं देती है।