सरकारी नौकरी छोड़कर शुरू की मोती की खेती, अब जमीन में उपज रहा सोना
बेगूसराय, 28 जुलाई (हि.स.)। कौन कहता है कि मीठे पानी के बड़े नदियों में रहने वाले सीप के अंदर स्वाती की बूंद पड़ने से ही मोती बनता है। मोती की उपज तो बेगूसराय के खेत में हो रही है। यूं तो यह कमाल पिछले आठ साल से हो रहा है लेकिन 26 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में बिहार के एकलौते मोती उत्पादक किसान बेगूसराय के जयशंकर कुमार की चर्चा की तो देश-दुनिया का ध्यान इस ओर गया है।
उच्च विद्यालय में क्लर्क की करीब 45 हजार रुपये महीना की नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर डेढ़ बीघा (करीब एक एकड़) जमीन में मोती की खेती करने वाले जयशंकर की इस जमीन पर प्रत्यक्ष रूप से मोती उपज रहा है लेकिन असल में वह जमीन सोना उगल रही है। ऐसे ही किसानों के बल पर कहा गया था ‘मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती।’ जयशंकर कुमार ने 2012 में मोती उत्पादन करने की जिद में जब सरकारी नौकरी छोड़ी थी, तो लोग पागल कहते थे। लेकिन आज उसी पागलपन में हुए आत्मनिर्भरता की चर्चा मन की बात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया है।
पत्रिका में पढ़कर शुरू की खेती, लोगों ने कहा था पागल-
जयशंकर कुमार ने 1992 में एक पत्रिका में मोती के खेती की कहानी पढ़ी थी और तभी से इस ओर उनका ध्यान था। 2005 में बिहार में पहली बार अपने खेतों में औषधीय पौधा स्टीविया लगाकर जिद की खेती शुरू की। इसके बाद आधुनिक कृषि करने के साथ-साथ हुए मोती उत्पादन कैसे होगा इसकी जानकारी जुटाने में लगे रहे। 2009 में जानकारी मिली की डॉ जानकी रमण के शिष्य मुंबई में रहने वाले अशोक मनवाणी मोती उत्पादन का गुर सिखा सकते हैं। इसके बाद उनसे संपर्क किया गया तो उन्हें भी बिहार में मोती उत्पादन शुरू करवाने की जरूरत थी। वे बेगूसराय आए और यहां जयशंकर कुमार को प्रशिक्षण देकर मोती की खेती करवाना शुरू किया। शुरुआती दौर में जलग्रहण क्षेत्रों से सीप जमा कर खुले स्थानों पर इसकी खेती शुरू की गई, मोती का उत्पादन हो गया। इसके बाद तालाब बनाकर व्यापक पैमाने पर मोती उत्पादन शुरू किया गया। इस बीच भुवनेश्वर एवं रायपुर से प्रशिक्षण भी लिया। जब घूम नहीं कर खेत में फीस जमा करते थे तो लोगों ने पागल भी कहा, लेकिन उस पागलपन ने कमाल कर दिया।
स्वाति की बूंद और मोती का निर्माण-
पूर्वजों ने कहा है कि स्वाति नक्षत्र की बूंद सीप के अंदर जाने से मोती का निर्माण होता है लेकिन यह ही सही है ऐसी बात नहीं। जब स्वाति की वर्षा होती है तो मुंह खोलने पर पानी के साथ सीप के अंदर में कंकड़ चले जाते हैं और बाद के दिनों में उसी आकार का मोती बन जाता है। वैज्ञानिकों ने सीप में मोती निर्माण की प्रक्रिया भी ऐसे ही शुरू की, जिसमें सीप का मुंह खोल कर उसके अंदर डाई दे दिया जाता है। सीप के अंदर दबाव पड़ने से श्राव डाय पर जमा होने लगता है, जितना अधिक दिन उसे छोड़ दिया जाएगा, उतना बड़ा मोती तैयार होगा। सीप के अंदर गणेश, लक्ष्मी, कृष्ण, बुद्ध, 786 आदि का देकर उसे तालाब छोड़ दिया जाए जाता है। इससे अब तक हजारों मोती का उत्पादन हो चुका है और अभी फिलहाल तालाब में 15 हजार मोती तैयार हो रहा है।
प्रवासी को कर रहे उत्साहित, सैकड़ों को दिया प्रशिक्षण-
तालाब में मोती के साथ देशी प्रजाति का मछली पालन किया गया है। इसमें 45 श्रमिकों को भी काम मिला है तथा अब तो यह प्रवासी कामगारों को भी प्रशिक्षण देकर मोती बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, प्रगतिशील सोच रखने वाले युवाओं को प्रेरित कर रहे हैं। मोती की खेती शुरू करने के बाद इन्होंने उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश आदि के सैकड़ों किसानों को प्रशिक्षण दिया। जिसके कारण बिहार में लखीसराय और पटना समेत अन्य राज्यों में भी मोती की खेती शुरू हो गई है।
बीबीए पास पुत्र ने भी कृषि को चुना जीवन का आधार-
अब तो जयशंकर कुमार के पुत्र ऋषभ आनंद ने भी बीबीए करने के बाद अपने पिता के फार्मिंग को और नई गति देनी शुरू कर दी है। उच्च विद्यालय तेतरी से प्रथम श्रेणी तथा 2014 में एमआरजेडी कॉलेज बेगूसराय से इंटर करने के बाद से ही पिता के फार्मिंग में हाथ बढ़ाना शुरू कर दिया था। लेकिन 2017 में कॉलेज ऑफ कॉमर्स पटना से बीबीए करने के बाद यह पूरी तरह अपने पिता की तरह कृषि को ही जीवन का आधार चुना तथा कृषि के क्षेत्र में नए आयाम देकर अन्य युवाओं को इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं।