टिहरी, 20 फरवरी। (हि.स.)। आठ साल पहले सत्ता की सियासत से जन्मेे प्रोगेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीएफ) के नेताओं की राह अलग हो चुकी है। सब अपनी-अपनी ढपली बजा रहे है। पीडीएफ के चार प्रमुख नेताओं में से सिर्फ एक ही 2017 में विधानसभा चुनाव जीत पाया था। चुनावी हार के बाद हाशिये पर पहुंचे बाकी नेता अपनी खिसकी जमीन को फिर से पाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। नजरें सभी की 2022 के चुनाव पर हैं। उनके लिए मंजिल फिलहाल आसान नहीं दिख रही।
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में खंडित जनादेश आया था। सबसे बडे़ दल के रूप में उभरे कांग्रेस ने अल्पमत सरकार बनाई थी। उसे चार निर्दलीय विधायकों के सहारे की जरूरत पड़ी थी। इनमें से दो कांग्रेस के बागी थे। मंत्री प्रसाद नैथानी, प्रीतम सिंह पंवार, हरीश चंद्र दुर्गापाल और दिनेश धनै ने उस समय पीडीएफ का गठन किया था। नैथानी देवप्रयाग और हरीश चंद्र दुर्गापाल लालकुआं सीट पर कांग्रेस के बागी बनकर चुनाव जीते थे। प्रीतम सिंह पंवार यूकेडी से जुडे़ थे, लेकिन चुनाव निर्दलीय लडे़, जबकि टिहरी सीट से निर्दलीय दिनेश धनै को सफलता मिली थी। कांग्रेस सरकार में पीडीएफ के इन चारों विधायकों को मंत्री बनने का मौका मिला था।
पीडीएफ की राजनीति को उस वक्त टिहरी जिला काफी हद तक संचालित करता रहा। इसका कारण यह था कि इसके चार में से दो विधायक मंत्री प्रसाद नैथानी और दिनेश धनै टिहरी जिले से थे, जबकि प्रीतम सिंह पंवार निकटवर्ती उत्तरकाशी जिले की यमुनोत्री सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। सिर्फ हरीश चंद्र दुर्गापाल कुमाऊं की लालकुआं सीट से थे। 2017 के चुनाव में सिर्फ प्रीतम सिंह पंवार ही जीत पाए और बाकी तीनों को शिकस्त मिली।
पंवार जीतने के बावजूद इस लिहाज से हाशिये पर माने जा रहे हैं कि न वह अपनी पुरानी पार्टी यूकेडी में लौट पाए हैं और न ही कांग्रेस-भाजपा में उनकी बात बन पाई है। नैथानी और दुर्गापाल कांग्रेस में फिर अपनी जगह बनाने के लिए प्रयासरत हैं। नैथानी ने आंदोलनों और यात्राओं का सहारा लेकर लाइम लाइट में आने की कोशिश की है, लेकिन दुर्गापाल कुछ खास नहीं कर पाए हैं।
नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश के करीबी दुर्गापाल पर उनकी उम्र भी हावी हो रही है। इन स्थितियों के बीच पूर्व पर्यटन मंत्री दिनेश धनै अपनी पार्टी (उत्तराखंड जनएकता पार्टी) बना चुके हैं। चुनाव आयोग से रजिस्ट्रेशन करा लिया है। मगर मुश्किल ये है कि उनके साथ फिलहाल कोई भारी भरकम नाम नहीं जुड़ पाया है। पीडीएफ के पूर्व संयोजक मंत्री प्रसाद नैथानी का कहना है कि पीडीएफ का गठन उस वक्त की जरूरत थी। राज्य को राजनीतिक अस्थिरता से बचाने के लिए पीडीएफ जरूरी था। आज सब अपने हिसाब से काम कर रहे हैं।