स्मृति शेष रघुवंश प्रसाद सिंह : गणित के प्रोफेसर से लेकर केंद्रीय मंत्री तक

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पटना, 13 सितंबर (हि.स.)।  राष्ट्रीय जनता दल के संस्थापकों में से एक रघुवंश प्रसाद सिंह का रविवार को दिल्ली में निधन हो गया।  उन्होंने दिल्ली स्थित एम्स में सुबह साढ़े ग्यारह बजे अन्तिम सांस ली । वे पिछले काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। 74 वर्षीय रघुवंश बाबू  पिछले कई दिनों से बीमार थे। उनके निधन से बिहार के सियासी हलके में शोक की लहर दौड़ गई।

लालू के संकटमोचक
रघुवंश बाबू को लालू प्रसाद यादव का संकटमोचक कहा जाता था। वे राजद में अकेले ऐसा नेता थे जो लालू प्रसाद से कुछ भी बोलने का साहस रखते थे। बिहार और समूचे देश भर में रघुवंश प्रसाद सिंह की पहचान एक प्रखर समाजवादी नेता के तौर पर थी। बेदाग और बेबाक अंदाज वाले रघुवंश बाबू को शुरू से ही पढ़ने और लोगों के बीच में रहने का शौक रहा था। रघुवंश प्रसाद सिंह पिछड़ों की पार्टी कहे जाने वाले राजद का सबसे बड़ा सवर्ण चेहरा भी थे। लेकिन, कुछ दिन पहले ही उन्होंने पार्टी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने  लालू प्रसाद  को चिठ्ठी भेजकर राजद से इस्तीफा दे दिया था। आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को संबोधित करते हुए उन्होंने लिखा था कि जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीछे-पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं।पार्टी के नेताओं , कार्यकर्ताओं और आमजन ने बड़ा स्नेह दिया। मुझे क्षमा करें। हालांकि राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने रघुवंश बाबू की इस चिट्ठी का जवाब देते हुए कहा था कि वे कहीं नहीं जा रहे।

मैथ के प्रोफेसर
रघुवंश प्रसाद सिंह का मैथ के प्रोफेसर से केंद्रीय मंत्री बनने ता का सफर भी काफी रोचक रहा। राजनीति में आने से पहले वे प्रोफेसर थे।  डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह   1969 से 1974 के बीच करीब 5 साल तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में गणित के प्रोफेसर थे।  गणित के प्रोफेसर के तौर पर उन्होंने  नौकरी भी की और इस बीच कई आंदोलनों में वे  जेल भी गए। पहली बार 1970 में रघुवंश प्रसाद टीचर्स मूवमेंट के दौरान जेल गए। उसके बाद जब वे  कर्पूरी ठाकुर के संपर्क में आए तब  1973 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के आंदोलन के दौरान फिर  जेल चले गए। इसके बाद तो उनके जेल आने -जाने का सिलसिला ही शुरू हो गया।  1974 यानि जेपी के आंदोलन में रघुवंश प्रसाद सिंह ने खूब बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और फिर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया।  इन दिनों केंद्र और बिहार में कांग्रेस पार्टी की हुकूमत थी। इमरजेंसी के दौरान जब बिहार में जगन्नाथ मिश्र की सरकार थी, तो बिहार सरकार ने जेल में बंद रघुवंश प्रसाद सिंह को प्रोफेसर के पद से बर्खास्त कर दिया। सरकार के इस फैसले के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह ने कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा और फिर कर्पूरी ठाकुर और जयप्रकाश नारायण के रास्ते पर तेजी से चल पड़े। जानकारी के मुताबिक इस दौरान वे करीब 11 बार जेल गए थे।

पटना के बांकीपुर जेल में हुई थी लालू से पहली मुलाकात
1974 में जेपी मूवमेंट के समय  मीसा  के तहत रघुवंश प्रसाद को मुजफ्फरपुर जेल में बंद किया गया था। इसी समय उन्हें मुजफ्फरपुर से पटना के बांकीपुर जेल में ट्रांसफर किया गया, जहां उनकी पहली बार लालू यादव से मुलाकात हुई। उस दौरान लालू पटना विश्ववविध्यालयल लीडर थे और जेपी मूवमेंट में काफी सक्रिय थे । लालू शुरू से ही एक जुझारू नेता थे , बहुत जल्द किसी के साथ घुल-मिल जाना लालू यादव की खासियत थी और फिर उसी बांकीपुर जेल में जब से लालू यादव से मुलाकात हुई तभी से लालू-रघुवंश में दोस्ती शुरू हो गई।

रघुवंश प्रसाद सिंह का राजनीतिक सफरनामा
रघुवंश प्रसाद सिंह वर्ष 1977 से 1979 तक वे बिहार सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे। इसके बाद उन्‍हें लोकदल का अध्‍यक्ष भी बनाया गया। फिर  1985 से 1990 के दौरान रघुवंश प्रसाद लोक लेखांकन समिति के अध्‍यक्ष  रहे। लोकसभा के सदस्‍य के तौर पर उनका पहला कार्यकाल साल 1996 से शुरू हुआ। साल 1996 के लोकसभा चुनाव में वे  निर्वाचित हुए और उन्‍हें  केंद्रीय पशुपालन और डेयरी उद्योग राज्‍यमंत्री बनाया गया। लोकसभा में दूसरी बार रघुवंश प्रसाद सिंह  1998 में निर्वाचित हुए और 1999 में तीसरी बार वे लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। साल 2004 में चौथी बार उन्‍हें लोकसभा सदस्‍य के रूप में चुना गया और 23 मई 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास के केंद्रीय मंत्री रहे। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्‍होंने पांचवी बार जीत दर्ज की।

लालू से दोस्ती के कारण ठुकरा दिया ऑफर
रघुवंश प्रसाद सिंह ने एक बार कहा था कि यूपीए- 2 में भी उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल होने का मौका मिला था, लेकिन लालू यादव से  दोस्ती की वजह से ही उन्‍होंने मनमोहन सिंह के मंत्री पद के ऑफर को ठुकरा दिया था।

रघुवंश प्रसाद सिंह का परिवार
रघुवंश प्रसाद सिंह अपने दो भाइयों में बड़े थे।  उनके छोटे भाई रघुराज सिंह का पहले ही देहांत हो चुका है। रघुवंश प्रसाद सिंह की धर्मपत्नी जानकी देवी भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। रघुवंश बाबू को दो बेटे और एक बेटी है। रघुवंश प्रसाद सिंह के परिवार से उनके अलावा कोई दूसरा सदस्य राजनीति में सक्रिय नहीं था। उनके  दोनों बेटे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके नौकरी कर रहे हैं जिसमें बड़े बेटे सत्यप्रकाश दिल्ली में इंजीनियर हैं और वहीं नौकरी करते हैं । उनका छोटे बेटे शशि शेखर भी पेशे से इंजीनियर हैं  जो हांगकांग में नौकरी करते हैं।  उनकी बेटी  पत्रकार है और टीवी चैनल में काम करती हैं।

 


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