मिड डे मील योजना का बजट इस्तेमाल नहीं होने पर संसदीय समिति ने जताई चिंता
नई दिल्ली, 09 मार्च (हि.स.)। संसद की एक स्थायी समिति ने पिछले तीन वित्तीय वर्षों में मध्याह्न भोजन योजना के लिए आवंटित बजट के उपयोग न होने पर चिंता जताई है। समिति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से सिफारिश की है कि वह संबंधित विभाग को एक रणनीति तैयार करने का निर्देश दे, जिसमें मिड डे मील (एमडीएम) के तहत आवंटित धन का उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाए।
मानव संसाधन विकास संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने उक्त सिफारिश करते हुए सलाह दी है कि यदि विभाग को शुरुआती चरण में ही यह लगता है कि धन का उपयोग नहीं किया जा सकता है तो उसके पास अतिरिक्त कार्यक्रम होने चाहिए जहां, सक्षम अधिकारियों की मंजूरी से धन को दिया जा सके। साथ ही समिति ने इस बात पर भी जोर दिया है कि वह संतुलित तरीके से आवंटित धन का उपयोग करे ताकि उन उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके जिनके लिए योजना शुरु की गई थी।
मिड डे मील योजना के लिए मानक
मिड डे मील योजना के तहत प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के लिए दिए जाने वाले मध्याह्न भोजन में प्रति छात्र 100 ग्राम अनाज (चावल, गेहूं, पोषक तत्व से भरपूर अनाज), 20 ग्राम दाल, 50 ग्राम सब्जी और 5 ग्राम तेल या वसा, 450 ग्राम कैलोरी ऊर्जा और 12 ग्राम प्रोटीन प्रदान करने के लिए होता है जबकि उच्च प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के लिए इसमें 150 ग्राम खाद्य अनाज, 30 ग्राम दालें, 75 ग्राम सब्जियां और 7.5 ग्राम तेल या वसा प्रति बच्चा 700 कैलोरी ऊर्जा और 20 ग्राम प्रोटीन प्रदान करने के लिए होता है।
खाना पकाने की लागत में दालों, सब्जियों, खाना पकाने के तेल, मसालों, ईंधन आदि पर खर्च शामिल हैं। खाना पकाने की लागत में वर्ष 2016-17 में 7 प्रतिशत को छोड़कर पिछले पांच वर्षों में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2017-18 के लिए खाना पकाने की लागत में कोई वृद्धि नहीं हुई है। 2018-19 में खाना पकाने की लागत में 5.35 प्रतिशत बढ़ गई थी।
उल्लेखनीय है कि मिड डे मील योजना केंद्र सरकार की प्रायोजित योजना और फ्लैगशिप कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) के तहत समर्थित सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों, विशेष प्रशिक्षण केंद्रों (एसटीसी) और मदरसों और मकतबों में आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार करना है। इसके अलावा गरीब बच्चों को प्रोत्साहित करना, वंचित वर्गों से संबंधित, स्कूल में अधिक नियमित रुप से उपस्थित होना और कक्षा की गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने में उनकी मदद करना। गर्मी की छुट्टी के दौरान सूखा प्रभावित क्षेत्रों में प्रारंभिक चरण के बच्चों को पोषण संबंधी सहायता प्रदान करना।