नई दिल्ली, 18 जुलाई (हि.स.)। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने गुरुवार को लोकसभा में वित्त विधेयक में सरकार द्वारा कई कानूनों में परिवर्तन को शामिल किए जाने का विरोध किया। इस दौरान उनकी संसदीय कार्यमंत्री से नोकझोंक और बहस भी हुई ।
वित्त विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने सरकार पर विधेयकों को धड़ल्ले से पास कराने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कई कानूनों में परिवर्तन को वित्त विधेयक में शामिल कर सरकार ने विधायिका के दायरे को सीमित करने की कोशिश की है। इन कानूनों में परिवर्तन के लिए सरकार को अलग से कानून लाना चाहिए था। इससे पहले अध्यक्ष ने वित्तमंत्री को इन कानूनों में परिवर्तन को वित्त विधेयक में शामिल करने की अनुमति दे दी थी।
संसदीय कार्य राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने उन्हें लोकसभा अध्यक्ष की व्यवस्था का ध्यान कराते हुए वित्त विधेयक पर अपना विषय रखने को कहा। इस पर चौधरी ने कहा कि वह स्पीकर नहीं हैं, जो उन्हें निर्देश दे रहे हैं। चौधरी की तल्ख टिप्पणी के बाद मेघवाल ने खड़े होकर कहा कि क्या वह अध्यक्ष की व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं। मेघवाल ने कहा कि वह संसदीय कार्य मंत्री हैं और उन्हें इस पर बोलने का पूरा हक है। मामले में दोनों ओर से बढ़ते विवाद को देखते हुए अध्यक्ष ओम बिरला ने कांग्रेस नेता को वित्त विधेयक पर अपनी बात रखने को कहा।
वित्त विधेयक पर चर्चा की शुरुआत में ही आरएसपी नेता एनके प्रेमचन्द्रन ने नियम पुस्तिका और संविधान का हवाला देते हुए कई कानूनों में परिवर्तन का विरोध किया। उन्होंने कहा कि सरकार केवल कराधान के मामलों को ही वित्त विधेयक में शामिल कर सकती है, किसी कानून में स्थाई बदलाव के लिए सरकार को अलग से प्रस्ताव लाना चाहिए। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि मामले में अध्यक्ष का निर्णय ही अंतिम है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि गैर कराधान मुद्दों को वित्त विधेयक में शामिल नहीं किया जा सकता। काराधान से जुड़ी अति आवश्यक बदलावों को इनमें शामिल किया जा सकता है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद अध्यक्ष ओम बिरला ने व्यवस्था देते हुए वित्त विधेयक में कुछ कानूनों में बदलाव को शामिल किए जाने को अपनी अनुमति प्रदान कर दी।
इसके बाद वित्त विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने दोबारा इस मुद्दे को उठाया । उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकारों में 70 से 75 प्रतिशत विधेयकों पर गहन समीक्षा होती थी लेकिन अब केवल 20 से 25 प्रतिशत विधेयकों में हो रहा है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में कहा है कि कुछ कानूनों में बदलाव को वित्त विधेयक में शामिल किए जाने पर अध्यक्ष का निर्णय अंतिम नहीं है। इस पर अध्यक्ष ओम बिरला ने उन्हें कर्नाटक मामले में विधानसभा को अधिकार दिए जाने का उदाहरण दिया।