पांच नदियों के संगम स्थल पंचनद धाम पुरातत्व इतिहास को संजोए

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नदियों का उद्गम स्थान हिमालय होने के कारण मिलती है हर तरह के रोगों की जड़ी बूटियां



औरैया, 08 जुलाई (हि.स.)। आजादी के पहले से भारतवर्ष की जमीन लगभग 60% बीहड़ एवं जंगल और बंजर क्षेत्र में तब्दील थी, जिससे यहां नदियों के कारण वन क्षेत्र को बढ़ाने में खासा योगदान रहा है। क्योंकि भारतवर्ष नदियों का देश है, इसलिए नदी क्षेत्रों में वन बीहड़ और जंगल मिलना स्वाभाविक होता है। यही कारण है कि भारत वर्ष में वन सम्पदा जंगल अधिक मिलते हैं और इन जंगलों की कहीं न कहीं खासी विशेषता है जो भारतवर्ष की सम्प्रभुता अखंडता और इसके पुरातत्व इतिहास को भी संजोए हुए हैं।

बताते चलें कि पुरातत्व काल में इन्हीं जंगलों वन और बीहड़ क्षेत्रों में ही भारतवर्ष के तमाम ऋषि मुनि तपस्वी यहां तक की भगवान श्री राम और कृष्ण जैसी महान विभूतियां भी जंगल में रहे और इससे मोह करना पड़ा।महाभारत काल में भगवान श्री कृष्ण अपने गोपियों के साथ पांडवों के समय अज्ञातवास किया था और उस अज्ञातवास के दौरान इन लोगों ने भी जंगल और नदी का क्षेत्र अपनाया जो आज भी औरैया, जालौन और इटावा की सीमा पर स्थित पांच नदियों के संगम यमुना, चंबल, सिंध, पहूज और कुंवारी के पावन तट पर स्थित पंचनद धाम के क्षेत्र में बसे गोपियां खार, कालेश्वर की गढ़िया, नीमरी, करयावली, जुहीखा, भरेह, बबाईन क्षेत्र के सुदूरवर्ती फैले बीहड़ क्षेत्र में रहकर अज्ञातवास पूरा किया। यहां पर स्थित महाकालेश्वर मंदिर में स्थित भगवान भोलेनाथ की मूर्ति को स्थापित कर भीम ने तपस्या की जो आज भी यहां विद्यमान है। बताते हैं कि इस पंचनद क्षेत्र में तमाम ऐसी वस्तुएं जगह देखने को मिलती हैं जो अद्वितीय हैं।

यहां बाबा साहब मंदिर पर खड़ी पीपल के वृक्ष का इतिहास पुराना इसलिए भी है कि इसके नीचे बैठकर तुलसीदास जी ने रामायण के कुछ अंश लिखें और नदी धारा में आसन लगाने के बाद उन्होंने बाबा साहब मंदिर के स्थान से पीने के लिए जल मंगाया। जिसे उस समय के समकालीन वहां पर रह रहे महान तपेश्वरी महाराज भोला वन और मंजू वन ने पूरा किया। उसी समय उन्होंने यहां रुक कर रामायण के कुछ अंश लिखें और बाबा- साहेब मंदिर के लिए दाहिना वर्ती शंख, गाय, बछड़ा तथा लक्ष्मी नारायण की मूर्ति के साथ-साथ एकमुखी रुद्राक्ष भी भेंट किया था जो आज भी इस स्थान को पवित्र कर रहे हैं।

इस क्षेत्र में मिलने वाले पिलुआ के वृक्ष बहुत ही पवित्र और पुरातत्व

बताते चलें कि इस जंगली क्षेत्र में जो चंबल वैली के नाम से विख्यात है यहां पर पुराने दरख्तों में पिलुवा, पीपल, और बरगद के ऐसे बहुत से वृक्ष हैं जो महाभारत और रामायण काल की अपनी यादों को तरोताजा कर देते हैं। इन्हीं धरोहरों को कैद करने के लिए हिन्दुस्थान समाचार ने नदी तट पर स्थित वन क्षेत्र का दौरा किया तो पाया कि यहां हजारों साल पुराने पिलुआ, पीपल और बरगद के पेड़ दिखाई दिए जिनको देखकर आश्चर्य के साथ साथ विश्वास करना भी जरूरी होता है। इन वृक्षों की उम्र अधिक होने के कारण इनका स्वरूप भी विकराल होने के साथ-साथ जीर्ण-शीर्ण अवस्था में दिखाई देता है। ऐसे ही कुछ पवित्र प्रतीकात्मक वृक्षों का दर्शन प्राप्त करने का लाभ प्राप्त हुआ। ऐसा ही एक युवा वृक्ष जिसकी उम्र लगभग हजारों वर्ष बताई जाती है जिसके नीचे रहकर संतों ने तपस्या की और इसके नीचे गुफा होने का भी अनुमान लगाया जाता है, जिसको पूर्वजों ने देखा भी है।

क्षेत्र के जनपद इटावा में पिलुआ वाले हनुमान जी के नाम से ऐतिहासिक पौराणिक और दिव्य मंदिर स्थित है जो पूरे देश में ख्याति प्राप्त है और यहां पर स्थापित मूर्ति जो स्वयं बजरंगबली की है। चमत्कारिक रूप से लड्डू का भोग लगाती है और श्वास भी लेती है। यह यहां का चमत्कार है और इसीलिए पिलुवा के वृक्ष को पूजनीय माना जाता है। पीपल का वृक्ष जो पंचनद धाम बाबा साहब मंदिर पर स्थित है इस वृक्ष के नीचे महात्मा तुलसीदास जी ने अपने जीवन काल में रामायण के कुछ अंश भी लिखे हैं।

दुर्लभ जड़ी बूटियां और औषधि

क्योंकि यह क्षेत्र यमुना और चंबल नदियों के शुद्ध वातावरण से आच्छादित रहता है और इन नदियों का उद्गम स्थल हिमालय है। सभी जानते हैं कि हिमालय औषधि क्षेत्र का देवतक और आविष्कारक है। जहां हर प्रकार की औषधियां जड़ी बूटियां मिलतीं रहतीं हैं और उन्हीं के कारण नदियों द्वारा नदी क्षेत्रों में इन औषधियों का मिलना स्वभाविक है। जो औषधि के जानकार हैं जिनको वैद्य कहते हैं, अक्सर इस क्षेत्र में इन जड़ी-बूटियों बूटियों को प्राप्त कर लोगों में प्रयोग करते रहते हैं। इसी प्रकार यहां हर प्रकार के रोगों के निदान हेतु हर प्रकार की जड़ी बूटियां उपलब्ध हैं जिसे जानकार लोग प्रयोग में लेते हैं और तरह तरह के रोगों से लोगों को छुटकारा दिलाते हैं।

क्योंकि यह क्षेत्र बीहड़ और जंगल क्षेत्र होने के कारण इन क्षेत्रों में डकैतों के बराबर होने के कारण इन क्षेत्रों का सरकारों द्वारा उचित देखरेख और डकैतों की समस्या से निजात न दिला पाने के कारण यह क्षेत्र आज भी लोगों की पहुंच से दूर है। लेकिन अब लगभग विगत 4-5 वर्षों से यहां पर तरह-तरह के आवागमन के साधन पर्यटन क्षेत्र में पर्यटकों का आना तथा दूरदराज से बड़े बड़े पत्रकारों, प्रबुद्ध लोगों द्वारा आकर क्षेत्र में अब कुछ कर गुजरने की ठानी है। लगता है कि इस क्षेत्र में शीघ्र बहुआयामी गतिविधियां शुरू होने वाली है। जिससे इस क्षेत्र को हर प्रकार से शोहरत हासिल होने के साथ-साथ इसका भविष्य भी प्रकाशमयी दिखाई दे रहा है।


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