बिहार पंचायत चुनाव की सियासत में शुरू हुआ शह-मात का खेल

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गैरदलीय चुनावी बिसात पर भी भिड़ेंगे पार्टियों के मोहरे



पटना, 11 सितंबर (हि.स.)। बिहार में गैरदलीय आधार पर हो रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की बिसात सियासी है। इसलिए सियासी पार्टियों ने भी शह-मात के खेल में मोहरों की तलाश शुरू कर दी है। गांव की सरकार चुनने की मुनादी के साथ ही प्रदेश की सभी पार्टियां बाजी मारने की रणनीति बनाने में जुट गई हैं। आखिर 2024 की लोकसभा और 2025 की विधानसभा की चुनावी चालों के प्लॉट भी तो यहीं तैयार होने हैं।

गांव की सरकार में पार्टियों की योजना केवल जिला परिषद अध्यक्ष और प्रखंड प्रमुख तक ही सीमित नहीं है। मुखिया के पद पर भी दलीय रणनीतिकारों की पैनी निगाह है। जिला परिषद अध्यक्ष और प्रखंड प्रमुख के पद पर पार्टी समर्थकों को काबिज कराने के लिए जिला पार्षद और पंचायत समिति सदस्य के रूप में भी पार्टी के नुमाइंदों का पर्याप्त संख्या में जीतकर आना जरूरी है। पिछले पंचायत चुनावों का मिजाज बताता है कि सबसे अधिक मारामारी मुखिया की सीट के लिए ही होती है। मुखिया के उम्मीदवारों के साथ समझौता करने पर ही जिला परिषद या पंचायत समिति उम्मीदवारों की राह आसान हो सकती है।

उम्मीदवार भी खटखटा रहे दलों के दरवाजे

पंचायती राज प्रतिनिधि बनने के ख्वाहिशमंद उम्मीदवार प्रमुख पार्टियों का समर्थन पाने के लिए दलों के दरवाजे खटखटा रहे हैं। किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े लोग भी पार्टी नेताओं को अपनी जीत पक्की बताने का दावा कर समर्थन देने की गुहार लगा रहे हैं। जिला परिषद अध्यक्ष या प्रमुख बनने की चाहत रखने वाले लोग तो हर कीमत पर किसी प्रमुख पार्टी का समर्थन पाना चाह रहे हैं।

पार्टियां क्यों हैं बेचैन

-पंचायत चुनाव के बहाने जमीनी स्तर पर संगठन विस्तार का मौका मिलता है।

-पंचायत, प्रखंड और जिलों के निर्वाचित निकायों पर पार्टी समर्थकों के कब्जे से जमीनी स्तर पर पार्टी की योजनाओं को पहुंचाने में मदद मिलती है।

-लोकसभा या विधानसभा चुनाव के दौरान वोट का गणित अपने पक्ष में करने में आसानी होती है।

दल ऐसे बना सकते हैं रणनीति

-जिला पार्षद उम्मीदवारों को पार्टी के वरिष्ठ नेता उम्मीदवार घोषित किए बिना चुनाव प्रचार में सहयोग करेंगे। -हर जिला पार्षद उम्मीदवार के साथ पंचायत समिति सदस्य और मुखिया उम्मीदवार के पैनल को प्रचारित किया जाएगा।

-अभी से ही जिला परिषद अध्यक्ष और प्रखंड प्रमुख पद पर कब्जे के लिए योजना बनाई जाएगी।

-एक सीट से एक ही पार्टी समर्थक का लड़ना पार्टियां सुनिश्चित करेंगी।

क्या कहती हैं प्रदेश की मुख्य पार्टियां

प्रदेश महामंत्री भाजपा देवेश कुमार ने बातचीत में कहा कि गैरदलीय चुनाव के बाद भी ग्रासरूट डेमोक्रेसी से हम उदासीन कैसे रह सकते हैं। उम्मीदवार घोषित किए बिना स्थानीय कार्यकर्ता एक उम्मीदवार का समर्थन तय कर जीत सुनिश्चित करने पर जोर लगाएंगे।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मदनमोहन झा ने कहा कि स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ता समर्थक उम्मीदवार की जीत की रणनीति बनाएंगे। गैरदलीय चुनाव के बाद भी कोशिश होगी की पंचायती राज में अधिक से अधिक लोग आएं। प्रदेश राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि पंचायत स्तर पर हमारा संगठन पहले से मजबूत है। औपचारिक रूप से हस्तक्षेप किए बिना पार्टी समर्थकों की पंचायती राज में अधिक भागीदारी पर फोकस रहेगा।

प्रदेश जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि सीएम नीतीश कुमार के विचारों को गांव तक पहुंचाने वाले कार्यकर्ताओं का स्थानीय स्तर पर काफी सम्मान है। इसलिए उम्मीदवार घोषित नहीं करने की बाध्यता के बावजूद बड़ी संख्या में जदयू समर्थकों के जीतने का विश्वास है।


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