सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान को झटका, शुक्रवार को बैठक बंद कमरे में अनौपचारिक होगी

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सुरक्षा परिषद की औपचारिक बैठक के लिए न्यूनतम नौ सदस्यों की सहमति आवश्यक है, जो पाकिस्तान हासिल करने में नाकामयाब रहा है। इस बैठक में पाकिस्तान के प्रतिनिधि को अपना पक्ष रखे जाने की इजाजत नहीं होगी।



न्यूयॉर्क, 16 अगस्त (हि.स.)। पाकिस्तान को सुरक्षा परिषद में झटका लगा है। सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य चीन के बीच बचाव के बाद सुरक्षा परिषद ने मान लिया है कि कश्मीर के मुद्दे पर सुरक्षा परिषद की औचारिक बैठक की जगह अब बंद कमरे में शुक्रवार को अनौपचारिक बैठक ही हो सकेगी, जिसमें परिषद के पांचों स्थाई सदस्य सहित 15 सदस्य ही भाग ले सकेंगे। सुरक्षा परिषद की औपचारिक बैठक के लिए न्यूनतम नौ सदस्यों की सहमति आवश्यक है, जो पाकिस्तान हासिल करने में नाकामयाब रहा है। इस बैठक में पाकिस्तान के प्रतिनिधि को अपना पक्ष रखे जाने की इजाजत नहीं होगी। परिषद में रूसी प्रतिनिधि ने बुधवार की शाम कहा कि वह तभी बैठक में भाग लेंगे, जब परिषद की बैठक बंद कमरे में अनौपचारिक होगी। मास्को की ओर से पहले ही यह कहा जा चुका है कि कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच राजनैतिक और कूटनीतिक द्विपक्षीय वार्ता एक मात्र विकल्प है। रूसी प्रतिनिधि इन निर्देशों पर अडिग रहेंगे।
पिछले सप्ताह पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मुहम्मद कुरैशी ने अपनी बीजिंग यात्रा में अपने समकक्ष विदेश मंत्री के सम्मुख एक के बाद एक दलीलों से उन्हें इस बात के लिए राज़ी किया था कि वह जम्मू कश्मीर के संदर्भ में अनुछेद 370 और 35ए को रद्द किए जाने तथा इस क्षेत्र का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने एवं कश्मीर में भारतीय पुलिस बल की कथित ज्यादितियों के विरुद्ध सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाएंगे। इस संबंध में कुरैशी ने सुरक्षा परिषद की अध्यक्ष को भी पत्र लिखकर परिषद की औपचारिक बैठक बुलाने और पाकिस्तान की ओर से पक्ष रखने, बैठक की वार्ता को अधिकृत तौर पर रिकॉर्ड किए जाने का आग्रह किया था। लेकिन कुरैशी अथवा चीन सुरक्षा परिषद के 15 में से अपेक्षित नौ सदस्यों को औचारिक बैठक के लिए तैयार कराने में विफल रहे। इस अनौचारिक बैठक में सदस्यों की ओर से उठाई गई बातों को अधिकृत तौर पर सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। इस तरह का एक प्रयास सन् 1971 में हुआ था, तब परिषद की बैठक औपचारिक रूप से हुई थी।
चीन के पाकिस्तान के प्रति रुख में कोई नयापन नहीं है। पुलवामा मामले में भी चीन आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना अजहर मसूद को आतंकी घोषित किए जाने के मामले में भी हरी झंडी देने में आनाकानी करता रहा था। यह तो अमेरिका और इंग्लैंड सहित अनेक देशों के दबाव का असर रहा कि चीन ने सुरक्षा परिषद की ओर से आतंकी सूची में रखे जाने की प्रस्ताव को स्वीकार किया।

 


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