अमेरिका में अगले साल नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में ट्रम्प की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। उनकी प्राथमिकताओं में चीन के साथ व्यापार युद्ध की मौजूदा तकनीकियों को दूर कर शी जिनपिंग के साथ एक सम्मानजनक समझौते पर पहुंचना भी होगा। ट्रम्प यह ज़रूर चाहेंगे कि ईरान के मामले वैश्विक स्तर पर संयुक्त मोर्चा बने, लेकिन रूस, चीन और यूरोपीय देश इस मामले में कितना साथ देंगे, एक टेढ़ा सवाल है।
कहा जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रम्प की तरह व्लादिमिर पुतिन को भी एशिया में चीन को बैलेंस करने के लिए मोदी के रूप में रणनीतिकार की दरकार है, जो अपनी दूसरी पारी में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर एशियाई देशों में एक सितारे के रूप में उभर कर सामने आए हैं। बेशक, मोदी और ट्रम्प के बीच वार्ता में सामरिक साझेदारी, आतंकवाद और इंडो-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक भागीदारी तो बड़े मुद्दे होंगे ही, मिसाइल रोधी एस -400 प्रणाली पर चर्चा भी अहम होगी। मोदी यह कदापि नहीं चाहेंगे कि रूस के साथ सात दशक पुराने सामरिक और सैन्य साझीदारी वाले रिश्तों को दरकिनार कर अमेरिका की मिसाइल रक्षा प्रणाली थाड के लिए हामी भर दी जाए। ईरान के साथ सांस्कृतिक और तेल के रिश्तों में ट्रम्प भले ही कोई रियायत नहीं दें, लेकिन भारत इतना ज़रूर चाहेगा कि अफ़ग़ानिस्तान में शांति वार्ता समझौते में भारतीय हितों की अनदेखी नहीं हो।
भारत ने हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया है कि शांति समझौते में अफ़ग़ानिस्तान की चुनी हुई सरकार ज़रूर बातचीत के केंद्र में हो। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के नवनिर्माण में ढाई अरब डाॅलर निवेश किए हैं। अमेरिका के व्यापार संरक्षणवाद पर चोट करने के लिए भारत से भी एक कुशल टीम ओसाका में होगी, जिसमें सुरेश प्रभु और विदेश मंत्री एस जयशंकर अहम होंगे।
मोदी के चाहने वाले दस शिखर नेताओं में ट्रम्प, पुतिन, शी, शिंज़े आबे और एमेनुएल मैक्रों, जर्मन चांसलर मर्केल के अलावा सऊदी प्रिंस सलमान तो मुख्य हैं ही, दक्षिण अफ़्रीका, ब्राज़ील और चिली के नेताओं से भी वह इस बार घिरे रहेंगे। मोदी दो अलग -अलग त्रिपक्षीय वार्ताओं के केंद्र में होंगे। एक त्रिपक्षीय वार्ता व्लादिमिर पुतिन, शी जिन पिंग के साथ है, दूसरी जापान के शिंज़े आबे, डोनाल्ड ट्रम्प के साथ होनी तय है। विश्व की पांचवीं आर्थिक शक्ति के रूप में मोदी के नेतृत्व में भारत को एशिया में एक उभरती शक्ति के रूप में देखा जा रहा है।
जी-20 देशों के इस शिखर सम्मेलन में चार सत्र होने तय हैं, जिनमें वैश्विक अर्थव्यवस्था में व्यापार और विनिवेश तथा डिजिटल अर्थव्यवस्था के नए-नए आयाम पर चर्चा होने के साथ विश्व में आर्थिक असमानता, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा और पर्यावरण मुख्य मुद्दे होंगे।
भारत की पूरी कोशिश होगी कि वैश्विकअर्थव्यवस्था में मुक्त व्यापार के लिए उदारता बरती जाए, व्यापार संरक्षण के ख़िलाफ़ सदस्य देश एकजुट हों और जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण जैसे मुद्दों पर साझी लड़ाई लड़ी जाए।