कानपुर, 08 अक्टूबर (हि.स.)। अधर्म पर धर्म की और असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक रावण का व्यक्तित्व शायद ऐसा ही है कि पूरे देश में उसे सीता हरण का दोषी मानकर उसका पुतला तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जलाया जाता है लेकिन उत्तर प्रदेश के कानपुर जनपद एक ऐसी जगह है जहां दशहरे (विजय दशमी) के दिन रावण की पूजा की जाती है। इतना ही नहीं यहां पूजा करने के लिए रावण का मंदिर भी मौजूद है जो साल भर में सिर्फ एक बार दशहरे के दिन खोला जाता है।
रावण का यह मंदिर उद्योग नगरी कानपुर के शिवाला इलाके में मौजूद है। विजयदशमी के दिन इस मंदिर के पट खोले गए। पूरे विधिविधान से रावण का दुग्ध स्नान और अभिषेक कर श्रंगार किया गया और उसके बाद पूजन के साथ रावण की स्तुति कर आरती की गई। पुजारी विनोद कुमार शुक्ला ने बताया कि सन् 1868 में कानपुर में बने इस मंदिर में तबसे आज तक निरंतर रावण की पूजा होती आ रही है। लोग हर वर्ष इस मंदिर के खुलने का इंतजार करते हैं और मंदिर खुलने पर यहां बड़े धूम धाम से पूजा अर्चना के बाद रावण की आरती भी की जाती है। श्रद्धालु सिंपल गुप्ता ने बताया कि कानपुर में मौजूद रावण के इस मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि यहां मन्नत मांगने से लोगों के मन की मुरादें भी पूरी होती है और लोग इसीलिए यहां दशहरे पर रावण की विशेष पूजा करते हैं। यहां दशहरे के दिन ही रावण का जन्मदिन भी मनाया जाता है।
ज्ञान स्वरुप में हुआ मंदिर का निर्माण
ब्रह्म बाण नाभि में लगने के बाद और रावण के धराशाही होने के बीच कालचक्र ने जो रचना की उसने रावण को पूजने योग्य बना दिया। यह वह समय था जब राम ने लक्ष्मण से कहा था कि रावण के पैरों की तरफ खड़े होकर सम्मान पूर्वक नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करो, क्योंकि धरातल पर न कभी रावण के जैसा कोई ज्ञानी पैदा हुआ है और न कभी होगा। रावण का यही स्वरूप पूजनीय है और इसी स्वरुप को ध्यान में रखकर कानपुर में रावण का मंदिर स्थापित हुआ और सालों से विजय दशमी के मौके पर पूजन का विधान है।