सिंदूर, मेहंदी, मंगलसूत्र पहन पति संग रथयात्रा में शामिल हुई नुसरत.
आमंत्रण को स्वीकार करते हुए गुरुवार को नुसरत जहां अपने पति निखिल जैन के साथ रथयात्रा में पहुंची। नसरत मांग में सिंदूर लगा रखा था, हीरे का मंगलसूत्र, कानों में झुमके, हाथ में कोहनी तक मेहंदी के बीच एनजे यानी अपने पति का नाम और तांत की पारंपरिक लाल धारी वाली साड़ी पहनकर शामिल हुई। मेहंदी के बीच चूड़ी, कंगन, लहठी से भी उनका हाथ भरा हुआ था।
कोलकाता, 04 जुलाई (हि.स.)। इस्लामिक कट्टरपंथियों को ठेंगा दिखाते हुए पश्चिम बंगाल के बसीरहाट से सांसद नुसरत जहां ने एक बार फिर सिंदूर, मेहंदी और मंगलसूत्र पहन कर अपने पति निखिल जैन के साथ रथयात्रा में हिस्सा लिया। संसद में भी उन्होंने इसी तरह के पहनावे में शपथ ली थी, जिसके बाद देवबंद के मौलवी ने उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया था।
राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के पूर्व सांसद इदरीश अली ने भी इस पर सवाल खड़ा किया था और कहा था कि नुसरत को हिंदू रीति रिवाज के अनुसार काम नहीं करना चाहिए। इसे लेकर देशभर के कट्टरपंथियों ने नुसरत पर हमला बोलना शुरू कर दिया था। इस पर तमाम रूढ़िवाद को परे धकेलते हुए नुसरत ने गुरुवार को भगवान जगन्नाथ की पूजा, आरती और अर्चना की। इस बार पश्चिम बंगाल के इस्कॉन मंदिर की ओर से रथयात्रा में मुख्य अतिथि के तौर पर नुसरत जहां को आमंत्रित किया गया था, जबकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को प्रधान अतिथि के तौर पर आमंत्रण था।
इस आमंत्रण को स्वीकार करते हुए गुरुवार को नुसरत जहां अपने पति निखिल जैन के साथ रथयात्रा में पहुंची। नसरत मांग में सिंदूर लगा रखा था, हीरे का मंगलसूत्र, कानों में झुमके, हाथ में कोहनी तक मेहंदी के बीच एनजे यानी अपने पति का नाम और तांत की पारंपरिक लाल धारी वाली साड़ी पहनकर शामिल हुई। मेहंदी के बीच चूड़ी, कंगन, लहठी से भी उनका हाथ भरा हुआ था।
अभिनेत्री से सांसद बनने के बाद हाल ही में नुसरत ने निखिल जैन से शादी की है, इसीलिए इस नए जोड़े को देखने के लिए कोलकाता के उस मिंटो पार्क के पास हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उमड़ गए थे, जहां से रथ यात्रा की शुरुआत हुई है। इस दौरान वह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से गले भी मिली। सीएम ने उनके पति को भी शुभकामनाएं दीं। इसके बाद संबोधन करते हुए नुसरत जहां ने कहा कि रथयात्रा में आमंत्रण और अतिथि बनकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। उन्होंने कहा कि यही बंगाल की संस्कृति है, यहां कोई किसी धर्म से किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करता। सबको लेकर चलने की संस्कृति का नाम बंगाल की संस्कृति है। उन्होंने लोगों से भी एक दूसरे के मजहब का सम्मान, विचारों की भिन्नता के बावजूद उसकी स्वीकार्यता और भेदभाव भूलकर भाईचारा से रहने की अपील की।