एनआरसी का असर, असम से निकल कर बंगाल में शरण ले रहे घुसपैठिये

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शनिवार को अंतिम सूची आई है जिसमें महज 19 लाख लोग नागरिकता से बाहर किए गए हैं। बाकी के 21 लाख लोग कहां गए? दावा किया जा रहा है कि 40 लाख लोगों ने अपनी नागरिकता के लिए दोबारा आवेदन किया था और उनमें से अधिकतर लोगों ने नागरिकता संबंधी पुख्ता दस्तावेज जमा कराए थे जिसके कारण संख्या घटकर 40 से 19 लाख पर आई है।



कोलकाता, 02 सितंबर (हि. स.)। असम में नागरिकता सूची से बाहर किए गए अनगिनत घुसपैठिए बंगाल में आकर शरण ले चुके हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ को रोकने और स्थानीय लोगों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों की ओर से यह दावा किया जा रहा है। दरअसल आज से चार महीने पहले जब एनआरसी की सूची सामने आई थी तो उसमें 40 लाख घुसपैठियों का नाम था। दावा किया जा रहा था कि उनमें से अधिकतर लोग बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं जो अवैध तरीके से सीमावर्ती असम में आकर बस गए थे और यहां का दस्तावेज बनाकर रह रहे थे। गत शनिवार को अंतिम सूची आई है जिसमें महज 19 लाख लोग नागरिकता से बाहर किए गए हैं। बाकी के 21 लाख लोग कहां गए? दावा किया जा रहा है कि 40 लाख लोगों ने अपनी नागरिकता के लिए दोबारा आवेदन किया था और उनमें से अधिकतर लोगों ने नागरिकता संबंधी पुख्ता दस्तावेज जमा कराए थे जिसके कारण संख्या घटकर 40 से 19 लाख पर आई है। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी सामने आ रहा है। खबर है कि चार महीने पहले जब एनआरसी की सूची जारी की गई थी और जिन लोगों का भी नाम उस सूची में नागरिक के तौर पर नहीं था उनमें से हजारों लोग बंगाल में प्रवेश कर गए थे। मुख्यमंत्री  ममता बनर्जी ने एनआरसी के  मुद्दे पर  केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। लोकसभा चुनाव भी था इसलिए इसे बड़े पैमाने पर राजनीतिक मुद्दा बनाते हुए सत्तारूढ़ तृणमूल ने संसद से सड़क तक आंदोलन किया था।  ममता बनर्जी ने यहां तक कह दिया था कि केंद्र सरकार असम से बांग्ला भाषियों को खदेड़ने की कवायद के तहत एनआरसी लागू कर रही है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि बांग्लाभाषियों के लिए बंगाल का दरवाजा हमेशा खुला रहेगा और राज्य सरकार मदद करेगी। अब  खबर है कि चार महीने पहले जब एनआरसी की पहली सूची आई थी तब से लेकर अब तक बड़ी संख्या में वहां रहने वाले गैर भारतीय बंगाल की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं। उनमें से अधिकतर असम से सटी बंगाल की सीमा के आसपास बसेरा बनाकर रह रहे हैं।  विगत तीन से चार महीने के दौरान असम से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों में बड़ी संख्या में नए लोग आए हैं। उन्हें स्थानीय अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा हर तरह की मदद दी जा रही है।
उल्लेखनीय है कि जब म्यांमार में रोहिंग्या आतंकियों के खिलाफ वहां की सेना ने अभियान चलाया था तब लाखों रोहिंग्या मुसलमान दुनियाभर के देशों में शरण लेने के लिए चले गए थे। बंगाल के दो जिलों  उत्तर और दक्षिण 24 परगना  में बड़ी संख्या में रोहिंग्या लोगों को बसाया गया है।  इनके बच्चों के लिए पठन-पाठन और इनकी नागरिकता संबंधी दस्तावेज तैयार करने में स्थानीय अल्पसंख्यक संगठन मदद  करते रहे हैं। अब एनआरसी सूची से बाहर किए गए घुसपैठिए भी बंगाल में अपना बसेरा बनाते जा रहे हैं।

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