उत्तर बंगाल को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के प्रस्ताव पर राजनीतिक सहमति बनाना आसान नहीं है

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कोलकाता,16 जून (हि.स.)। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद से राज्य के विभाजन की अटकलें जोर पकड़ रही थीं। उत्तर बंगाल के पांच जिलों को लेकर केंद्र शासित प्रदेश बनाने की चर्चा चल रही है। हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ कहा है कि वह किसी भी कीमत पर बंगाल का बंटवारा नहीं होने देंगीं। वैसे देखा जाए तो उत्तर बंगाल को पृथक राज्य बनाने की मांग बहुत पुुरानी है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा से लेकर केपीपी, जीसीपी जैसे संगठनों का मूलाधार ही पृथक राज्य की मांग रहा है।
अब उत्तर बंगाल को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के प्रस्ताव पर नया विवाद खड़ा होने के आसार हैं। विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद से ही सोशल मीडिया पर लगातार उत्तर बंगाल को पृथक राज्य का दर्जा देने की मांग उठती रही है। विधानसभा चुनाव में उत्तर बंगाल के पांच जिलों दार्जिलिंग, अलीपुरद्वार, कालिमपोंग जलपाईगुड़ी एवं कूचबिहार में भाजपा ने जबरदस्त प्रदर्शन कर इन जिलों की 27 में से 21 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि तृणमूल के खाते में सिर्फ 5 सीटें गई। एक सीट पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (तमांग गुट) को जीत मिली। भाजपा का दबदबा ऐसा रहा कि तृणमूल के तीन मंत्री भी चुनाव हार गए। उसके बाद से ही भाजपा समर्थक उत्तर बंगाल को बंगाल से अलग करने की मांग उठाते रहे हैं। उनका तर्क है कि जब उत्तर बंगाल की भौगोलिक स्थिति से लेकर राजनीतिक सोच राज्य के बाकी हिस्सों से इतनी अलग है तो फिर इसे अलग राज्य का दर्जा क्यों नहीं मिलना चाहिए?
हालांकि ममता बनर्जी के संज्ञान में जब यह बात आई तो उन्होंने बेहद कड़े स्वर में इसका प्रतिवाद करते हुए कहा कि हम किसी को भी डिवाइड एंड रूल की इजाजत देंगे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की अनुमति के बगैर राज्य का विभाजन संभव ही नहीं है। अब सवाल उठता है कि क्या केंद्र सरकार गैर कानूनी तरीके से विभाजन करना चाहती है?
इस बारे में “हिंदुस्थान समाचार” ने विभिन्न राजनीतिक दलों का रुख जानने की कोशिश की।पिछली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे कांग्रेस के अब्दुल मन्नान ने कहा कि तृणमूल और भाजपा के लिए कानूनी-गैरकानूनी प्रक्रिया बहुत अहमियत नहीं रखती। ऐसा कुछ भी नहीं है, जो ये दोनों नहीं कर सकते। दूसरी तरफ चाय श्रमिक नेता एवं भाजपा विधायक मनोज टिग्गा ने कहा  कि उन्हें इसके वैधानिक पहलू की जानकारी नहीं है। चूंकि यह मामला संवेदनशील है, इसलिए इस पर टिप्पणी करना ठीक नहीं होगा।
इस संबंध में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि, “बहुत ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। कुछ समय पहले ही संविधान के अनुच्छेद 370 का प्रयोग कर कश्मीर का विभाजन हुआ है।” शुभेंदु ने मुख्यमंत्री के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार की सहमति के बगैर राज्य का विभाजन संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि नियमों के अनुसार केंद्र सरकार राज्य को प्रस्ताव भेजकर उसकी राय लेने की कोशिश करेगी। यदि 15 दिन के भीतर राज्य सरकार सहमति नहीं देती तो 16वें दिन केंद्र सरकार फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है।”
कांग्रेस नेता अब्दुल मन्नान ममता बनर्जी पर बंगाल में विभाजन की राजनीति को शह देने का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि बंगाल में विभाजन की राजनीति सबसे पहले ममता बनर्जी ने ही शुरू की। कामतापुरी एवं राजवंशियों के साथ उन्होंने ही गठजोड़ किया था। भाजपा ने जब गोरखालैंड आंदोलन का समर्थन किया तब भी उन्होंने भाजपा के सुर में सुर मिलाया। हालांकि मन्नान ने कहा कि व्यक्तिगत तौर पर वे विभाजन के खिलाफ हैं।
दूसरी तरफ प्रदेश भाजपा के आर्थिक सेल के  समन्वयक डॉ. पंकज राय ने विभाजन के पक्ष में अपनी राय जाहिर करते हुए कहा कि उत्तर बंगाल को सुनियोजित तरीके से यदि केंद्र शासित क्षेत्र का दर्जा दिया जाए तो इससे कई सारी अलगाववादी आंदोलनों का पटाक्षेप हो जाएगा। सिर्फ  विकास की दृष्टि से ही नहीं, सुरक्षा एवं अखंडता के नजरिए से भी उत्तर बंगाल को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया जाना चाहिए।
उत्तर बंगाल में वाम आंदोलन का चेहरा रहे राज्य के पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ माकपा नेता अशोक भट्टाचार्य 1967 के नक्सल आंदोलन से लेकर गोरखालैंड तक पृथक राज्य के लिए हुए कई आंदोलनों का जिक्र करते हुए ममता बनर्जी सरकार पर उत्तर बंगाल को उपेक्षित रखने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में ममता सरकार ने जो योजनाएं उत्तर बंगाल के लिए शुरू की हैु, उन्हें कार्यान्वित करने के लिए आधारभूत ढांचा ही उपलब्ध नहीं है।
आर्थिक मामलों के जानकार गौतम भट्टाचार्य कहते हैं कि उत्तर बंगाल के चार जिलों दार्जिलिंग कालिमपोंग, जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार की आर्थिक विशेषताएं राज्य के अन्य जिलों से थोड़ी सी अलग है। इन जिलों की आर्थिक व्यवस्था चाय बागान एवं अन्य उत्पादों पर आधारित है। यहां की भौगोलिक स्थिति इस बात से प्रभावित नहीं होती कि यहां कौन  शासन कर रहा है।

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