प्रयागराज, 28 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सिविल सर्विस रेग्यूलेशन 351(ए) के अंतर्गत वित्तीय क्षति की भरपाई के लिए कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने से पहले विभागीय कार्यवाही शुरू करनी चाहिए। सेवानिवृत्ति के बाद बिना राज्यपाल से अनुमोदन लिए की गयी विभागीय कार्यवाही संविधान के अनुच्छेद 300(ए) के विपरीत है।कोर्ट ने कहा कि इस अनुच्छेद के अन्तर्गत कानूनी कार्यवाही बगैर किसी को सम्पत्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। रेगुलेशन 351(ए) के अंतर्गत विभागीय नुकसान की वसूली के लिए सेवानिवृत्त होने से पहले आरोप पत्र दे देना जरूरी है। इसके बाद शुरू की गई कार्यवाही मनमानी मानी जायेगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 309 के तहत कानून से ही अधिकार दिये जा सकते हैं। निगम के प्रस्ताव व सर्कुलर से राज्यपाल के अधिकार प्रबंध निदेशक राज्य विद्युत निगम को नहीं दिये जा सकते।इसी के साथ कोर्ट ने बिजली विभाग में कनिष्ठ अभियंता पद से सेवानिवृत्त याची को पेंशन आदि पाने का हकदार माना और बिजली विभाग को 9 फीसदी व्याज सहित सेवानिवृत्ति परिलाभो का दो माह में भुगतान करने का निर्देश दिया है। साथ ही कहा है कि यदि आदेश का पालन नहीं किया गया तो 6 फीसदी अतिरिक्त व्याज कुल 15 फीसदी व्याज का भुगतान करना होगा।कोर्ट ने पेंशन का भुगतान न कर तीन साल परेशान करने पर दो माह में याची को 25 हजार रूपए हर्जाना भी देने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने अनिल कुमार शर्मा की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची के खिलाफ सेवानिवृत्त होने के बाद यह कहते हुए विभागीय जांच कार्यवाही शुरू की गई कि उसने व उसके भाई दोनों ने मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति प्राप्त की थी। उसके खिलाफ बिजली चोरी की भी शिकायत की गई है।मालूम हो कि याची 4 जून 1974 को बिजली विभाग में नियुक्त किया गया। बाद में कनिष्ठ अभियंता पद पर पदोन्नति की गई। 31 दिसम्बर 18 को अमरोहा बिजली विभाग से सेवानिवृत्त हुआ। इससे पहले 14 नवम्बर 18 को याची के खिलाफ शिकायत की गई। 22 नवम्बर को निलम्बित कर दिया गया और सेवानिवृत्त होने से पहले 28 दिसम्बर 18 को निलम्बन वापस ले लिया गया।
बिजली विभाग का कहना था कि मृतक आश्रित कोटे में परिवार के एक व्यक्ति को नौकरी मिल सकती है। याची व इसके भाई दोनों ने नियुक्ति पा ली है। विभाग को आर्थिक नुकसान हुआ है जिसकी वसूली का अधिकार है। प्रबंध निदेशक के अनुमोदन पर याची के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू की गई है। निगम के प्रस्ताव पर जारी सर्कुलर से प्रबंध निदेशक को अनुमोदन का अधिकार प्राप्त है। जिसे कोर्ट ने विधि सम्मत नहीं माना और कहा कि राज्यपाल के अनुमोदन का अधिकार प्रबंध निदेशक को सौंपने की कानूनी घोषणा नहीं की गई है।
कोर्ट ने कहा कि सेवानिवृत्त होने के समय याची निलम्बित नहीं था। उसके खिलाफ कोई विभागीय जांच कार्यवाही शुरू नहीं की गई थी। ऐसे में पेंशन आदि न देना अधिकार का अतिलंघन है। कोर्ट ने कहा पेंशन खैरात नहीं है, यह कर्मचारी की सेवा का अधिकार है। जिसे बिना कानूनी प्रक्रिया के रोका नहीं जा सकता।