नीतीश ने किया केंद्र प्रायोजित योजनाओं का विरोध, विशेष राज्य की मांग दुहराई

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मुख्यमंत्री ने कहा कि वित्तीय पैटर्न में इस बदलाव के कारण राज्य सरकार को अपने स्रोतों से वित्तीय  वर्ष 2015—16 में 4500 करोड़ रुपये,2016-17 में 4900 करोड़ रुपये, 2017-ं18 में 15335 करोड़ रुपये एवं 2018-ं19 में 21396 करोड़ रुपये खर्च करना पड़ा है।



पटना, 15 जून (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में शनिवार को नीति आयोग की बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार न केवल पूर्व  नीति आयोग की गवर्निंग बॉडी की पांचवी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में पहली बैठक बुलायी गयी थी। बैठक में राज्यों के मुख्यमंत्री, संघ शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल, कई केंद्रीय मंत्री यथा राजनाथ सिंह,  अमित शाह,निर्मला सीतारमण,नितिन गडकरी,रामविलास पासवान ,गिरिराज सिंह ,पीयूष गोयल ,आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार सहित संबंधित वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने संबो​धन की शुरुआत केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के विरोध से की। इसके बाद विशेष राज्य की मांग दुहरायी। उन्होंने राज्यों पर केन्द्र प्रायोजित 21 योजनाओं के वित्तीय पैटर्न पर विरोध जताया ​और कहा कि इन योजनाओं को राज्यों पर थोपने की बजाय तत्काल बंद कर उनकी जगह सम्पूर्ण खर्च वहन कर केन्द्रीय योजनाएं चलायी जानी चाहिए। केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के लिए राज्यांश के बढ़ते बोझ से बिहार को लेने के देने पड़ रहे हैं। केन्द्र से बजट के तहत मिलने वाली राशि में कटौती हो गयी है। इससे राज्य की अपनी प्राथमिकता वाली योजनाओं के लिए राशि कम पड़ रही है। मुख्यमंत्री ने विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग दुहराने के साथ बिहार को पिछड़ापन से निजात दिलाने के लिए रघुराम राजन समिति की सिफारिशों के आलोक में विशेष केन्द्रीय सहायता उपलब्ध कराने की भी आवाज बुलंद की।

  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रारंभिक संबोधन में कहा कि भारत के संघीय ढांचे में सभी राज्यों एवं केन्द्र-शासित प्रदेशों की सहभागिता से समस्याओं का निराकरण करने तथा लोकोपयोगी नीतियों के क्रियान्वयन के लिए बेहतर माहौल बनाने में नीति आयोग अग्रणी भूमिका निभा सकता है। उन्होंने कहा कि बदलते हुए वैश्विक, आर्थिक, सामाजिक एवं तकनीकी परिवेश में देश के विकास के लिये समावेशी सोच एवं दृष्टि की आवश्यकता है। जदयू अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की केन्द्र प्रायो​जित योजनाओं की संख्या कम से कम करने की पुरानी मांग रही है परंतु इसे पूरी तरह बंद करने की नयी मांग को केन्द्रीय मंत्रिपरिषद जदयू को साझेदारी नहीं मिलने के बाद राजग में आयी तल्खी के रूप में देखा जा रहा है। जदयू ने जहां तीन तलाक संंबंधी विधेयक का संसद में विरोध करने की ठानी है ,वहीं भाजपा के राजनीतिक एजेंडा के तहत जम्मू-कश्मीर से संबंधित 370 समाप्त करने ,समान आचार संहिता या राम मंदिर निर्माण पर अलग राह पर चलने की प्रतिबद्धता भी तेजी से दुहराने लगा है। मुख्यमंत्री ने केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के विरोधस्वरूप कहा कि 14वें वित्त आयो​ग की सिफारिशों के तहत राज्यों की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से 42 प्रतिशत किये जाने के बाद से राज्यों को बजट के तहत दी जाने वाली राशि में भारी कटौती हो गयी है। इसका प्रतिकूल प्रभाव सबसे ज्यादा बिहार पर पड़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ही पहले कार्यकाल में केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के   वित्तीय पैटर्न में बदलाव हुआ है। उस समय में भी नीतीश कुमार ने यूपीए के साथ रहते वित्तीय पैटर्न में बदलाव का विरोध किया था। अब राजग के साथ रहते भी उन्होंने विरोध जारी रखा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि वित्तीय पैटर्न में इस बदलाव के कारण राज्य सरकार को अपने स्रोतों से वित्तीय  वर्ष 2015—16 में 4500 करोड़ रुपये,2016-17 में 4900 करोड़ रुपये, 2017-ं18 में 15335 करोड़ रुपये एवं 2018-ं19 में 21396 करोड़ रुपये खर्च करना पड़ा है। राज्य को अपने संसाधन का एक बड़ा भाग राज्यांश के रूप में केन्द्र प्रायोजित योजनाओं पर देना पड़ रहा है । इससे राज्य की अपनी प्राथमिकता वाली योजनाओं के लिए कम राशि उपलब्ध हो पाती है। इसके चलते राज्य आधारित नागरिक सुविधाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति अपनी प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं कर पाती है। साथ ही केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार का अंशदान सम्मिलित रहने के कारण वित्तीय प्रावधान कराने, लेखा-जोखा रखने एवं अनुश्रवण में भी काफी कठिनाई होती है। इतना ही नहीं ,राज्य की प्राथमिकता में नहीं रहने के बावजूद  राज्य को केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में भाग लेना पड़ता है। इस संबंध में हमारा सुझाव होगा कि क्रेन्द्र सरकार केन्द्र प्रायोजित योजनाओं को बंद कर प्राथमिकता वाली योजनाओं का क्रियान्वयन सेंट्रल सेक्टर स्कीम के तहत करना चाहिए और राज्यों की प्राथमिकता की योजनाओं का कार्यान्वयन राज्य सरकारों को अपने संसाधनों से राज्य स्कीम के तहत करना चाहिए। मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में राज्य सरकार के 7 निश्चय कार्यक्रम का उल्लेख करते हुए कहा कि अप्रैल 2020 तक सभी घरों में नल का जल उपलब्ध कराने का लक्ष्य है। उन्होंने समग्र शिक्षा कार्यक्रम के तहत शिक्षकों के वेतन मद की राशि में कटौती करने की बजाय वेतन का सम्पूर्ण खर्च का वहन केन्द्र सरकार को करने की मांग की । इंदिरा गांधी वृद्धावस्था पेंशन योजना के तहत सभी पेंशनधारियों की राशि केन्द्र को ही वहन करने की भी मांग की। उन्होंने बिहार में बाढ़ एवं सुखाड़ की समस्या का भी उल्लेख करते हुए आपदा मोचन हेतु आवश्यकता के अनुरूप केन्द्र को राशि देने की मांग की। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ रैयतों के साथ गैर रैयतों यथा बटाईदारों व जोतदारों को भी सुलभ कराने की मांग की।


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