नई दिल्ली, 16 जनवरी (हि.स.)। निर्भया के दोषी मुकेश के डेथ वारंट पर रोक लगाने की मांग पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने इस बात के संकेत दिए कि 22 जनवरी को फांसी नहीं हो सकती । एडिशनल सेशंस जज सतीश अरोड़ा ने कहा कि हम फिलहाल फांसी की तिथि बढ़ा नहीं रहे हैं। हम जेल प्रशासन से स्टेटस रिपोर्ट मांग रहे हैं। जेल प्रशासन ने कोर्ट को पूरी जानकारी नहीं दी है। जेल प्रशासन को कोर्ट के सामने पूरी जानकारी रखनी चाहिए थी। पटियाला हाउस कोर्ट ने 17 जनवरी को जेल प्रशासन को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले पर 17 जनवरी को भी सुनवाई होगी।
पटियाला हाउस कोर्ट ने कहा कि दोषी ने दया याचिका लगाई है। 22 जनवरी में सिर्फ पांच दिन बचे हैं। हो सकता है कि राष्ट्रपति एक-दो दिन में दया याचिका खारिज कर दें। उसके बाद यह 14 दिन का समय मांगेंगे।
मुकेश की तरफ से वकील वृंदा ग्रोवर ने बहस की। उन्होंने कहा कि केवल मुकेश की तरफ से अर्जी दाखिल की गई है। अर्जी में डेथ वारंट को रद्द करने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 14 जनवरी को दो बजे क्यूरेटिव याचिका खारिज की। इसके बाद 3 बजे हमने दया याचिका दाखिल कर दी थी। कोर्ट का आदेश गलत नहीं था लेकिन उसके बीच जो परिस्थितियों में बदलाव आया है उसके आधार पर डेथ वारंट पर रोक की मांग की गई है।
वकील वृंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि 22 जनवरी को फांसी नही दी जा सकती, क्योंकि दया याचिका लंबित है। उन्होंने शत्रुघ्न चौहान के फैसले का उदाहरण दिया और कहा कि इसीलिए हम निचली अदालत में आए हैं कि डेथ वारंट पर रोक लगाई जाए। वृंदा ग्रोवर ने कहा कि क्यूरेटिव याचिका इसलिए दाखिल नहीं कर पाए क्योंकि कुछ दस्तावेज हमारे पास नहीं थे । सुप्रीम कोर्ट ने कहीं भी अपने फैसले में नहीं कहा कि क्यूरेटिव याचिका को देरी से दाखिल करने के आधार पर खारिज किया गया है।
उन्होंने कहा कि 18 दिसम्बर को इस मामले में मैं इंगेज हुई, क्या ऐसा कभी कोर्ट को लगा कि मेरी तरफ से देरी हुई? उन्होंने दिल्ली सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या ये राज्य सरकार की भूमिका नही थी कि वो कोर्ट को बताएं ? वृंदा ग्रोवर ने कहा कि दोषी अभी उनके कस्टडी में है, उनकी जिम्मेदारी नहीं बनती। जेल अथॉरिटी को इसको लेकर कोर्ट को बताना चाहिए था। इन लोगों को मेरे ऊपर छोड़ दिया कि मैं कोर्ट में आऊं।
निर्भया के माता-पिता के वकील ने मुकेश की याचिका का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि मुकेश की याचिका सुनवाई योग्य नहीं हैं। कोर्ट ने निर्भया के माता-पिता के वकील से कहा कि आपको भी बहस करने का मौका दिया जाएगा, ग्रोवर के बहस करने के बाद।
वृंदा ग्रोवर ने कहा “नो इमोशन कैन टेक ओवर लॉ ऑफ द लैंड” । ग्रोवर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा है कि अगर कोई मौत का सजायाफ्ता कैदी भी है तो उसकी आखिरी सांस तक जीने के अधिकार को बनाए रखा जाना चाहिए । वृंदा ग्रोवर ने कहा कि शत्रुघ्न चौहान फैसले के मुताबिक मुकेश दया याचिका खारिज होने के बाद 14 दिन पाने का हकदार है।
ग्रोवर ने कहा कि जेल प्रशासन ने अपने नोटिस में दोषियों को केवल दया याचिका के बाबत कहा था, क्यूरेटिव याचिका के बारे में नहीं। जेल मैनुअल में क्यूरेटिव याचिका का जिक्र क्यों नहीं है । ग्रोवर ने कहा कि मेरे अधिकार अभी जीवित हैं। जेल प्रशासन को पता होना चाहिए मेरा अधिकार क्या हैं ? तब कोर्ट ने कहा कि शत्रुघ्न चौहान के फैसले में मुख्य मुद्दा राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका के निपटारे में कई सालों की देरी का था।
वृंदा ग्रोवर ने कहा कि जेल मैनुअल के हिसाब से 22 जनवरी को फांसी नही दी जा सकती। इसको जेल प्रशासन पर नही छोड़ा जा सकता क्योंकि अगर 21 जनवरी को राष्ट्रपति दया याचिका को ठुकराते हैं तो 22 जनवरी को जेल प्रशासन फांसी दे देगा। उन्होंने कहा कि देश में किसी अथॉरिटी को जीवन लेने का अधिकार नहीं है केवल “रूल ऑफ़ लॉ ” को है।
वृंदा ग्रोवर ने तिहाड़ जेल प्रशासन पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुकेश ने तिहाड़ जेल से कुछ जरूरी कागजात मांगे , जेल प्रशासन ने हां या न में जवाब ही नहीं दिया। आखिर जेल प्रशासन किसके इशारे पर काम कर रहा है। वो कानून का सम्मान नहीं कर रहा है। ऐसा व्यक्ति जो कानूनी उपचार ले रहा है उसे फांसी पर चढ़ाने की तैयारी की जा रही है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी डेथ वारंट जारी नहीं कर सकता ये सिर्फ ट्रायल कोर्ट ही कर सकता है।
दिल्ली पुलिस की ओर से वकील राजीव मोहन ने कहा कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 413 के तहत कोर्ट को डेथ वारंट जारी करने का अधिकार है। सवाल है कि डेथ वारंट पर रोक कौन लगा सकता है। ट्रायल कोर्ट को डेथ वारंट पर रोक लगाने का अधिकार नहीं है। जेल अधीक्षक को ये अधिकार है कि वो प्रिजन रूल्स के तहत फांसी की तारीख को स्थगित कर सकता है।
दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि नियमों के मुताबिक फिलहाल 22 जनवरी को फांसी नहीं हो सकती। पहले राष्ट्रपति का दया याचिका पर फैसला आना चाहिए , इसके बाद 14 दिन का वक्त दिया जाना चाहिए। दिल्ली सरकार के वकील ने दोहराया कि 22 जनवरी को फांसी नहीं दी जा सकती।
सुनवाई के दौरान तिहाड़ जेल की ओर से वकील इरफान अहमद ने कहा कि हमने राज्य सरकार को दया याचिका के बारे में लिखा था। हम उसका इंतजार कर रहे हें। जब जवाब मिलेगा तो हम कोर्ट को बताएंगे। उन्होंने कहा कि 7 जनवरी के आदेश पर रोक लगाने की जरूरत नहीं है। जेल प्रशासन ने नियमों का पालन किया है। तब कोर्ट ने कहा कि नियम 840 के मुताबिक सूचना अपूर्ण है, क्योंकि इसमें अनुपालन की कोई रिपोर्ट नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि जब जेल सुपरिंटेंडेंट ने हमें लिखा कि दया याचिका लगाई गई है तो इसका मतलब क्या है ? क्या इसका मतलब ये नहीं है कि कानून के मुताबिक फांसी का समय दिया जाना चाहिए । निर्भया के माता-पिता के वकील जितेंद्र कुमार झा ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 413 के तहत एक बार कोर्ट ने आदेश दे दिया तो उसे बदला नहीं जा सकता है। 22 जनवरी को ही फांसी होनी चाहिये। तब कोर्ट ने कहा कि ये सही व्याख्या नहीं है। 7 जनवरी का आदेश जजमेंट नहीं था। कोर्ट ने संकेत दिया 22 जनवरी की फांसी टल सकती है।
निर्भया के दोषी मुकेश ने डेथ वारंट पर रोक की मांग की है। पिछली 15 जनवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से जारी डेथ वारंट पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। कोर्ट ने याचिकाकर्ता मुकेश को निर्देश दिया कि वो ट्रायल कोर्ट जाकर बताएं कि उनकी दया याचिका अभी लंबित है।
पिछली 7 जनवरी को पटियाला हाउस कोर्ट ने डेथ वारंट जारी करते हुए 22 जनवरी को फांसी देने का आदेश दिया था। उसके बाद दोषी मुकेश ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की थी। पिछली 14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मुकेश की क्यूरेटिव पिटीशन खारिज कर दी थी। उसके बाद मुकेश ने हाईकोर्ट में डेथ वारंट को रोकने के लिए याचिका दायर की थी।