नई दिल्ली, 31 अगस्त (हि.स.)। केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रह्लाद सिंह पटेल ने शनिवार को हुमायूं का मकबरा स्थित नीला गुम्बद आम जनता के लिए खोल दिया। नीला गुम्बद को गुम्बद में लगी नीले रंग की टाइलों के कारण इसे यह नाम दिया गया था। आम जनता आज से हुमायूं का मकबरा परिसर के अंदर से इसे देख सकती है।
शनिवार को प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि यह गर्व की बात है कि हम अपनी विरासत के अवशेषों को विदेशों से वापस लाने में सफल रहे। पिछले पांच वर्षों में बरामद की गई पुरावशेषों की संख्या अब तक की सबसे अधिक है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है, जिन्होंने न केवल इन पुरावशेषों को पुनः प्राप्त करने में मदद करने के प्रयास किए बल्कि विदेश में अपने आधिकारिक दौरों के दौरान व्यक्तिगत रूप से उन्हें अपने साथ वापस लाए। हालिया सफलता विश्व के विभिन्न देशों के साथ हमारे सांस्कृतिक संबंधों में निरंतर सुधार के कारण है। पटेल ने इस प्रयास में एएसआई, सीबीआई, डीआरआई जैसी विभिन्न सरकारी एजेंसियों के अथक प्रयासों की सराहना की।
नीला गुम्बद मुगल काल की सबसे पुरानी संरचनाओं में से एक है। इसे 1530 में बनाया गया था। नीले गुम्बद को यमुना में एक द्वीप पर बनाया गया था और बाद में 1569-70 में जब हुमायूं के मकबरे का निर्माण किया गया तो इसे और आसपास की अन्य संरचनाओं को परिसर में शामिल कर लिया गया था।
नीला गुम्बद का महत्व 19वीं शताब्दी में कम होना शुरू हो गया था जब नीला गुम्बद उद्यान के उत्तरी भाग को रेलवे लाइनों के निर्माण के लिए ले लिया गया था और निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन का निर्माण कर दिया गया। स्मारक इसके साथ ही लगा हुआ है। 1980 में, हुमायूं के मकबरे से नीला गुम्बद को अलग करते हुए एक सड़क बना दी गई और बाद में इस पर 200 से अधिक झुग्गियों के साथ एक अवैध बस्ती का निर्माण होने के साथ ही नीला गुम्बद पर कब्जा हो गया।
इसकी चमक-दमक वापस लाने के लिए सबसे पहले रेलवे के साथ हुए समझौते के अनुसार अवैध बस्ती के निवासियों को 2004-05 में और बाद में 2014 में दोबारा बसाया गया। स्मारक को हुमायूं के मकबरे से अलग करने वाली सड़क को स्थानांतरित किया गया, ताकि हुमायूं के मकबरे से नीला गुम्बद तक पहुंचने की अनुमति दी जा सके।
पिछले पांच वर्षों में काफी मेहनत करके इसके आसपास प्राकृतिक दृश्य को बहाल किया गया और एक वैकल्पिक सड़क बनाई गई। इसके अलावा ईंट जैसी 15000 टाइलों के गायब होने से गुम्बद की भव्यता पूरी तरह से समाप्त हो गई थी। स्मारक की चमक-दमक वापस लाने के लिए हुमायूं के मकबरे के परिसर में भट्ठे स्थापित किए गए। हजरत निज़ामुद्दीन बस्ती के युवाओं को नियुक्त किया गया और खोई हुई शिल्प परंपरा को पुनर्जीवित किया गया।
छत की ज्यामितीय और कलात्मक रचनाएं जो वर्षों से सफेदी और सीमेंट की अनेक परतों के नीचे छिप गई थीं, वह सामने आ गईं और गायब पर्दानुमा बलुआ पत्थर की जालियों को फिर से लगाया गया।
रेलवे से प्राप्त भूमि के एक हिस्सा को दोबारा इस तरह विकसित किया गया, ताकि मकबरे के आसपास के मूल उद्यान के हिस्से को फिर से बनाया जा सके। इसके अलावा संरक्षण कार्य के दौरान एक ढालू रास्ते (रैम्प) के पुरातात्विक अवशेष भी मिले। माना जाता है कि इस ढालू रास्ते का इस्तेमाल हुमायूं के मकबरे के निर्माण के लिए नावों से यहां पहुंचने वाले पत्थरों और अन्य निर्माण सामग्री को चढ़ाने के लिए किया जाता था।
हुमायूं के मकबरे की पूर्वी दीवार के साथ मूल नदी के तल को बहाल करने के लिए 10 फुट से अधिक संचित गाद को हटाया गया। इससे नीला गुम्बद के उत्तरी तोरण पथ का पता चला – जिसका बाद में दोबारा निर्माण किया गया। मकबरे के संरक्षण का कार्य आगा खां ट्रस्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सहयोग से किया। वर्ष 2017 में, यूनेस्को ने हुमायूं के मकबरे के विस्तारित विरासत स्थल के हिस्से के तहत नीला गुम्बद को वैश्विक धरोहर घोषित किया था।