शुद्धिकरण के दौरान होने वाली पानी की बर्बादी पर एनजीटी ने जताई चिंता

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रिवर्स ऑस्मोसिस सिस्टम (आरओ) से पानी के शुद्धिकरण के दौरान होने वाली पानी की बर्बादी पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) ने चिंता जताई है।



नई दिल्ली , 29 मई (हि.स.)। रिवर्स ऑस्मोसिस सिस्टम (आरओ) से पानी के शुद्धिकरण के दौरान होने वाली पानी की बर्बादी पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) ने चिंता जताई है। एनजीटी की ओर से गठित विशेषज्ञों की कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नगर निगमों या जल बोर्ड की ओर से घरों में जो पानी की आपूर्ति की जाती है उसके शुद्धिकरण के लिए आरओ लगाने की कोई जरुरत नहीं है। विशेषज्ञ कमेटी ने एऩजीटी को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नगर निगमों के पानी को अगर आरओ के जरिये पीते हैं तो यह हमारे सेहत को खराब करता है क्योंकि इससे मिनरल गायब हो जाते हैं। कमेटी के मुताबिक नदी, तालाबों और झील के सतह पर मौजूद पानी के स्रोतों से निगम द्वारा पाइप के जरिए सप्लाई किए जाने वाले पानी के लिए आरओ की कोई जरूरत नहीं है। कमिटी के मुताबिक आरओ की जरूरत उन्हीं इलाकों में पड़ती है, जहां टीडीएस का लेवल 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा हो। याचिका फ्रेंड नामक एक एनजीओ ने दायर की है। याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने 21 दिसंबर 2018 को एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी में केंद्रीय पर्यावरण विभाग, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड, आईआईटी दिल्ली और नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट दिल्ली के प्रतिनिधि शामिल हैं।

 कमेटी की रिपोर्ट पर गौर करते हुए एनजीटी ने निर्देश दिया कि इलाके में उपलब्ध पानी में टीडीएस स्तर के मुताबिक वाटर प्योरिफायर मार्केट का वर्गीकरण किया जाए। एनजीटी ने कहा है कि जहां का टीडीएस 500 मिलीग्राम प्रति लीटर तक हो वहां आरओ की जरुरत नहीं। इससे ज्यादा होने पर ही आरओ का इस्तेमाल किया जाए। पानी की सप्लाई करनेवाले नगर निगम और दूसरी एजेंसियां स्थानीय लोगों को ये बताएं कि उनके पानी का स्रोत क्या है और उसकी गुणवत्ता कैसी है। एनजीटी ने कहा कि आरओ के निर्माण में ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाए जिससे पानी की बर्बादी कम हो।

 


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